मध्य प्रदेश में बारिश से बर्बाद सोयाबीन की कच्ची फसल निकालने को मजबूर किसान

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अशोक दायमा, कम्युनिटी जर्नलिस्ट

उज्जैन (मध्य प्रदेश)। पिछले दिनों हुई लगातार बारिश से सोयाबीन की फसल की चौपट हो गई, खेतों में पानी भरने से फसल सड़ने लगी है, मजबूरी में किसान कच्ची सोयाबीन की फसल काट रहा है। यही नहीं किसान समय से बीमा का भुगतान न होने पर आंदोलन करने की चेतावनी भी दे रहे हैं।

मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में खराब मौसम को देखते हुए किसान जल्दी से अपनी गीली फसल को निकाल रहे हैं। नागदा के किसान गोपाल कृष्ण कहते हैं, "हमारे यहां अतिवृष्टि ने पूरी सोयाबीन की फसल बर्बाद कर दी, सोयाबीन की पूरी फसल गीली हो गई, अब ऐसी ही हम निकाल रहे हैं। कोई फसल देखने नहीं आया, पटवारी आए भी तो एक जगह देखकर चले गए। तीन हजार की दवाई छिड़क दी है, करीबन सात हजार पर बीघा खर्च हो गया है, इसमें 35 किलो सोयाबीन पैदा हुई है, इसे क्या कहेंगे, ऊट में मुंह में जीरा की तरह है, इससे क्या हो पाएगा।"

किसानों के लिए पीला सोना कहे जाने वाला सोयाबीन पर इस बार प्रकृति ने ऐसा कहर बरपाया है कि किसान इसकी खेती ही छोड़ने की ही बात कर रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार के अनुसार प्रदेश में अभी तक बारिश के कारण लगभग 60 लाख एकड़ की फसल बर्बाद हो चुकी है। इससे 22 लाख किसानों के लगभग 9 हजार 600 करोड़ रुपए डूब चुके हैं। फाइनल आंकड़े आने अभी बाकी हैं लेकिन इन आंकड़ों से भी बदहाली की अंदाजा लगाया जा सकता है।

सोयाबीन की फसल की मड़ाई करते किसान

मध्य प्रदेश सरकार की मानें तो प्रदेश में सोयाबीन की पैदावार प्रति हेक्टयेर 25 कुंतल तक होती है। अब दिनेश पाटिल के हुए नुकसान का एक आकलन करते हैं। उन्होंने 40 एकड़ यानि लगभग 16 हेक्टेयर में सोयाबीन की खेती की जो पूरी तरह से बर्बाद हो चुकी है। सोयाबीन के लिए सरकार ने 3399 रुपए की एमएसपी (न्यूनतम समर्थन मूल्य) तय की है।

किसान लखन वर्मा बताते हैं, "सौ प्रतिशत फसल का नुकसान है और सरकार अभी भी कह रही है कि सर्वे करवाएंगे, सौ प्रतिशत नुकसान हो गया है अब क्या सर्वे करवाएंगे, मुख्यमंत्री मंदसौर में आए थे और वहां पर कहा था कि 15 तारीख से किसानों के खाते में बीमा की रााशि आ जाएगी। हम सरकार को चेतावनी देते हैं कि अगर 15 तारीख तक हमारे खाते में पैसे नहीं आए तो हम उग्र आंदोलन करेंगे।"

ज्यादा बारिश के बाद अंकुरित होने लगती है सोयबीन

sसरकार के आंकड़ों को ही केंद्र में रखकर देखें तो अगर दिनेश पाटिल की फसल सही होती तो 16 हेक्टेयर में सोयाबीन की कुल पैदावार 400 कुंतल होती जिसे अगर वे सरकारी तय रेट पर बेचते तो उन्हें 13,59,600 रुपए मिलता। इसमें से अगर उनकी लागत (12 हजार रुपए एकड़ के हिसाब से) 480,000 रुपए निकाल दें तो उन्हें कुल 8,79,600 मुनाफा हो सकता था जो पानी में डूब चुका है।

प्रदेश में सबसे ज्यादा नुकसान सोयाबीन की फसल का हुआ है। मध्यप्रदेश में सोयाबीन खरीफ की एक प्रमुख फसल है, जिसकी खेती लगभग 53.00 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल में की जाती है। देश में सोयाबीन उत्पादन के क्षेत्र में मध्य प्रदेश का पहला स्थान है, जिसकी हिस्सेदारी 55 से 60 प्रतिशत के बीच है। मध्य प्रदेश के हरदा, इंदौर, छिंदवाड़ा, नरसिंह, सागर, देवास, दमोह, छतरपुर, खंडवा, देवास जैसे जिलों में सोयाबीन की अच्छी खेती होती है।

  

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