पोखरण के मशहूर मिट्टी कारीगरों को भी नहीं मिल पाया बाजार, कई लोगों ने शुरू कर दिया दूसरा व्यवसाय
गाँव कनेक्शन 22 Jun 2020 3:07 PM GMT
चंद्रभान सोलंकी, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
पोखरण (जैसलमेर, राजस्थान)। यहां की लाल मिट्टी से बने खिलौने और बर्तन राजस्थान ही नहीं दूसरे राज्यों तक मशहूर हैं, लेकिन कोरोना की मार से ये व्यवसाय भी नहीं बच पाया, गर्मी की शुरूआत में जब इन्हें बेचते हैं, लॉकडाउन से कुम्हारों को बाजार ही नहीं मिला। कई कुम्हारों ने तो दूसरा व्यवसाय शुरू कर दिया, लेकिन कई लोगों को अब भी उम्मीद है।
राजस्थान के जैसलमेर जिला मुख्यालय से लगभग 100 किमी दूर पोखरण परमाणु परीक्षण के लिए जाना जाता है, लेकिन यहां के कुम्हारों की कारीगरी ने भी पोखरण को विश्वभर में पहचान दिलायी है। यहां के लाल मिट्टी से बने कलात्मक व आकर्षक खिलौनों, बर्तनों ने भी देशभर में ही नहीं विदेशों तक मशहूर हैं। यहां के लगभग 200 परिवारों का खर्च ही मिट्टी के बर्तन बनाकर चलता है।
पोखरण कस्बे में रहने वाले मोहन राम प्रजापति के यहां कई पीढ़ियों से मिट्टी के बर्तन बनाने का कमा हो रहा है। मोहनराम बताते हैं, "लॉकडाउन के चलते विदेशी पर्यटक यहां घूमने के लिए आते थे ,और अच्छा खासा व्यापार हमारा चलता था लेकिन अब ना तो देश के पर्यटक यहां घुमने आ रहे हैं और ना ही विदेशी पर्यटक जिससे हमारे व्यापार पर खासा असर पड़ा है, परिवार चलने में भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हैं ।
इस समय इनके द्वारा बनाए गए मिट्टी के बर्तनों की मांग बाजार में नहीं हैं। फिर भी वो अपने काम में लगे हुए हैं। कुम्हारों को उम्मीद है कि जल्द ही कोरोना संक्रमण से निजात मिलेगी। बाजार में बर्तनों की डिमांड रहेगी। इसलिए उम्मीद की आस में अभी भी परिवार के सदस्यों के साथ मिट्टी के बर्तन बना रहे हैं। लोगों ने बताया कि आम दिनों में मिट्टी के बर्तनों के साथ खिलौनों की डिमांड रहती है, लेकिन कोरोना महामारी के दौरान बाजार व लोगों के नहीं आने से खरीददार नहीं हैं।
लाल मिट्टी से निर्मित ये खिलौने भी देशी विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर से आकर्षित करते है। दुकानों पर रखे गए इन कलात्मक खिलौनों व मिट्टी से बने बर्तन को देशी विदेशी पर्यटक खरीदकर अपने साथ ले जाते है और इन्हें मकान के अंदर, डायनिंग हॉल, मकान के बाहर लॉन आदि में सजाकर रखते है, जिससे पोकरण की कला एवं संस्कृति की ख्याति को आगे बढाने में खासी मदद मिल रही है।
कई लोगों ने तो अपना पुश्तैनी काम छोड़कर फल और सब्जियां बेचनी शुरू कर दी है। सत्यनारायण प्रजापति आज बताते हैं कि पोखरण की हस्तकला कारीगर अपने परिवार को चलाने के लिए मजबूरी में कोई या तो फल या सब्जी बेचकर अपना परिवार चला रहे हैं समस्या तो काफी है लेकिन पता नहीं अब कब काम हम लोगों का चल पाएगा।
ये भी पढ़ें: चंदेरी साड़ियां बुनने वाले 5 हजार हैंडलूम लॉकडाउन, 10 हजार से ज्यादा बुनकर बेरोजगार
More Stories