रणविजय सिंह/सुयश सादिज़ा
”नदी में डूबने से तो बहुतों को बचाया है, लेकिन इसका कुछ लिखित नहीं है मेरे पास, कोई रजिस्टर तो है नहीं कि नोट करेंगे, वैसे भी नोट करके करेंगे क्या?” फिर कुछ सोचते हुए- ”नोट किया होता तो सैगर (बहुत) हो जाते।” यह बात लखनऊ के कुड़ियाघाट पर नाव चालने वाले पुरुषोत्तम मल्लाह (30 साल) कहते हैं।
अब तक करीब 50 से ज्यादा लोगों को डूबने से बचा चुके पुरुषोत्तम कहते हैं, ”मैं इंसान के नाते काम कर रहा हूं, इंसानियत के नाते लोगों को बचा रहा हूं। जो डूब रहा है उसे निकाल लाओ उसका भाग्य होगा तो बच जाएगा।”
पुरुषोत्तम मल्लाह के अब तक के जीवन को देखें तो वो इंसानियत की मिसाल लगते हैं। एक छोटा सा लड़का जो अपने नाना के साथ नाव चलाने कुड़ियाघाट पर आया। फिर नाव, नदी और यहां की दरगाह से ऐसा लगाव हुआ कि अपना जीवन यहीं समर्पित कर दिया। पुरुषोत्तम बचपन से ही कुड़ियाघाट पर नाव चलाने लगे और वहीं पास की दरगाह दरिया शरीफ में साफ सफाई का जिम्मा उठा लिया।
इस दौरान दरगाह में आने वाले श्रद्धालुओं को गोमती नदी की सैर कराना और इस काम से मिलने वाले मेहनताने से अपना गुजर बसर करना ही उनका जीवन हो गया। दरगाह के पास ही गोमती नदी के किनारे रहने वाले पुरुषोत्तम अपने टीन के बक्से में से कुछ कागजात और अखबारों की कतरन दिखाते हुए कहते हैं, ”लोगों को डूबने से बचाने के लिए कई बार सम्मानित किया गया है। लखनऊ के डीएम ने भी सम्मानित किया। मेरी असल कमाई तो यही है।”
दरगाह दरिया शरीफ में अपनी आस्था को जताते हुए पुरुषोत्तम बताते हैं, ”एक जरिया है नाव का और सेवा है बाबा की। मैंने बाबा को मां-बाप माना है। रोज सुबह दरगाह का दरवाजा खोलना, फिर सफाई करना यह मेरी जिम्मेदारी है। इसके बाद नहा धोकर पूजा पाठ करने के बाद अपने नाव पर आ जाते हैं। दिन भर नाव चलाए, जो मिला उससे जीवन चल रहा है।” इस सवाल पर कि क्या किसी को आपत्ति नहीं होती कि एक हिंदू दरगाह की सफाई कर रहा है, कभी किसी ने कुछ कहा नहीं? इसपर पुरुषोत्तम कहते हैं, ”जो दरगाह में लेटे हुए बाबा हैं उनको ऐतराज नहीं तो दुनिया को क्या होगा।”
पुरुषोत्तम इसी बात में अपनी बात जोड़ते हुए कहते हैं, ”कई बार लोग डूब रहे होते हैं तो पास ही खड़े लोग कहते हैं वो मुस्लिम है उसको मत निकालो, यह सब मैं नहीं मानता, जीव तो एक ही है न, आत्मा तो एक ही है न। सैफ अली था 5 साल का बच्चा, यहीं गिर गया था, उसको भी निकाल कर बाहर लाया।” पुरुषोत्तम कहते हैं, ”जो लोग हिंदू मस्लिम करते हैं उनका तो ऊपर वाला ही जानेगा।”
दरगाह पर आने वाले एक श्रद्धालु रईस सिद्दीकी करीब 4-5 साल की उम्र से पुरुषोत्तम को देखते आ रहे हैं। रईस कहते हैं, पुरुषोत्तम तो समाज सेवक है, यहां नदी में छलांग लगाने वाले लोगों को बचाने का बड़ा भारी रिकॉर्ड है उसका। करीब 50 से 60 लोगों को बचाया है। साथ ही इस दरगाह की सफाई की जिम्मेदारी भी पुरुषोत्तम ही उठाते हैं, उनके नाना भी यहां आते थे।” रईस चेहरे पर मुस्कान लिए कहते हैं, ”यह मेरी खुशनसीबी है कि एक गैरमुस्लिम और हिंदू मेरे लिए दरगाह को साफ कर रहा है और मैं वहां आ रहा हूं।”