उत्तर प्रदेश सरकार की 102, 108 एम्बुलेंस सेवा ठप, हजारों एम्बुलेंस कर्मचारी हड़ताल पर क्यों गए?

उत्तर प्रदेश में इमरजेंसी एम्बुलेंस ड्राइवरों ने प्रदेश में एम्बुलेंस संचालित करने वाली कंपनी में बदलाव को लेकर हड़ताल शुरू कर दी है, ड्राइवरों का कहना है कि इससे उनके रोजगार पर संकट आ जाएगा। दूसरे एम्बुलेंस ड्राइवर भी हड़ताल में शामिल हो गए हैं, ऐसे में हेल्थ केयर सिस्टम के लिए नई मुसीबतें खड़ी हो गईं हैं।

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उत्तर प्रदेश सरकार की दो प्रमुख एम्बुलेंस सेवाएं 25-26 जुलाई की आधी रात से ठप हो गई हैं, क्योंकि प्रदेश भर के एम्बुलेंस ड्राइवर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर चले गए हैं। एडवांस्ड लाइफ सपोर्ट सिस्टम (एएलएस) एम्बुलेंस ड्राइवरों ने एक दूसरी कंपनी को एम्बुलेंस सर्विस टेंडर देने के बाद बदले भुगतान के नियमों और रोजगार पर संकट के खिलाफ विरोध शुरू कर दिया है।

प्रदेश में सरकार द्वारा संचालित 102 (मातृत्व सुविधा एम्बुलेंस) और 108 (आपातकालीन एम्बुलेंस) दोनों एम्बुलेंस सर्विस इससे प्रभावित हैं।

हड़ताल कर रहे ड्राइवरों को गैर-एएलएस एम्बुलेंस सेवा कर्मियों का भी समर्थन मिल गया है और वो एक साथ मिलकर हड़ताल कर रहे हैं।

विरोध कर रहे ड्राइवरों के संघ 'जीवनदायनी स्वास्थ्य विभाग' की कई मांगे हैं, जिसमें जिगित्सा हेल्थ केयर लिमिटेड (ZHL) नाम की कंपनी के द्वारा कॉन्ट्रैक्ट लेने के बाद भी इनकी नौकरी जारी रखने का आश्वासन शामिल है। संघ की मांग में तदर्थ चालकों के बराबर ड्राइवरों का भुगतान भी शामिल है।

प्रदर्शनकारियों को गैर-एएलएस एम्बुलेंस सेवा कर्मियों का भी समर्थन प्राप्त है और उन्होंने एकजुटता से हड़ताल शुरू की है।

रोजगार समझौते के प्रस्तावित परिवर्तन और वेतन में कटौती से नाराज, प्रदर्शनकारी संघ के सीतापुर जिला प्रमुख 38 वर्षीय अखिलेश कुमार ने गांव कनेक्शन को बताया, "पहले, जब मैं जीवीके एम्बुलेंस सर्विस प्राइवेट लिमिटेड के तहत काम कर रहा था, तब मुझे 12,734 रुपये का भुगतान किया जा रहा था, लेकिन नई कंपनी 10,700 रुपये ही देगी और काम 12 घंटे करना होगा। हम सरकार से मांग करते हैं कि या तो उसी पुरानी कंपनी के पास टेंडर रखें या फिर हमें नेशनल हेल्थ मिशन के तहत हायर करें।"

साथ ही, विरोध कर रहे एम्बुलेंस ड्राइवरों के अनुसार, जिगित्सा हेल्थ केयर लिमिटेड उनसे ट्रेनिंग के लिए प्रति ड्राइवर 20,000 हजार रुपये की भी मांग कर रही है।


अब ट्रेनिंग के लिए अलग से भुगतान को लेकर परेशान अखिलेश कहते हैं, "पिछले आठ साल से ड्राइवर अपना काम रहे हैं और अब ट्रेनिंग के लिए 20,000 रुपये का पेमेंट करना ठीक नहीं है।"

102, 108 एम्बुलेंस — एक जीवनदायनी इमरजेंसी सेवा

102 और 108 एम्बुलेंस सेवा जिसकी सुविधा के लिए दो आपातकालीन नंबरों पर कॉल कर सकते हैं, यह सर्विस सरकार द्वारा चलाई जाती है। लेकिन इसे निजी कंपनियों द्वारा अनुंबध के जरिए संचालित किया जाता है। जीवीके की सर्विस का कॉन्ट्रैक्ट खत्म हो गया है और अब ज़िकिट्ज़ा हेल्थकेयर लिमिटेड को एएलएस एम्बुलेंस चलाने के लिए चुना गया है।

नई कंपनी, जिगित्सा हेल्थ केयर लिमिटेड, को एएलएस एम्बुलेंस सेवा के लिए टेंडर लेना है, जो रोगियों को लाइफ-सपोर्ट सिस्टम पर ले जाने के लिए आवश्यक है। प्रदेश में 250 एडवांस लाइफ सपोर्ट (एएलएस) एंबुलेंस संचालित हो रही हैं।


