आशा तिग्गा, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
पश्चिमी सिंहभूम (झारखंड)। पति की मौत के बाद जिनका घर से निकलना भी मुश्किल था, आज न केवल खुद खेती से मुनाफा कमा रही हैं, बल्कि कृषक मित्र बनकर दूसरों को खेती से मुनाफा कमाना सिखा रही हैं।
झारखंड के पश्चिम सिंहभूमि जिले के मनोहरपुर ब्लॉक से 17 किलोमीटर दूर सिमरता गाँव की रहने वाली सुभाषिनी महता (37 वर्ष) बताती हैं, “पहले से ही सब्जी की खेती करती थी, लेकिन पति के गुजरने के बाद अकेले खेत और परिवार संभालना मुश्किल हो गया था। साल 2014 में जब कस्तूरबा स्वयं सहायता समूह से जुड़ कर इसके माध्यम से आजीविका कृषक मित्र का काम शुरू किया, जिसमें उनको प्रशिक्षण के माध्यम से कई तरह के पौधे लगाना और कई किस्म की खाद बनाना सीखा।”
अब सुभाषिनी खाद बनाकर खेतों में छिड़काव करती हैं। वो बताती हैं, “पहले जो दुकान से खरीदकर खेतों में डालते थे, जिसके प्रभाव से खेत की मिट्टी कड़ी हो जाती थी और ज़मीन बंज़र होने का डर लगा रहता था। अब दीदी प्रशिक्षण के माध्यम से ऑर्गनिक खाद बनाकर खेतों में डालते हैं। जिससे अब फसलें लहलहा रहीं है और खेती का स्तर काफ़ी अच्छा हो गया है जिससे अच्छा मुनाफ़ा हो रहा है।”
सुभाषिनी पहले सीज़न के हिसाब से खेती करती थीं, लेकिन अब अकेले होने के कारण अपने एक एकड़ जमीन में केले की खेती की है जिसमें कुल 500 केले के पेड़ हैं और बीच बीच में आम के पौधे लगाए हैं। केला केवल 3 से 4 साल तक होगा तब तक आम का पौधा तैयार हो जायेगा। उनके और भी खेत हैं जिसमें उन्होंने तरबूज़, खीरा, करेला और लौकी की खेती किया है। तरबूज़ के सीज़न में तरबूज़ से काफ़ी अच्छी कमाई हो जाती है।
वो बताती हैं, “पहले तो घर से कहीं निकलते ही नहीं थे। पति के गुजरने के बाद और अगल बगल भी जाना बंद हो गया लेकिन अब स्वयं सहायता के माध्यम से लोगों से कैसे बात किया जाता है ये पता चला और साथ साथ गाँव शहर भी देखने को मिला। दिल्ली जैसी बड़ी शहर जाएंगे कभी सोचा नहीं था लेकिन स्वयं सहायता के माध्यम से मुझे काफ़ी कुछ सीखने जानने को मिला।”