सफल किसान की कहानी: भंवरपाल सिंह से सुनिए कैसे वो बने देश के सर्वश्रेष्ठ आलू किसान

आलू की खेती से नाम और पैसा कमाने वाले भंवरपाल सिंह से जानिए उनकी सफलता की कहानी ...
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सरसौल (कानपुर)। आलू की खेती करने वाले किसान भंवरपाल सिंह आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं, तभी तो उन्हें केन्द्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने सर्वश्रेष्ठ आलू किसान के पुरस्कार से भी सम्मानित किया है।

उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले के सरसौल ब्लॉक के महुआ गाँव के रहने वाले भंवरपाल सिंह खेती की शुरूआत के बारे में बताते हैं, “साल 1987 में इलाहाबाद से विधि स्नातक करने के बाद वहीं सिविल सर्विसेज की तैयारी करने लगा, उसके बाद 1992 में मैं वापस गाँव आकर खेती करने लगा, तब से लगातार खेती करते आ रहा हूं।”

भंवरपाल सिंह को गेहूं, मिर्च और धान की खेती के लिए भी कई जिला स्तरीय पुरस्कार मिले हैं। भंवरपाल सिंह कहते हैं, “पहले भी मुझे कई बार सम्मानित किया गया था, लेकिन अगर मैं अपने लिए सबसे गौरवपूर्ण दिन की बात करूं तो अक्टूबर, 2013 को वर्तमान प्रधानमंत्री और गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के पांच सौ जिले के पांच सौ किसानों में से हमको सम्मानित किया। वो हमारे लिए सबसे खुशी का दिन था।”

भंवर पाल सिंह इस समय एक 80 से 100 एकड़ में आलू की खेती करते हैं, भंवरपाल सिंह की माने तो उनकी जितनी लागत लगती है, वो हार्वेंस्टिंग के समय ही निकाल लेते हैं।

कई साल तक दूसरी फसलों की खेती करने वाले भंवरपाल सिंह ने साल 2000 में आलू की खेती की शुरूआत की। खेती में सफलता का मूलमंत्र समझाते हुए भंवरपाल सिंह कहते हैं, “हम तो सभी किसानों भाईयों से कहते हैं कि कोई भी खेती करें एक उसका दीर्घकालिक कार्यक्रम बना लें, आप एक लंबा कार्यक्रम बना लें कि हमें कोई भी खेती करनी है, तो कम से कम पांच से दस साल तो करनी ही है। हमारी युवा पीढ़ी खेती से भाग रही है ये खेती के लिए शुभ संकेत नहीं है क्योंकि जब युवा पीढ़ी आएगी तो खेती में नई तकनीक आएगी। आज इतनी ज्यादा नई तकनीक आ गई है, बहुत सारे कृषि संबंधित मोबाइल ऐप आ गए हैं, यूट्यूब है। अब तो जरूरी नहीं है कि आप किसी जानकारी लेने के लिए वैज्ञानिकों के पास ही जाएं, इतने सारे ऐप हैं मोबाइल है, थोड़ी देर में घर बैठे सारी जानकारी मिल जाती है।”

हिमाचल प्रदेश के शिमला में स्थित केंद्रीय आलू अनुसंधान संस्थान भी किसानों की मदद करता रहता है। संस्थान क्षेत्र के हिसाब से रोग प्रतिरोधी किस्में विकसित करता है, जिससे किसानों की लागत कम हो।

आलू की खेती से होने वाले फायदें के बारे में वो कहते हैं, “मैं तो सब किसानों से यही कहना चाहूंगा, आलू बोए तो अच्छी तकनीक, अच्छा बीज और हमारा मूल मंत्र समय का सदुपयोग, आलू में मशीनीकरण बहुत है कम से समय की किस्में आ गई हैं 90-100 दिन में आपका आलू तैयार हो जाता है। उत्पादन बहुत ज्यादा है आलू की खेती करना बहुत आसान है इसे आप बड़ स्तर पर कर सकते हैं। आज देश के हर एक नागरिक की थाली में वो चाहे दक्षिण, उत्तर, पूर्व या फिर पश्चिम का हो सबकी थाली में आलू की जरूरत है।”

ये बहुत देखना होता है कि आलू का दाम क्या है, 2014 में 20-25 रुपए किलो बिका और 2017 में वही आलू दो रुपए किलो बिका, तो ये देखना पड़ता है कि आलू का रेट क्या है। अगर 2020 की बात करें तो हमारा फायदा प्रति हेक्टेयर पांच लाख के करीब होना चाहिए। हम एक औसत रेट लेते हैं तब भी दो लाख रुपए प्रति हेक्टेयर कमाई हो जाती है।

