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बछड़ा भूख-प्यास से तड़प रहा था और कौवे उसे नोच रहे थे

#stray animal

लखनऊ। एक बड़ा सा खाली मैदान जिसके चारों तरफ गहरे गड्ढे, एक टीनशेड के नीचे एक छोटा सा गड्ढा, जिसमें पानी भरा है। गेट के पास भूसे का ढेर, मवेशियों को धूप से बचने के लिए मैदान में बबूल के पेड़ हैं। मैदान में कुछ गोवंश पेड़ की छांव में खड़े थे, तो कुछ मरे पड़े थे। एक गोवंश को एक व्यक्ति साइकिल पर लादकर फेंकने जा रहा था।

यह दर्दनाक मंज़र है उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 40 किमी दूर स्थित बख्शी का तालाब ब्लॉक के शाहपुर बाजार के एक गोवंश आश्रय स्थल का है। जहां आवारा पशुओं को रखने के लिए इंतजाम किया गया है। ऐसी ही गौशालाएं ग्राम पंचायत स्तर पर जिलों में बनवाई गई हैं ताकि छुट्टा पशुओं से फसलों की रक्षा की जा सके। लेकिन ये गोवंश आश्रय स्थल इन छुट्टा पशुओं के लिए कब्रगाह बनते जा रहे हैं।

“गांव के बगल में ही हमारा घर है। लेकिन जब तेज हवा चलती है तो बैठना मुश्किल हो जाता है। घर से कुछ दूरी पर एक ताल है, जिसमें मरे जानवर फेंक दिए जाते हैं।” लखनऊ के बख्शी का तालाब ब्लॉक के खानपुर गाँव में रहने वाली एक महिला ने नाम न छापने की शर्त पर बताया।


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सोमवार सुबह करीब आठ बजे गांव कनेक्शन की टीम जब इस गोशाला पहुंची तो वहां का नजारा बड़ा दर्दनाक था। एक बछड़ा भूख और प्यास से तड़प रहा था और कौवे उसे नोच-नोचकर खा रहे थे। कुछ इंतजार में थे कि कब भूख-प्यास से तड़प रहे उस बछड़े की मौत हो और कौवे अपनी भूख शांत कर पाएं। गोशाला में उस बछड़े को पानी तक पिलाने वाला कोई नहीं था।

पशुपालन विभाग के मुताबिक 31 जनवरी, 2019 तक पूरे प्रदेश में निराश्रित पशुओं (छुट्टा पशुओं) की संख्या सात लाख 33 हजार 606 थी। विभाग से उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार 30 अप्रैल तक रिपोर्ट के अनुसार तीन लाख 21 हजार 546 पशुओं को संरक्षित (अस्थाई गोवंश स्थल में रखा गया।) किया गया। यानि बाकी के करीब करीब 3 लाख अभी भी छुट्टा हैं।

इसी गोशाला के बगल में अपने खेत में खड़ी महिला ने कहा, “इस गोशाला में जानवारों की देखभाल करने वाले लोग जानवरों को खेत में छोड़ देते हैं। यहां रोज दो-तीन जानवर मर जाते हैं। कल भी दो जानवर फेंक गए थे और आज भी कुछ मरे पड़े हैं।”

सुबह के 9:30 बजे तक गोशाला की देखभाल करने वाले गोपालक का कोई अता-पता नहीं था। इस पर गाँव कनेक्शन की टीम गोपालक का पता लगाने के लिए उनके गाँव खानपुर पहुंची। गोशाला से महज एक किमी दूरी पर स्थित खानपुर गाँव में दोनों गोपालक बच्चू और सागर रहते हैं।

“रोज कई जानवर मर जाते हैं। यहां पर न उनके खाने-पीने की व्यवस्था है और न ही उनके बैठने की कोई जगह। गोशाला में जो लोग जानवरों की देखभाल करने के लिए रखे गए हैं उन्हें गो-हत्या लगेगी,” पास ही शाहपुर चौराहे पर अपनी दुकान चलाने वाले श्रीधर बाजपेई ने कहा।


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पशुपालन विभाग द्वारा किए गए सर्वे के अनुसार देशभर में, खासकर उत्तर प्रदेश में छुट्टा गोवंश बड़ी समस्या बने हुए हैं। यूपी में राज्य सरकार द्वारा अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध के बाद पिछले 3-4 वर्षों में ये समस्या और बढ़ गई। फसल बचाने के लिए किसानों की रातें खेतों में बीत रहीं, तो सड़क पर वाहन चालकों के लिए ये पशु समस्या बने हुए हैं। हंगामा बढ़ने पर योगी आदित्यनाथ की सरकार ने राज्य में ब्लॉक और न्याय पंचायत स्तर पर गोवंश आश्रय खोलने का निर्णय लिया। अस्थाई गोवंश आश्रय खोलने की शुरुआत जनवरी 2019 में हुई थी। 10 जनवरी को प्रदेश के सभी जिलों में आश्रय खोलने के निर्देश दिए गए। सरकार ने इसके लिए 200 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया था।

