कैसी है देश दुनिया से कटे महाराष्ट्र के इन 24 आदिवासी गाँवों की कहानी?

महाराष्ट्र के नंदुरबार ज़िले में उदई नदी के किनारे करीब 12 हज़ार भील आदिवासी भगवान भरोसे हैं। स्वास्थ्य, शिक्षा और रोज़गार तो दूर उनकी आवाज़ तक सुनना मुश्किल है। प्रशासन के लिए भी उन तक पहुँचना टेढ़ी खीर है। वजह है नदी पार के लिए पुल का नहीं होना।

Satish MalviyaSatish Malviya   19 May 2023 12:50 PM GMT

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धड़गाँव (नंदुरबार), महाराष्ट्र। बिलगाँव की अनीता वड़वी को जैसे ही नदी पार धड़गाँव से किसी के गंभीर बीमार होने की ख़बर लगती है वो सहम जाती हैं। इस डर की बड़ी वजह है, जिसे गाँव का हर शख़्स जानता तो है लेकिन कुछ कर नहीं पाता।

अनीता वड़वी गाँव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में स्वास्थ्य आरोग्य सहायिका हैं। उन्होंने कई लोगों को समय पर इलाज़ नहीं मिलने से मरते देखा है।

अनीता गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "उदई नदी के दूसरी तरफ के 24 व धड़गाँव तालुका के इस हिस्से से कटे हुए हैं और लोगों को स्वास्थ्य केंद्र तक पहुँचने के लिए पहाड़ी इलाकों में चार घँटे तक का सफर करना पड़ता है। बरसात के तीन महीने तो नदी के उस पार के गाँवों से सम्पर्क पूरी तरह टूट जाता है।"

आने जाने का सिर्फ एक साधन नाव है, हालात तब और गंभीर हो जाते हैं जब मानसून के मौसम में सभी आदिवासी गाँव पानी में डूब जाते हैं। सभी फोटो: सतीश मालवीय

धड़गाँव तालुका के 12 हज़ार भील आदिवासियों तक बुनियादी सुविधाओं की पहुँच नहीं है। वे बाहरी दुनिया से पूरी तरह कट गए हैं। 15 साल पहले एक पुल बनने की उम्मीद जगी थी, लेकिन वो भी पूरी नहीं हुई।

आने जाने का सिर्फ एक साधन नाव है, हालात तब और गंभीर हो जाते हैं जब मानसून के मौसम में सभी आदिवासी गाँव पानी में डूब जाते हैं। गाँव के लोग कहते हैं दशकों से चुनावी वादों के बावज़ूद कुछ भी नहीं बदला है।

“लगभग 15 साल पहले शुरू हुआ पुल निर्माण कार्य अभी तक पूरा नहीं हुआ है। काम ही नहीं हो रहा है। इसे बनाने वाले कॉन्ट्रेक्टर अपना सामान छोड़ कर यहाँ से जा चुके हैं,"। जीवनशाला (आदिवासी बच्चों के स्कूल) के शिक्षक रमेश ज्ञान ने गाँव कनेक्शन को बताया। उन्होंने कहाँ इस क्षेत्र में शिक्षा सबसे ज़्यादा प्रभावित है।

गाँव के लोग कहते हैं दशकों से चुनावी वादों के बावज़ूद कुछ भी नहीं बदला है।

"मोबाइल नेटवर्क के हालात तो इतने ख़राब हैं कि मुझे मेरे पिता जी के एक्सीडेंट की ख़बर दो हफ्ते बाद मिली। मेरे घर वालों ने जो मैसेज मुझे भेजा था वो नेटवर्क न होने से दो हफ्ते बाद मिला"। राजबर्दी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में काम करने वाली अंजली साठवे ने गाँव कनेक्शन को बताया।

गेंदा गाँव की आशा कार्यकर्ता मंगला कीर्तन पावरा गाँव कनेक्शन से बताती हैं, "मुझे रोज बिलगाँव स्वास्थ्य केंद्र रिपोर्ट करने आना होता है। कई बार जाँच के लिए गर्भवती महिलाएँ भी साथ होती हैं उनके साथ नदी पार करने में डर लगता है, कभी कभी लहरे बहुत तेज़ होती हैं।"

मानसून में मुश्किल और बढ़ जाती है। टीकाकरण और बीमार गर्भवती महिलाओं की नियमित जाँच जैसी मामूली स्वास्थ्य सेवाएँ भी परिवहन की कमी के कारण ठप हो जाती हैं। उन्होंने कहा कि बारिश में तीन महीने दोनों तरफ आना जाना मुश्किल होता है।

15 साल पहले एक पुल बनने की उम्मीद जगी थी, लेकिन वो भी पूरी नहीं हुई।

इस इलाके में निजी टेलीकम्युनिकेशन कंपनी के सर्वेयर अमित सोमवंशी गाँव कनेक्शन को बताते हैं, किसी बाहरी व्यक्ति का यहाँ सर्वाइव करना बहुत मुश्किल है।

"मुझे इस इलाके में मोबाइल टावर के सर्वे का काम सौंपा गया है जिसके लिये यहाँ इस नदी को पार करना होता है। मोटर साईकिल के साथ नाव से नदी पार करना बहुत जोख़िम भरा होता है। " सोमवंशी ने गाँव कनेक्शन को बताया।

अधूरा पड़ा पुल का काम

उर्दया गाँव के सरपंच शिवावीर पावरा गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "हम यहाँ रह रहे हैं क्योंकि हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। मुझे याद नहीं कभी कोई सरकारी अधिकारी इस क्षेत्र में आया हो। हम सिर्फ एक पुल चाहते हैं। इससे हमारे लिए आजीविका और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुँचना आसान हो जाएगा।"

पावरा ने कहा कि आदिवासी निवासियों को उनके मौलिक अधिकार हासिल करने के लिए पुल बहुत ज़रूरी है। समस्या यह है कि सरदार सरोवर बाँध के जलाशयों से आने वाले पानी ने नदी पार करना और भी ख़तनाक बना दिया है।


इस बीच जब गाँव कनेक्शन ने सेवरी इंजीनियरिंग कंपनी प्राइवेट लिमिटेड से संपर्क किया, जिस कंपनी को पुल का निर्माण कार्य सौंपा गया था, उन्होंने कहा कि सरकारी अधिकारी निर्माण के लिए मंजूरी देने में विफल रहे हैं।

कंपनी ने एक ईमेल में ज़िक्र किया है कि विभिन्न सरकारी प्राधिकरण/विभाग की विफलता थी जो हमें बिना किसी बाधा के काम करने की मंजूरी दे सके।" हम इस काम को पूरा करने के लिए तैयार हैं, बशर्ते विभाग हमारे वास्तविक मुद्दे को समझे और स्वीकार करें कि हमारी तरफ से बात करने की कोशिश की गई है।

साथ ही, गाँव कनेक्शन ने महाराष्ट्र लोक निर्माण विभाग के अनुविभागीय अधिकारी से बात करने की कोशिश की लेकिन कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं मिली।

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