जींद (हरियाणा)। नेहा रोज सुबह साढ़े सात बजे आठ किलोमीटर साइकिल चलाकर अपने गाँव से शहर सिर्फ इसलिए आती हैं कि क्योंकि उन्हें यहां की लाइब्रेरी में पढ़ाई करने के लिए वो सारी सुविधाएं मिलती हैं जो उन्हें अपने घर पर नहीं मिल पाती।
नेहा पिछले छह महीने से जींद जिले के गांधीनगर स्थित जिला पुस्तकालय में सरकारी नौकरी के लिए तैयारी कर रही हैं। वे जिला मुख्यालय से करीब पांच किलोमीटर दूर खोखरी गाँव में रहती हैं। वह बताती हैं, “सुबह साढ़े सात बजे घर से निकलते हैं ताकि नौ बजे तक लाइब्रेरी पहुंच सकूं। मुझे इस लाइब्रेरी से बहुत फायदा होता है। घर में काम की वजह से पढ़ाई हो नहीं पाती। यहां ऑनलाइन क्लास भी करने को मिलती है।” नेहा जैसे सैंकड़ों युवा दूर-दूर गाँव से इस लाइब्रेरी में पढ़ने के लिए आते हैं।
चार साल पहले इस लाइब्रेरी को जनसहयोग से शुरू किया गया था। तब इसमें कोई सुविधा नहीं थी लेकिन धीरे-धीरे प्रशासन, सामाजिक कार्यकर्ताओं और स्टाफ की मदद इसमें कई बदलाव किए गए। युवाओं को अच्छी से अच्छी शिक्षा मिल सके इसके लिए लाइब्रेरी में वाईफाई, ऑनलाइन क्लास, बिजली समेत कई व्यवस्थाएं उपलब्ध कराई गई। आज यहां 250 से भी ज्यादा बच्चे पढ़ाई करने के लिए आते हैं।
विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं, साहित्य समेत इस लाइब्रेरी में हज़ारों किताबें मौजूद है। लाइब्रेरी के बारे में जानकारी देते हुए पुस्तकालय प्रभारी रेणुका बताती हैं, “पांचवीं क्लास के बच्चों के लिए, युवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं, आत्मविश्वास बढ़ाने और पर्सनालिटी डेवलपमेंट के साथ-साथ हज़ारों की संख्या में किताबें हैं।” रेणुका आगे कहती हैं, “इस लाइब्रेरी में लड़कों से ज्यादा लड़कियों की संख्या है। रोजाना 100 लड़कियां दूर-दूर गाँव से हमारे यहां आती हैं और इसके लिए फीस इतनी ही ली जाती है कि जिसे सभी लोग वहन कर सकें “
सामाजिक कार्यकर्ता सुनील वशिष्ठ बताते हैं, “चार साल पहले इसकी लाइब्रेरी की हालत काफी खराब थी पुरानी बिल्डिंग, पुराना फर्नीचर, खराब व्यवस्थाएं। तब लोगों का सहयोग लिया गया और इसको तैयार किया ताकि दूर-दूर गाँव से युवाओं को अच्छी शिक्षा मिले वह सरकारी नौकरी के लिए पढ़ सके। इसमें सरकार और जिलाधिकारी ने भी आर्थिक मदद की है।” वह आगे कहते हैं, “इस लाइब्रेरी से और बच्वे पढ़ सके इसके लिए क्षमता बढ़ा रही है। अगले साल 500 बच्चे इस लाइब्रेरी में बैठ सकेंगे।”
कई बच्चों की लग चुकी सरकारी नौकरी
पुस्तकालय प्रभारी रेणुका कहती हैं, “चार सालों में कई ऐसे बच्चे है जिनकी यहां से पढ़ाई करने के बाद सरकारी नौकरी लग चुकी है। जब वह मिठाई का डिब्बा लेकर आते हैं तब हम लोगों को पता चल पाता है।”