सेवाग्राम आश्रम : यहां पर महात्मा गांधी ने बिताए थे 12 साल

Piyush Kant PradhanPiyush Kant Pradhan   1 Oct 2019 6:49 AM GMT

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वर्धा (महाराष्ट्र)। अपनी जिंदगी में गांधी जी देश भर में घूम-घूम कर अहिंसा का पाठ पढ़ाते रहे, लेकिन उनकी जिंदगी के 12 साल सेवाग्राम आश्रम में बीते थे।

महाराष्ट्र में नागपुर से 70 किलोमीटर दूर स्थित महात्मा गांधी की कर्मभूमि सेवाग्राम आश्रम अपने आप में एक अनोखी जगह है। जहां आकर आत्मशांति और गांधी दर्शन की अच्छी जानकारी मिलती है। अपने आप में आकर्षण का केंद्र सेवाग्राम आश्रम गांधी के जीवन दर्शन को समझने के लिए पर्याप्त है। ये वही पावन भूमि है जहां से गांधी जी ने अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई के नेतृत्व किया था और अंग्रेजी सरकार की जड़ो को उखाड़ने का काम किया था।

ऐसे हुई इस आश्रम की शुरुआत

1930 में महात्मा गांधी गुजरात के साबरमती आश्रम से दांडी यात्रा पर निकले। महात्मा गांधी दाड़ी यात्रा पर निकलने से पहले एक प्रण लिए कि जब तक आजादी नहीं मिलेगी तब तक मैं साबरमती आश्रम वापस नहीं आऊंगा। दांडी यात्रा के दौरान ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा गांधीजी को गिरफ्तार करके यरवदा जेल में कैद कर दिया गया। यरवदा जेल से निकलने के बाद गांधीजी हरिजन यात्रा पर निकल गए क्योंकि आजादी नहीं मिली थी इसलिए वह वापस साबरमती आश्रम नहीं जा सके। 1934 में देश के जाने माने व्यवसायी जमनालाल बजाज द्वारा गांधी जी को वर्धा आने का प्रस्ताव मिला। और गांधी जी वर्धा आए। वर्धा आने के बक़द डेढ़ साल तक वर्धा के मगनवाड़ी में रहे। और उसके बाद 1936 में सेवाग्राम आश्रम की स्थापना की। आश्रम की स्थापना के समय यहां केवल एक कुटी थी जिसे आदि निवास के नाम से जाना जाता था लेकिन आवश्यकता के अनुसार इस आश्रम में कुटियों की संख्या बढ़ती चली गयी।


आदि निवास

आदि निवास इस आश्रम की सबसे पहली कुटी है जिसमें गांधी जी ने स्थानीय लोगो की मदद से बनवाया था। ऐसी कुटी में गांधी जी अपने साथियों के साथ रहते थे। वर्तमान में इस आश्रम में गांधी के उपयोग की वस्तुएं रखी हैं जिसमें उनके नहाने का टब और रसोई घर है। बापू अपना लेखन, पठन पाठन, चिंतन और सूत कताई का काम करते थे।

बा कुटी

बा कुटी को कस्तूरबा गांधी की कुटी भी कहते हैं। शुरुआत में कस्तूरबा महात्मा गांधी के ही साथ आदि निवास में रहती थी, लेकिन इसमें हमेसा लोगो का आना जाना लगा रहता था इस लिए उनको नहाने और सोने के लिए असहजता होती थी। तदुपरान्त जमनालाल बजाज ने गांधी की अनुमति से कस्तूरबा के लिए एक अलग से कुटी बनवाई। वर्तमान में इस कुटी में कस्तूरबा के उपयोग की वस्तुएं रखी है जिमसें उनकी साड़ी, ब्लाउज, और जैकेट, चादर जैसे सामान उपलब्ध है।


बापू कुटी

आश्रम में जैसे- जैसे भीड़ बढ़ती गयी वैसे -वैसे कुटियों की संख्या भी बढ़ती गयी। बापू कुटी इस आश्रम की सबसे आकर्षण वाली कुटी है। जिसमें उनके सहयोगी राजकुमारी अमृत कौर , प्यारे लाल जैसे लोग साथ रहते थे। इस कुटी में बापू के बिस्तर , पढ़ने के लिए गीता , बाइबिल और कुरान उपलब्ध है। इस कुटी में वो जगह भी है जहाँ राजकुमारी अमृत कौर सोती थी। यह जगह उस समय में सीमेंट से लीपवाया गया था चूंकि राजकुमारी को मिट्टी से एलर्जी थी।

इस कुटी में बापू के मालिश का टेबल , विदेशी शौचालय और नहाने वाले पीतल के मटके उपलब्ध हैं।

बापू के दफ्तर

देश में जब टेलीफोन का नाम तक लोग नहीं सुनी थे उस दौर में बापू के इस दफ़्तर में अंग्रेजों ने गांधी जी से संपर्क साधने के लिए टेलीफोन की व्यवस्था की थी। इस कुटी में बापू के टाइपराइटर और सांप पकड़ने के पिजड़े उपलब्ध हैं। आजादी की लड़ाई जोरो पर थी उस समय इस आश्रम में लोगों का जमावड़ा लगता था। इसी कुटी में गांधी जी ने अतिथियों को रुकने के लिए व्यवस्था करवाई थी।

आखिरी निवास

आखिरी निवास कुटी जमनालाल बजाज ने अपने रहने हेतू बनवाई थी लेकिन वर्धा में रुकने के बाद उनका व्यापार घाटे में जाने लगा तब वो वहां से चले गए। उसी समय गांधी जी को अस्थमा की बीमारी हुई । डॉक्टर ने गांधी जी को किसी ऊंचे स्थान पर सोने के लिए कहा। आखिरी निवास उस आश्रम की सबसे ऊंची कुटी थी। इसलिए गांधी जी उसी में रहने लगे। देश के विभाजन के समय बंगाल के नोआखाली में साम्प्रदायिक दंगे भड़के हुए थे। गांधी अंतिम बार इसी कुटी से बंगाल के लिए रवाना हुए और फिर कभी वापस नहीं आ सकें।

  

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