दिन के 10:00 बजे गोपालक सागर गोशाला पर पहुंचे, तो कहा “हमने सोचा था कि गोशाला पर बच्चू होंगे, इसलिए अभी तक मैं नहीं आया था। गोशाला में हम जानवरों की देखभाल तो करते हैं, अब मर जाते हैं तो हम क्या कर सकते हैं। ये सच है कि हम जानवरों को सिर्फ भूसा और पानी देते हैं। अब जानवर तो जानवर हैं अभी किसी व्यक्ति को सूखी रोटी और पानी दिया जाने लगे तो मर जाएगा।”

“प्रधान जी जितना हमसे कहते हैं, हम उतना करते हैं। प्रधान अगर जानवरों को हरा चारा और चोकर देने लगे तो हमारा क्या जाता है? अब जानवरों की देखभाल करने के लिए हम तो अपना खेत बेच नहीं देंगे,” सागर कहते हैं।

योगी सरकार ने अपने तीसरे बजट में गोवंश के संवर्धन, संरक्षण, ग्रामीण क्षेत्रों में अस्थाई गोशालाएं, शहरी इलाकों में कान्हा गोशाला और बेसहारा पशुओं के रखरखाव के लिए अलग-अलग मदों में 612.60 करोड़ रुपए का इंतजाम किया था। इनमें से 248 करोड़ रुपए ग्रामीण इलाकों के लिए थे। जमीन पर हालात वैसे नहीं दिखे जैसे होने चाहिए थे।

कुछ दिनों पहले उत्तर प्रदेश पशुपालन विभाग के तत्कालीन निदेशक डॉ. चरण सिंह चौधरी ने गाँव कनेक्शन को बताया था, “प्रदेश के 68 जिलों को एक-एक करोड़ रुपये, जबकि बुंदेलखंड के 7 जिलों को डेढ़ करोड़ रुपए आवंटित किए गए। 30 अप्रैल तक इन जिलों को 33 करोड़ 41 लाख रुपए भेजे जा चुके थे। ये पैसा मंडी परिषद से लिया गया है,” गायों के लिए प्रदेश सरकार ने मंडी, शराब और टोल आदि पर सेस लगाया था।

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गोशाला को लेकर प्रधानों की समस्या पर हमने बख्शी का तालाब ब्लॉक के प्रधान संघ के अध्यक्ष अतुल शुक्ला से बात की। उन्होंने कहा, बताया, “गोशाला में मवेशियों का रख-रखाव सुचारु रूप से इसलिए नहीं हो पा रहा है क्योंकि हम लोगों का पैसा देर से मिलता है। इसके अलावा हमें बताया गया है कि प्रत्येक 100 गोवंश पर एक गोपालक रखना है। अब 100 गोवंश को एक गोपालक कैसे संभाल सकता है। गोशाला का निर्माण कार्य इस वजह से धीरे चल रहा है क्योंकि ग्राम पंचायत स्तर पर पैसा नहीं है।”

बख्शी का तालाब के खंड विकास अधिकारी अरुण सिंह ने बताया, “बजट में कोई ऐसी दिक्कत नहीं है प्रधानों को 95,000 की एक किश्त भेजी जा चुकी है और उसका बिल बाउचर भी हमारे पास आ गया है। अगली किश्त के लिए जिले स्तर पर भेजा जा चुका है जिसका पैसा भी अगले कुछ दिनों में आ जायेगा। एक जानवर को एक दिन का 30 रुपया दिया जाता है, उसमें जितना कुछ कर सकते हैं उतना किया जाता है। गोशालाओं में दिक्कत होती है तो हम उनको एक बार जरूर दिखवा लेते हैं।

छुट्टा गायों को लेकर योगी सरकार का बड़ा फैसला

छुट्टा गोवंश की समस्या से किसानों को निजात दिलाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने बड़ा फैसला लिया है। प्रदेश में गो संरक्षण और गोवंश आश्रय केंद्रों के संचालन के लिए नियमावली भी तैयार की है। इसके अलावा यह भी तय किया गया कि इस पर होने वाले खर्च की व्यवस्था कैसे होगी। इसके लिए कार्पस फंड बनाया जाएगा। इसमें दान और चंदा, केंद्र व सरकारी विभाग के सहयोग से, मंडी परिषद की आय से दो प्रतिशत, यूपीडा के टोल से 0.5 प्रतिशत और राजस्व परिषद की आय से 1 प्रतिशत की व्यवस्था की जाएगी।

गोवंश आश्रय स्थल में संचालन नीति का उद्देश्य

  • निराश्रित गोवंश को आश्रय उपलब्ध कराया जाना।
  • आश्रय स्थल पर रखे गए गोवंश हेतु भरण-पोषण की व्यवस्था।
  • संरक्षित गोवंश को विभिन्न बीमारियों से बचाव हेतु टीकाकरण और समुचित चिकित्सा व्यवस्था और नर गोवंश का बाध्याकरण कराना।
  • संरक्षित मादा गोवंश को प्रजनन सुविधा उपलब्ध कराना।
  • गोवंश से उत्पादित दूध, गोबर, कम्पोस्ट आदि के विक्रय व्यवस्था से आश्रय स्थल को वित्तीय रूप से स्वावलंबी बना कर जनमानस को निराश्रित गोवंश की समस्या से छुटकारा दिलाना। 

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