राजस्थान: लॉकडाउन में ऊंट पालकों की मुश्किलें बढ़ा रही मेंज बीमारी, अब तक कई ऊंटों की मौत

राजस्थान में पिछले कुछ वर्षों में ऊंटों की संख्या में तेजी से कमी आयी है, ऐसे में लॉकडाउन के दौरान मेंज नाम की बीमारी ने ऊंट पालकों की परेशानी और बढ़ा दी है।
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पहले से मुसीबत झेल रहे ऊंट पालकों के सामने एक नई मुसीबत आ गई। राजस्थान के कई जिलों में ऊंटों में त्वचा संबंधित बीमारी मेंज फैल गई है, जिससे कई ऊंटों की मौत भी हो गई है और लॉकडाउन के चलते ऊंटों का इलाज भी नहीं हो पा रहा है।

राजस्थान के जैसलमेर जिले के सांवता गाँव के ऊंट पालक सुमेर सिंह भाटी के पास 400 ऊंट हैं। सुमेर सिंह ऊंटों के संरक्षण के लिए श्री देगराय उष्ट्र संरक्षण एवं दूध विपणन विकास सेवा समिति भी चलाते हैं। सुमेर सिंह भाटी बताते हैं, “हम ऊंट पालक पहले से ही परेशान थे और अब नई मुसीबत आ गई है। मेरे 170 से ज्यादा ऊंटों में बीमारी फैल चुकी है, इससे 15 ऊंटनियों की मौत भी हो गई है। आसपास के कई लोगों के ऊंटों को ये बीमारी लग गई है।” 

ऊंटों में सार्कोप्टिक मेंज, खाज या पां नाम की ये बीमारी सार्कोपट्स स्केबेई वर कैमेली नामक एक माइट से होती है, जो मक्खियों से फैलती है। यह बीमारी रोगी ऊंटों से स्वस्थ ऊंटों में बहुत तेज़ी से फैलती है। यह रोग ऊंट के पेट, पूंछ, जांघ जैसे हिस्सों को ज्यादा प्रभावित करता है। मेंज से शरीर के इन हिस्सों के बाल झड़ जाते हैं और चमड़ी काली पड़ कर सूख जाती है। खुजली से ऊंट अपने शरीर को दीवार या पेड़ पर रगड़ता है, जिससे शरीर पर घाव बन जाते हैं।

सुमेर सिंह ऊंटनी के दूध की डेयरी भी चलाते हैं, लेकिन इस बीमारी से दूध उत्पादन में भी कमी आयी है। सुमेर बताते हैं, “इस बीमारी से ऊंटनियों ने दूध भी देना कम किया है। पहले तो ऊंटनी सात लीटर दूध देती थी, अब वो चार लीटर दूध दे रही है। इससे ऊंट पालकों को काफी नुकसान उठाना पड़ रहा है।”

जैसलमेर में 40 हजार से ज्यादा ऊंट हैं, पशुपालक देसी नुस्खों से अपने पशुओं को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन कोई फायदा नहीं हो रहा। यह बीमारी जैसलमेर जिले के करड़ा, पोछिणा, मसूरिया, लुणार, गूंजनगढ, बिंजराज का तला, सम, खाभा, मिठड़ाऊ और बाड़मेर जिले के सुंदरा, पांचला, केरला, रोहिणी ,समद का पार, जैसिंधर, अकली, तामलोर और मुनाबाव में फैल रही है।

ऊंट राजस्थान का राज्य पशु भी है और देश में सबसे ज्यादा ऊंट राजस्थान में ही हैं। बीते कुछ सालों में अवैध शिकार, बीमारी और उपयोगिता में कमी आने के कारण इनकी संख्या लगातार कम हो रही है। बीसवीं पशुगणना के अनुसार देश में 2,51,956 हैं, जबकि साल 2012 में हुई 19वीं पशुगणना के अनुसार 4,00,274 ऊंट थे। वहीं राजस्थान में साल 2012 में हुई 19वीं पशुगणना के अनुसार 3, 25, 713 ऊंट थे, जो साल 2019 हुई बीसवीं पशुगणना में घटकर 2,12,739 ही रह गए हैं।

मेंज के इलाज के बारे में भाटी आगे बताते हैं, “ऊंटों में मेंज बीमारी से बचाने के लिए एक टीका लगता है, लेकिन लॉकडाउन से ये टीका भी नहीं मिल पा रहा है। सरकारी अस्पतालों में न टीका मिल रहा और न ही वहां पर डॉक्टर मिल रहे हैं।”

राजस्थान सरकार ने ऊंट तो राज्य पशु का दर्जा दिया, लेकिन उष्ट्र विकास योजना में दिए जाने वाली 10 हजार रुपए की राशि को बंद कर दिया है। सुमेर सिंह बताते हैं, “नवंबर महीने से मुझे पैसा नहीं मिला है, अगर पैसा मिल जाता तो इलाज में मदद मिल जाती है।

ऊंटों की संख्या और प्रजनन को बढ़ावा देने के लिए साल 2016 में उष्ट्र विकास योजना शुरु की गई थी। इस योजना के तहत ऊंट पालकों को ऊंटनी के ब्याने पर ऊंटनी के बच्चों के रख-रखाव के लिए तीन किश्तों में 10 हजार रुपए सरकार की ओर से दिए जाते हैं। योजना पर चार साल में 3.13 करोड़ रुपए खर्च होने थे। टोडरिया (ऊंट के बच्चे) के पैदा होने पर तीन हजार, नौ महीने का होने पर तीन हजार और फिर 18 माह की उम्र होने पर चार हजार रुपए देय होते हैं। 

केंद्र सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय कृषि विकास योजना का पैसा 3 साल के लिए उष्ट्र विकास योजना में दिया जा रहा था, जिसे केंद्र सरकार ने हाल ही में बंद कर दिया गया है। पशुपालकों का कहना है कि एक ओर तो ऊंटों में बीमारी फैल रही है, दूसरी ओर कोरोना संक्रमण के चलते नकदी का संकट खड़ा हो गया है।

पशुपालन विभाग, जैसलमेर के सयुंक्त निदेशक डॉ. विनोद कुमार कालरा कहते हैं, “अभी हम चार-पांच गाँवों में होकर आए हैं, अभी पता नहीं है कौन सी बीमारी है, क्योंकि ये बीमारी दो तरह की होती है। इसमें खुजली के प्रकार देखना होता है, कि किस वजह से खुजली हुई है, एक तो पैरासाइट से होता है और एक फंगस के जरिए होता है। इसकी पहचान करनी होती है। जिन गाँवों में मेंज बीमारी की खबरें आ रहीं हैं, वहां पिछले कई साल से विभाग का कोई आदमी नहीं है। लेकिन हम नए सिरे से काम कर रहे हैं, जिससे सारी स्थिति कंट्रोल में आ जाए। देखना होता है कि खुजली किस तरह की है, फंगस से है तो फंगस की दवाई लगेगी और अगर पैरासाइट से है तो उसमें स्प्रे किया जाता है।” 

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