इससे प्रदेश के हेल्थ केयर सिस्टम के इंफ्रास्ट्रक्चर पर असर पड़ा है और मरीजों, खासकर के ग्रामीण क्षेत्र के मरीजों को इलाज के लिए परेशानी हो रही है, क्योंकि आमतौर पर इलाज की बेहतर सुविधाएं शहरों में ही उपलब्ध हैं।

इस बीच, जब नई कंपनी को टेंडर दिया गया, तो एम्बुलेंस चलाने वाली पिछली कंपनी-जीवीके ने जून में आश्वासन दिया था कि कर्मचारियों को नई कंपनी के बारे में परेशान होने की जरूरत है।

ड्राइवरों से कहा गया था कि "नई फर्म को एएलएस एम्बुलेंस चलाने के लिए टेंडर मिला है, लेकिन हमारे किसी भी कर्मचारी को परेशान नहीं होना चाहिए क्योंकि हम सेवा नियमों का पालन करेंगे और आपको सूचित करेंगे।"

क्या है ड्राइवरों की मांग?

रोजगार के आश्वासन और ट्रेनिंग प्रोग्राम को करने के अलावा, विरोध करने वाले ड्राइवरों की मांग है कि COVID19 के कारण अपनी जान गंवाने वाले एम्बुलेंस स्टाफ सदस्यों के परिजनों को 5,000,000 रुपये की राशि का भुगतान किया जाना चाहिए।

प्रदर्शनकारियों ने एम्बुलेंस सेवाओं के टेंडर सिस्टम को हटाने की भी मांग की और कहा कि उन्हें राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत निर्धारित न्यूनतम भुगतान के साथ काम पर रखा जाना चाहिए।

उन्होंने यह भी मांग की कि उनका वेतन लगभग 23,000 रुपये प्रति माह तय किया जाए और साल में एक बार भत्ता भी दिया जाए।

प्रदर्शनकारी अड़े, सरकार की बातचीत जारी

संकट पर सरकार की प्रतिक्रिया जानने के लिए गांव कनेक्शन ने राज्य के अतिरिक्त स्वास्थ्य सचिव अमित मोहन प्रसाद से संपर्क किया।

प्रसाद ने गांव कनेक्शन को बताया, "प्रदर्शनकारियों के साथ बातचीत चल रही है और एमडी एनएचएम (मिशन डायरेक्टर, नेशनल हेल्थ मिशन) इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया दे रहे हैं।"

कई बार प्रयास करने के बावजूद, उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की मिशन निदेशक अपर्णा यू से उनके आधिकारिक नंबर पर संपर्क नहीं किया जा सका। उनसे बात होते ही खबर को अपडेट कर दिया जाएगा।


इस बीच, मिर्जापुर जिले के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) ने गांव कनेक्शन को बताया कि प्रदर्शन कर रहे श्रमिकों के खिलाफ आवश्यक सेवा प्रबंधन अधिनियम (एस्मा) लागू किया गया है।

"सरकार ने प्रदर्शनकारियों पर एस्मा लगाया है, वे इस तरह से आपातकालीन सेवाओं को रोक नहीं कर सकते। जिले में कुल 65 एम्बुलेंस हैं, लेकिन उनमें से केवल तीन ही काम कर रही हैं, "पीडी गुप्ता, सीएमओ, मिर्जापुर ने कहा।

एस्मा एक ऐसा अधिनियम है जिसे कोई भी सरकार हड़ताली कर्मचारियों को कुछ आवश्यक सेवाओं पर काम करने से मना करने से रोकने के लिए अपने-अपने राज्यों में लागू कर सकती है जो सामान्य स्थिति बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं।

इस बीच, ड्राइवर संघ ने जल्द से जल्द मांगों को पूरा नहीं करने पर धरना प्रदर्शन की चेतावनी दी है।

'कोरोना के दौरान जान जोखिम में डाली, अब यह इनाम मिल रहा'

मिर्जापुर स्थित एंबुलेंस एसोसिएशन के जिला प्रमुख राजीव रंजन पांडेय ने गांव कनेक्शन से एंबुलेंस कर्मियों की परेशानी के बारे में बात करते हुए कहा कि एएलएस एंबुलेंस के लगभग 1,200 कर्मचारियों को उनकी नौकरी से हटा दिया गया है।

"ऐसा हमेशा तब होता है जब एम्बुलेंस चलाने के लिए ठेका लेने वाली कंपनी में कोई बदलाव होता है। लेकिन इस बार चीजें बहुत मुश्किल हैं। हमने अपनी जान जोखिम में डाली जब COVID19 अपने चरम पर था। और यह हमारे द्वारा किए गए बलिदानों का इनाम है, "पांडे ने कहा।

मोहित शुक्ला (सीतापुर), सुमित यादव (उन्नाव), बृजेंद्र दुबे (मिर्जापुर) और वीरेंद्र सिंह (बाराबंकी) के इनपुट्स के साथ। यह खबर प्रत्यक्ष श्रीवास्तव ने लिखी है।

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