मधुमिता कुमारी: हार न मानने की जिद से जीता देश के लिए मेडल

Abhishek VermaAbhishek Verma   29 Aug 2019 5:30 AM GMT

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नीतू सिंह/अभिषेक वर्मा

झारखंड (रामगढ़)। एशियन गेम्स 2018 में मधुमिता ने जब सिल्वर मेडल जीता तो एक बार फिर देश जान गया कि धनुर्धरों के मामले में झारखंड का कोई जवाब नहीं है। जिस सफर को दीपिका कुमार ने लय दिया उसे मधुमिता बखूबी बढ़ा रही है। हालांकि मधुमिता को यहां तक सफर संघर्षों भरा रहा।

जकार्ता 2018 में हुए एशियन गेम्स के बारे में मधुमिता गांव कनेक्शन से कहती हैं " जकार्ता के लिए मैंने काफी तैयारियां की थीं, मैंने नया इक्विपमेंट मांगा सुदेश सर से जो कि यहीं के हैं। मैंने उनसे बोला कि मुझे एक नया इक्विपमेंट चाहिए क्यों मुझे कुछ अच्छा करना है, मेडल लाना है। तो सर ने कहा कि तुम्हे जो भी सपोर्ट चाहिए मैं उसके लिए तैयार हूं। उस समय दिमाग में बहुत सी बातें चल रही थीं। वहां जाने के बाद मैं काफी नर्वस भी थी। मीडिया के लोगों को देखकर और नर्वस हो गयी। लेकिन देश के लिए मेडल जीतना भला किसे अच्छा नहीं लगता।"

18वां एशियाई खेल इंडोनेशिया की राजधानी जकार्ता में हुआ था। महिला कंपाउंड श्रेणी में मधुमिता ने रजत पदक जीता था। मधुमिता अपनी टीम की सदस्य ज्योति सुरेखा वेनाम और मुस्कान किरार के साथ कोरिया की टीम से फाइनल में हार गयी थीं।

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"झारखंड के तो खून में ही तीरंदाजी है। हमारे भगवान बिरसा मुंडा का अस्त्र भी तीर धनुष ही था। जन्म लेते ही यहां के बच्चे आर्चरी से जुड़ जाते हैं। इसी कारण इस प्रदेश से अच्छे तीरंदाज निकलते हैं। हाल की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि पिछले साल मधुमिता ने एशियाड खेल में सिल्वर मेडल जीतकर देश और राज्य का मान बढ़ाया।" बिरसा मुंडा आर्चरी एकेडमी सिल्ली के कोच शिशर महतो कहते हैं। मधुमिता ने इसी एकेडमी से तीरंदाजी का ककहरा सीखा हैं और रामगढ़ की रहने वाली हैं।

मधुमिता आज सफलता की जिस बुलंदी पर पहुंची है उसके पीछे उसकी कड़ी मेहनत, संघर्ष और त्याग है। उन्होंने 2008 से आर्चरी शुरू की थी। पहली बार 2013 में अंतरराष्ट्रीय मैच खेला। राष्ट्रीय स्तर पर वो अब तक 50 से ज्यादा पदक जीत चुकी हैं।

मधुमिता आगे कहती हैं "हार मानने से कुछ नहीं होगा। तुम्हे जीतना होगा और तुम मन से हार जाओगी तो फिर कुछ नहीं होगा। मेरे कोच और मम्मी पापा हमेशा यही कहकर मेरा उत्साह बढ़ाते थे। इससे मैं हर टूर्नामेंट में जाती थी। कभी वल्र्ड चैंपियनशिप में जाकर एक पॉइंट से मैच हार जाती थी। घर वालों का बहुत सपोर्ट है।"

कोच शिशिर माथुर भी मधुमिता के साहस की तारीफ करते हैं और कहते हैं " मधुमिता कुमारी के अदंर तो भूख थी कि हमें देश के लिए पदक जीतना है। उस भूख को कई बार निराशा भी मिली। लेकिन वो हर बार बड़ी प्रतियोगिताओं में भाग लेती थी।"

बिरसा मुंडा आर्चरी एकेडमी सिल्ली में तीरंदाजों की नर्सरी तैयार हो रही है। यहां रोजाना सैकड़ों बच्चे तीरंदाजी सीखने के लिए आते हैं। मधुमिता कहती हैं कि हमारी एकेडमी में बहुत सी ऐसी लड़कियां हैं नेशनल लेवल तक खेल चुकी हैं। वे ऐसे-ऐसे गांव से आती हैं जहां लड़कियों को पैदा होते ही मार दिया जाता है, लेकिन उनमें कुछ करने का जज्बा है। मैं ये जरूर बोलना चाहूंकी कि अगर लड़कियां आगे बढ़ेंगी तभी हमारा देश आगे बढ़ेगा।


  

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