उत्तर प्रदेश: सीतापुर में चीनी मिल से निकले दूषित पानी से खराब हो रही फसल, ग्रामीणों को है बीमारियों का डर

उत्तर प्रदेश के सीतापुर में एक चीनी मिल पड़ोसी गांव में खुले में गंदा पानी बहा रही है, जिससे ग्रामीण परेशान हैं। ग्रामीणों का दावा है इससे उनकी जमीन बंजर हो रही है और फसल उत्पादन भी कम हो रहा है, जबकि फैक्ट्री प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी इन आरोपों से इनकार करते हैं।

Mohit ShuklaMohit Shukla   6 Aug 2021 11:05 AM GMT

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जुहरी (सीतापुर), उत्तर प्रदेश। सीतापुर जिले के जुहरी गांव के करीब 800 ग्रामीण मुश्किल में हैं। जुहरी के रहने वाले संतोष ने गांव कनेक्शन को बताया, "हवा के चलने के साथ ही गांव में असहनीय दुर्गंध आने लगती है।"

"यह इतना बुरा है कि इससे हमारी भूख प्रभावित हो रही है।" उन्होंने कहा। संतोष ने दावा किया कि इसकी वजह से उनके परिवार के तीन लोग बीमार हो गए थे।

यूपी की राजधानी लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर स्थित इस गांव में दुर्गंध ही एकमात्र समस्या नहीं है। जुहरी के किसानों की शिकायत है कि उनके खेतों की जमीनें बंजर हो रही हैं और उनके खेतों में अक्सर बहने वाले दूषित पानी के कारण फसलें मुरझा रही हैं।

ग्रामीणों का दावा है कि पास की एक चीनी मिल से दुर्गंध और जहरीला कचरा आता है। बारिश के महीनों में स्थिति और खराब हो जाती है, जैसे कि अब है। मिल से निकला कचरा उनके खेतों में बहकर आ जाता है।

"अगर हम ठीक से ध्यान ना दें तो हमारे मवेशी इस पानी को पी लेते हैं और बीमार हो जाते हैं।" संतोष ने कहा।

फैक्ट्री का गंदा पानी खेतों में बहकर खेतों में चला जाता है। सभी तस्वीरें: मोहित शुक्ला

ग्रामीणों के अनुसार, खैराबाद ब्लॉक में स्थित चीनी मिल - डालमिया शुगर मिल्स जवाहरपुर - नियमित रूप से अपने लैगून (तालाब या बेसिन जैसी एक जगह जो कचरा या अपशिष्ट जल को रोकने और उसे फिल्टर करती है ) से गंदा पानी छोड़ता है। उनका आरोप है कि हजारों लीटर पानी रात में छोड़ दिया जाता है, और वे गांव के आस-पास के नालों को भर देते हैं जो रिसकर खेतों तक पहुंचते हैं और भूजल भी प्रदूषित कर रहे हैं।

2007 में स्थापित चीनी मिल की कुल गन्ना पेराई क्षमता 7,500 टन प्रति दिन है। इसकी कुल डिस्टिलरी क्षमता 120 किलो लीटर प्रतिदिन है।

हालांकि फैक्ट्री के अधिकारी इन सभी आरोपों से इनकार करते हैं। डालमिया चीनी मिल, जवाहरपुर के इकाई प्रमुख टीएन सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया, "चीनी मिल में पानी नहीं है और लैगून खाली है।" "इसलिए मिलों से पानी नहीं निकलने दिया जा रहा है। वास्तव में, मिल किसानों को सिंचाई के लिए पानी देकर मदद कर रही है, " उन्होंने दावा किया।

लेकिन, जब गांव कनेक्शन ने 27 जुलाई को साइट का दौरा किया, तो उसे चीनी मिल का लैगून मिला, जिसमें बिना ट्रीट (बिना फिल्टर) वाला पानी भरा हुआ था। पानी फैक्ट्री की चारदीवारी से रिस रहा था। रंगहीन और बदबूदार पानी पाइप से बाहर निकल गया।

"यह भयानक है, क्योंकि पानी रिसकर हमारे खेतों में चला जाता है और हमारी फसलों को नुकसान पहुँचाता है। इतना ही नहीं, यह हमारी सड़कों पर कीचड़ कर देता है जिस कारण बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है, "संतोष ने शिकायत की।

चीनी मिलें उन उद्योगों की सूची में तीसरे स्थान पर हैं जो अपशिष्ट जल की अधिकतम मात्रा उत्पन्न करते हैं।

किसानों की फसल बर्बाद

ग्रामीणों का आरोप है कि फैक्ट्री से निकलने वाला जहरीला कचरा अक्सर फसल को नुकसान पहुंचाता है। "मेरे पास चीनी मिल से सटी नौ बीघा [1.2 हेक्टेयर] ज़मीन है। गंदे पानी ने मेरा धान बर्बाद कर दिया है, "जुहरी के एक किसान कमलेश गौतम ने गांव कनेक्शन से शिकायत की।

45 वर्षीय गौतम ने दावा किया कि पिछले सीजन में भी गंदे पानी से उनकी गेहूं की चार बीघा फसल बर्बाद हो गई थी। "प्रत्येक बीघा जमीन छह क्विंटल गेहूं की पैदावार होती है। जब मैंने मिल से शिकायत की, तो उन्होंने मुझे केवल पांच हजार रुपए का मुआवजा दिया, और मुझे इससे संतुष्ट होना पड़ा, "गौतम ने कहा।

