जब बड़े गुलाम अली खां साहब भूल गए अपना गाना

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गांव कनेक्शन की सीरीज 'यतीन्द्र की डायरी' में आज यतीन्द्र मिश्र सुना रहे हैं उस्ताद बड़े गुलाम अली खान से जुड़ा एक किस्सा। उस्ताद बड़े गुलाम अली खान ठुमरी के एक बड़े गायक माने जाते रहे हैं। एक बार उस्ताद बड़े गुलाम अली खान बम्बई में लक्ष्मी बाग, गिरगांव में एक कॉन्‍सर्ट में गाने वाले थे। उन्होंने अपने शिष्यों को बुला कर कहा कि आज यमन से शुरुआत करेंगे।

जब उस्ताद यमन का रियाज़ कर रहे थे तभी एक घटना घटना घटी। हुआ ये कि बगल के बिल्डिंग के फ्लैट से रेडियो पर लता मंगेशकर का एक गीत बजता हुआ उस्ताद के कानों में पड़ा। ये गाना बहाना फिल्म से था, जिसके संगीतकार मदन मोहन जी थे और राजेंद्र कृष्ण ने ये गीत लिखा था। गाने के बोल थे "जा रे बदरा बैरी जा रे जा रे।"

जैसे ही गाने के ये बोल उस्ताद गुलाम अली खां साहब के कानों में पड़े, वो अपना रियाज़ भूल गए। कहते हैं जब तक रेडियो पर वो गाना बजता रहा, उस्ताद गुलाम अली खां साहब उसे सुनते रहे। बाद में उस्ताद ने अपने शिष्यों से कहा जब से मैंने लता को सुना है, मैं अपना यमन भूल गया हूं। मैं आज क्या गाऊंगा, मुझे ध्यान नहीं है।

एक ऐतिहासिक तथ्य के मुताबिक उस शाम उस्ताद गुलाम अली खां साहब ने कॉन्सर्ट में यमन ना गाकर कोई दूसरा ही राग गाया। उस्ताद गुलाम अली खां साहब की लता मंगेशकर को लेकर एक मशहूर उक्ति भी रही है कि "कम्बख्त, कभी बेसुरी नहीं होती।"

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