इन मज़दूरों को आठ घंटे में दो बार पानी मिलना भी है मुश्किल

Nidhi JamwalNidhi Jamwal   1 May 2019 4:38 AM GMT

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झारखण्ड। गिरिडीह जिले के तिसरो गांव में रहने वाले आदिवासियों की ज़िन्दगी माइका की खदानों पर निर्भर करती है। वे माइका चुनने के लिए खदानों में खुदाई करते हुए अंधेरी गुफाओं में जाने को मजबूर हैं। नीचे न तो रौशनी है, न ही पानी या भोजन की व्यवस्था। यहां तक कि हर बार पानी पीने के लिए भी उन्हें खदान से बाहर निकलना पड़ता है।

माइका की खदान में काम करने वाले मजदूर बुद्धन मरांडी बताते हैं, "पीने का पानी खदान में नहीं ले जा सकते। पानी पीने के लिए हर बार बाहर आना पड़ता है। आठ घंटे की नौकरी में पानी पीने के लिए एक-दो बार बाहर आते हैं।"

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तोताराय कहते हैं कि हमारे यहां कोई काम नहीं है। ढीबरा चुनकर ही हम लोग खाते हैं। यहां केवल धान और मकई होता है। थोड़ा बहुत मकई होता है। ढीबरा चुनने के लिए कई जगह गड्ढे करने पड़ते हैं। कहीं गड्ढा किए तो 5-6 फीट में खत्म हो गया ढीबरा। कहीं गड्ढा किए तो 40 फीट भी हो जाता है। बस इस ही तरह जो है कि चलता है।

एक महिला कहती हैं "क्या करेंगे? ढीबरा बीन के खाते हैं। पांच रुपए किलो बिकता है।"

सरकार चाहे जो भी रही हो इन आदिवासियों की ज़िन्दगी यही है। इसमें कोई बदलाव नहीं आया। पुश्तों से माइका की खतरनाक खदानों में ये काम कर रहे हैं आदिवासी।

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सवेरा फाउंडेशन के जयराम प्रसाद कहते हैं, "आदिवासी माइका दुकान में बेचते हैं। दुकान वाले तीसरी बाज़ार में और फिर वहां अलग-अलग क्वालिटी देख कर गिरिडीह भेजा जाता है। गिरिडीह में टेस्ट हो कर कलकत्ता जाता है। वहां से बाहर जाता है। कई बार गांव वाले गांव भी ले आते हैं, यहां माइका को छांट कर बेचते हैं तो ज़्यादा पैसे मिलते हैं।"

सवेरा से ही अशोक कुमार बताते हैं कि लोगों के पास कोई और विकल्प ही नहीं है। उन खदानों में लोगों की ज़िन्दगी को खतरा है लेकिन पेट की भूख के लिए वो काम करने को बाध्य हैं। हर साल बारिश कम होती जा रही है। गांव में पानी का कोई साधन नहीं है तो पानी की स्थिति बिगड़ती जा रही है।

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