अपने खेतों में जहरीला पानी दिखाते गौतम।

वे अपने खेत में बहते हुए जहरीले पानी की ओर इशारा करते हैं और भावुक होते हुए कहते हैं, "मुझे पता है कि फसल अच्छी दिख रही है, लेकिन इससे अनाज नहीं निकलेगा।"

गौतम ने कहा, यह अभी की समस्या नहीं है। 2007 में चीनी मिल के आने के बाद से ही दूषित पानी का रिसाव हो रहा है। उन्होंने कहा, "हमने शिकायत करने की कोशिश की, लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ।"

बीमारियों का डर

जुहरी के लोगों की शिकायत है कि चीनी मिल से निकलने वाला गंदा पानी गांव में गंदगी फैला रहा है जिसकी वजह से बीमारियां फैलती हैं। एक युवा किसान और जुहरी के निवासी गिरीश कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, "हमारे गांव के तालाब और अन्य जल निकाय इतने दूषित हैं कि हमारे जानवर भी उनसे पानी नहीं पीते हैं।"

उन्होंने शिकायत की कि मक्खियों और मच्छरों के झुंड की वजह से हम अपने मवेशियों के लिए खड़े होकर घास तक नहीं काट पा रहे हैं। "मुझे लगता है कि बीमारी हमसे बहुत दूर नहीं है, फिर भी चीनी मिल ने मक्खियों और मच्छरों को दूर करने के लिए एक बार भी क्षेत्र में छिड़काव करने की जहमत नहीं उठाई, "गिरीश कुमार आगे कहते हैं।

गिरीश कुमार का कहना है कि उनके गांव के जलाशय इतने दूषित हैं कि जानवर भी उनका पानी नहीं पीते हैं।

चीनी मिलों से प्रदूषण

सबसे अधिक प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों में से कुछ चीनी मिलें और डिस्टिलरीज हैं। वे भारत के 17 सबसे अधिक प्रदूषणकारी उद्योगों की सूची में शामिल हैं, जो गंगा नदी में पानी छोड़ते हैं। यह एक बहुत ज्यादा जल-दोहन करने वाला कारोबार भी है, जिसमें गन्ने की खेती से लेकर चीनी बनाने तक की प्रक्रिया में बहुत ज्यादा पानी की खपत होती है।

चीनी मिलें उन उद्योगों की सूची में तीसरे स्थान पर हैं जो सबसे अधिक मात्रा में अपशिष्ट जल पैदा करते हैं, जिनमें से अधिकांश को बहा दिया जाता है। सीतापुर में कुल चार चीनी मिलें हैं।

"चीनी मिलें अपशिष्ट जल बहाकर जल निकायों और भूमि को प्रदूषित करने में एक प्रमुख भूमिका निभाती हैं। पेराई के मौसम में ये मिलें बिना किसी ट्रीटमेंट के प्रतिदिन बड़ी मात्रा में अपशिष्ट जल प्रवाहित करती हैं, "संजय अरोड़ा, प्रमुख वैज्ञानिक, आईसीएआर-केंद्रीय मृदा लवणता अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय अनुसंधान स्टेशन, लखनऊ ने गांव कनेक्शन को बताया।

उनके अनुसार, चीनी मिल के अपशिष्ट (कचरे) में प्रदूषण का भार बहुत अधिक होता है और यह लगातार सिंचाई के लिए उपयोग किए जाने पर फसलों को हानिकारक रूप से प्रभावित करता है। परिणामस्वरूप, विभिन्न तत्वों की अधिक मात्रा मिट्टी में जमा हो जाती है और इसे प्रदूषित कर देती है।

"इन अपशिष्ट जल में उच्च बीओडी [biological oxygen demand] और सीओडी [chemical oxygen demand] के साथ-साथ कार्बोनेट्स और बाय-कार्बोनेट की मात्रा काफी होती है जो मिट्टी के स्वास्थ्य को खराब करती है और मिट्टी को ऊसर में बदल सकती है। "अरोड़ा ने कहा। उन्होंने चेतावनी दी, "यदि इन पानी का लंबे समय तक उपयोग किया जाता है, तो यह मिट्टी को बंजर और अनुपयोगी भी बना सकता है।"

प्रशासन का आरोपों से इनकार

फैक्ट्री प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी दोनों ही ग्रामीणों के आरोपों से इनकार करते हैं। संपर्क करने पर पर्यावरण इंजीनियर चंद्रेश कुमार, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, लखनऊ ने कहा कि जवाहरपुर चीनी मिल मई से अक्टूबर के बीच बंद रहती है, जब मशीनरी आदि की मरम्मत की जाती है। "सभी पर्यावरण दिशानिर्देशों का पालन किया जा रहा है," उन्होंने जोर देकर कहा।

"हो सकता है कि बारिश के कारण कुछ पानी नालियों में रिस गया हो। लेकिन इसकी जांच की जाएगी, "उन्होंने गांव कनेक्शन को बताया।

इस बीच, जुहरी के निवासियों को अभी भी उस बदबू से राहत नहीं मिली है जो लगातार उनके साथ बनी हुई है। वे इस डर में हैं कि इस अपशिष्टों से उनके जल स्त्रोत दूषित हो जाएंगे और उनकी फसलें अपनी ताकत खो देंगी।

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