आलू की खेती का गणित समझाते हुए कहते हैं, “आलू की खेती में कुछ बातों का ध्यान रखना होता है। सबसे पहले हमें गर्मी की गहरी जुताई कर लेनी चाहिए, इसके बाद हल्की जुताई करनी चाहिए। अगर किसान के पास कम्पोस्ट खाद उपलब्ध है तो बहुत बढ़िया है, नहीं तो हरी खाद में आप सनई, ढैंचा बो सकते हैं। सनई, ढैंचा बोने के उसकी खेत में ही जुताई कर दें, जिससे हमें बढ़िया कार्बनिक खाद मिल जाएगी।”

उसके बाद जब आलू की बुवाई करते हैं तो अगर खेत में पर्याप्त नमी नहीं होती है तो अक्टूबर के पहले सप्ताह में खेत का पलेवा करके दो-तीन गहरी जुताई कर देते हैं, क्योंकि इसमें से कूड़ बनती है उसमें अगर कूड़ नहीं अच्छी होगी जो आपके आलू का उत्पादन अच्छा नहीं होगा।

बीज आलू की बुवाई से कम से कम 15 दिन पहले हमें कोल्ड स्टोर से निकाल लेना चाहिए। अगर हम अपने घर के बीज का प्रयोग कर रहे हैं तो बीज निकालने के बाद तीन प्रतिशत बोरिक एसिड से सीड ट्रीटमेंट करने के बाद पंद्रह दिनों के लिए उसे हम किसी छायादार स्थान पर रख दें, जिसमें अंकुरण हो जाए।

अब हम आते हैं आलू के खेत में पोषण को लेकर उसके लिए हमें एनपीके डालना होगा, उसके बाद आलू की बुवाई में सबसे पहले हमें देखना है कि हमारा सीड कैसा है। अगर हम ऑटोमैटिक मशीनों से बुवाई करते हैं तो साबुत आलू बोते हैं। आलू के बीज के साइज 30-40 ग्राम होना चाहिए, इसकी बुवाई हमें करना चाहिए, इससे छोटा सीड नहीं होना चाहिए। नहीं तो इससे अंकुरण प्रभावित होता है और दूसरा इससे उत्पादन पर भी असर पड़ता है।

जब हम बुवाई पर चलते हैं तो हमें देखना होगा कि जो हमारे आलू कि कूड़ (मेड़) है वो कितनी मोटी होनी चाहिए।

जो हमारा राशन आलू है उसके लिए करीब 60 सेमी का रिज चाहिए, अगर हम चिप्सोना या फिर कोई और प्रोसेसिंग की किस्म को ले रहे हैं तो उसका साइज 65-67 सेमी होना चाहिए। सीड से सीड की दूरी अगर हमारा आलू 40 से 50 ग्राम का है तो 15 से 20 सेमी की दूरी होनी चाहिए। अगर हमारा सीड 60-100 ग्राम का है तो दूरी 25-30 सेमी की होनी चाहिए। इसके बाद हमको गहराई का खास ध्यान रखना होता है बहुत सी किस्में हैं जो नीचे की तरफ जाती हैं और बहुत सारी किस्में हैं जो ऊपर की तरफ जाती हैं।

फिर हमारा जो पहला काम होता है खेत में खरपतवार को कैसे हटाएं, उसके लिए हमें तीन से पांच दिन के अंदर खरपतवार नाशक 500 ग्राम 800-900 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर की दर से डाल देना चाहिए, जिससे खेत में खरपतवार उगेंगे ही नहीं।

इसके बाद अगला चरण आता है सिंचाई का, अगर हमारे खेत में पर्याप्त नमी है क्योंकि हमने पलेवा करके आलू बोया है तो दस दिन के अंदर पहला और हल्का पानी देना चाहिए,

इसके बाद जब हमारा आलू 35-40 दिन का हो जाता है तो जब एक लाइन से दूसरी लाइन का आलू छूने लगे तो तब हमें एक स्प्रे की जरूरत है, जिससे कि उसमें अगेती झुलसा जैसी बीमारी का प्रकोप न हो। इसके लिए मैंकोजेब का स्प्रे करते हैं।

अब हम हार्वेस्टिंग कैसे करेंगे, इसके लिए देखना होगा कि खेत की मिट्टी टाइट न होने पाए, क्योंकि इससे हार्वेस्टिंग करेंगे तो आलू खराब हो जाएगा। हमको ये चाहिए कि हमारी मिट्टी भुरभुरी बनी रहनी चाहिए और तापमान बहुत ज्यादा न बढ़ने पाए।  

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