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आदिवासियों का आम उत्सव होता है ‘मरका पंडुम’

#Swayam Story

कांकेर (छत्तीसगढ़)। प्रकृति का उत्सव मनाने के लिए आदिवासी अलग-अलग पर्व मनाते हैं, उसी में से एक पर्व है ‘मरका पंडुम’। इस पर्व में हजारों आदिवासी एक जगह पर इकट्ठा होकर उत्सव मनाते हैं।

छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से 120 किमी की दूरी पर उत्तर बस्तर कांकेर में बस्तर संभाग के आदिवासी हजारों की तादात में इकट्ठा हुए जहां अपने देवी देवताओं को नए आम का फल चढ़ा कर आम उत्सव मनाया गया।

कांकेर के बेवरती गांव से आए आदिवासी ग्रामीण कन्हैया उसेंडी कहते हैं, “आदिवासियों का आम को लेकर मनाए जाने वाला उत्सव आदिवासी संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रखता है, स्थानीय गोंडी भाषा में इसे “मरका पंडुम” के नाम से जाना जाता है, गोंडी भाषा मे मरका का अर्थ आम होता है और पंडुम का अर्थ त्यौहार या उत्सव होता है।


कन्हैया आगे कहते हैं, “प्राकृतिक से बढ़कर आदिवासियों के लिए कुछ भी नही है। इसीलिए जब नए आम का फसल आता है तो आदिवासी उसे अपने देवी-देवताओं को चढ़ा कर नए आम का फल खाने की अनुमति मांगते हैं। कांकेर जिला मुख्यालय में स्थित गोंडवाना भवन में आस-पास के ग्रामीण इकट्ठा होते है और यह उत्सव मनाया जाता है।

कांकेर जिले के माकड़ी गांव से आए ग्रामीण योगेश नरेटी कहते हैं, “आम को जैसे आम शब्दों में फलों का राजा कहा जाता है ठीक वैसे ही हम नए आम का फल खाने से पहले प्राकृतिक की पूजा करते है प्राकृतिक ने हमे फल दिया है जिसका हम उपयोग करते है। हम आम का ही नही महुवा, चार तेंदू और भी वनोपज फल का उत्सव मनाते हैं।

यह आदिवासियों का यह मरका पंडुम उत्सव हर साल मनाया जाता है। जिला मुख्यालय से शुरू होकर यह ब्लॉक स्तरीय फिर हर गांवों में मरका पंडुम का उत्सव मनाया जाता है।

आदिवासी जगत मरकाम कहते हैं, “हमारे पुरखों ने प्रकृति मे मानव जीवन को सुखमय जीवन जीने के लिए मौसम आधारीत आने वाले फल, फूल, पेड़ पौधे आदि को प्रकृति में अनंत समय तक बनाये रखने के लिए पूर्वजो द्वारा अर्जित ज्ञान के मद्देनजर मरका पंडुम (आम उत्सव) को मना कर आने वाली नई पीढ़ी को एक शिक्षा दी जाती है ताकि वो प्राकृतिक के संतुलन को बनाए रखे।


मरका पंडुम (आम उत्सव) के वक्त स्थानीय गोंडी भाषा मे एक गीत गाया जाता है। “मरका पंडुम को को को, रेका पंडुम को को को, गोर्रा पंडुम को को को”

इस गोंडी गीत का अर्थ होता है। आज से जब भी हम आम खाये पक्के वाला को ही तोड़कर खाएं कच्चे आम को खराब ना करें ताकि बारिश के आते ही नये आम का पौधा जग कर पेड़ बने और आने वाली नई पीढ़ी पेंड पौधों को संरक्षित कर प्रकृति की संतुलन को बनाये रखने में हम अपना योगदान दे।

आदिवासी युवक भोजराज मंडावी कहते हैं, “हम आदिवासी प्रकृति पूजक है, यह बात प्रमाणित कैसे होगी यह प्रमाणित होगी हमारी पंडुम व्यवस्था से। क्योंकि हमारे पंडुम प्रकृति व विज्ञान सम्मत है। जिसमें उनके संरक्षण, संवर्धन व रख रखाव का नियम निहित है। बाहरी आडंबरो व दिखावे से कोसो दूर, हमारे सात पंडुम में से एक मरका पंडुम (आम उत्सव) है। जिसमे मरका (आम) के पूर्णतः परिपक्व होने के बाद उसे सर्वप्रथम अपने  पुरखों को अर्जित किया जाता है, तब उसे खाया जाता है। वह भी उतनी ही मात्रा में ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए भी वह सुरक्षित रहे। हमारे महान वैज्ञानिक सियानो की बनाई इस महान व्यवस्था पर मुझे गर्व है।


इसी कड़ी में बस्तर संभाग के कांकेर जिला मुख्यालय में आदिवासी समुदाय ने हर्षोल्लास से मरका पंडुम आम का उत्सव मनाया। इस मौके पर समुदाय ने शहर में विशाल रैली निकाली और भीरावाही में स्थित बूढ़ा देव सहित अन्य देवी देवताओं का पारंपरिक तरीके से पूजन किया। कांकेर के ही ग्राम सिंगारभाठ के गोंडवाना भवन से देव रैली सुबह 9 बजे बाजे गाजे के साथ निकली गई। शहर के मुख्य मार्ग होते रैली भीरावाही के गोंडवाना समाज भवन पहुंची। आम उत्सव के प्रथम दिवस जिला भर से देवी देवता पहुंचे थे। जहां दूसरे दिन रैली निकालकर देवी देवताओं का पूजन किया गया।

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