सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल में इजरायल की तकनीक से साल में तैयार होती है 10 लाख पौध, किसानों को मुफ्त में मिलती है ट्रेनिंग

उत्तर प्रदेश के कन्नौज में स्थित सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल में इजरायल की तकनीक का इस्तेमाल करके सब्जियों के पौध उगाए जाते हैं। साथ ही किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

Ajay MishraAjay Mishra   26 July 2021 1:13 PM GMT

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कन्नौज (उत्तर प्रदेश)। किसान सब्जियों की खेती शुरू करते हैं, लेकिन कई बार जानकारी के आभाव में नुकसान भी उठाना पड़ जाता है। ऐसे किसान सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल में प्रशिक्षण ले सकते हैं, जहां पर सब्जियों के पौध तैयार किए जाते हैं और प्रशिक्षण भी दिया जाता है।

यूपी के जिला कन्नौज मुख्यालय से करीब 30 किमी दूर स्थित तहसील तिर्वा इलाके के उमर्दा के निकट सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल स्थित है। इसे इजरायल की तकनीक पर बनाया गया।

इसमें पॉलीहाउस, नेट हाउस व वॉक-इन-टनल के सहयोग से सब्जियों व फल की पौध बेमौसम तैयार की जाती है। ऑटोमेटिक मशीन से खाद, पानी आदि लगता है। इस सेंटर से प्रदेश के ही नहीं बल्कि दूसरे प्रदेशों के भी हजारों किसान जुड़े हैं, जो समय से पहले पौध ले जाकर फसल होने पर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं।

इसमें पॉलीहाउस, नेट हाउस व वॉक-इन-टनल के सहयोग से सब्जियों व फल की पौध बेमौसम तैयार की जाती है। सभी फोटो: गाँव कनेक्शन

उत्तर प्रदेश के जिला औरैया के अटाह गांव के गौरव मिश्र भी यहां से जुड़े हुए हैं। गौरव गाँव कनेक्शन से बताते हैं, "हम लोगों को केंद्र से बहुत लाभ है। किसी भी मौसम में जाएं, कोई भी पौध तैयार कराई जा सकती है। इस वजह से सब्जी का बाजार में रेट अच्छा मिल जाता है, उसी का ही सब खेल है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजीटेबुल से करीब तीन साल से जुड़े हैं। पपीता, तोरई, टमाटर, गोभी, शिमला मिर्च, गोभी आदि की पौध ले गए हैं। कुल 10-12 एकड़ का रकबा है। तीन-चार एकड़ में सब्जी करते हैं।"

8.628 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल को 7 करोड़ 80 लाख की लागत में बनाया गया है।

उन्नाव जिले के बांगरमऊ के किसान लालू ने गांव कनेक्शन से बताते हैं, "लगभग चार साल से रिश्ता है हार्टिकल्चर के मामले में। कई बार पौध लाए हैं, उसे कानपुर जिले के अरौल क्षेत्र में लगाया है। चाहे कद्दूवर्गीय फसलें हों या तरबूज। अन्य किसानों को भी प्रेरित किया है। अच्छा नफा यानि मुनाफा दिया है। पढ़ाई कर रहा हूं, लेकिन कृषि से भी जुड़ा हूं। समय से पौध मिल जाने से मुनाफा मिल जाता है। इस बार तरबूज की 50 हजार पौध ले गए थे।"

आगे बताया, "हम डॉक्टर साहब को स्वयं का बीज देते हैं, उसका एक रुपए प्रति पौध लगता है। अच्छी चीज यह है कि अगर 20 हजार बीज दिया और पौध कम हुई तो कम रुपया ही देना पड़ेगा। हर फसल क्लाइमेट यानि वातावरण पर है।"


किस तरह से सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल पर किसानों को ट्रेनिंग दी जाती है और कैसे पौधे तैयार किए जाते हैं। इस बारे में केंद्र प्रभारी डॉ. डीएस यादव गांव कनेक्शन को बताते हैं, "भारत व इजरायल कृषि परियोजना के तहत 26 अक्तूबर वर्ष 2018 को मुख्यमंत्री ने इसका शुभारंभ किया गया था। यहां किसानों को प्रशिक्षण, भ्रमण व पौध तैयार करने का काम होता है। यह हाईटेक पौधशाला है जो 1152 वर्गमीटर में बनी है। एक साल में 10 लाख पौधे तैयार होते हैं। पूरी क्षमता से पौध उत्पादन होता है। कृषकों को गुणवत्ता युक्त पौध देना पड़ता है।"

केंद्र प्रभारी आगे बताते हैं कि "अगर किसान बीज देता है तो एक रुपए प्रति पौध का लेते हैं जो किसान बीज नहीं देते, उनसे दो रुपए लिया जाता है। यहां किसान को कम बीज में अधिक पौध मिलती है। अगर किसान खुद तैयार करता है तो 50-60 फीसदी पौध होता है। यहां किसी मौसम का प्रभाव नहीं होता है। मिट्टी का प्रयोग नहीं करते हैं। इसकी जगह पर वर्मीकोलाइट, परलाइट व कोकोपिट का प्रयोग करते हैं। सब्जियों की पौध में जड़े खूब होती हैं, जिससे पौध अधिक चलती है।"

आगे बताया, "मिट्टी में पौध कम होती हैं। साथ ही पौध को ट्रांसप्लांट करने पर कई पौधे मर जाते हैं। लेकिन यहां से जो पौध जाती है वह बॉक्स में सुरक्षित कर भेजी जाती है। एक गत्ते में 100 पौधे ही दिए जाते हैं। ग्रेटर नोयडा, कानपुर, फर्रुखाबाद, एटा, भिंड, जालौन, लखनऊ, प्रयागराज, कौशाम्बी, उन्नाव, अलीगढ़, कन्नौज, फतेहपुर, बाराबंकी, हमीरपुर, बांदा, आगरा, मैनपुरी, इटावा, बनारस, लखीमपुर, हरदोई, सीतापुर से किसान आते हैं।"

सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल के प्रभारी डॉ. डीएस यादव।

केंद्र प्रभारी डॉ. यादव बताते हैं कि "अभी खरीफ की फसल में शिमला मिर्च, बैंगन, टमाटर व मिर्च चल रहा है। फरवरी में कद्दू, खरबूज, लौकी, करेला, तोरई व तरबूज आदि की बड़े स्तर पर पौध तैयार होती है। एक महीने पहले बाजार में किसान की फसल पहुंच जाती है और यहां की पौध की गुणवत्ता अच्छी होने से लाभ अधिक है। जो किसान बीज लेकर बुकिंग के लिए आते हैं तो प्रति पौध के हिसाब से आधा रुपया जमा करा लेते हैं।"

उन्होंने आगे बताया कि "सम्बंधित जिला उद्यान अधिकारी से सम्पर्क कर किसानों को बीज पर सब्सिडी भी दिलाते हैं। किचन गार्डन में भी लोग पौध लगाते हैं, उनको बिना पौध के दो रुपए पौध पर रसीद देते हैं। जो पौध ले जाते हैं, उनको उत्पादन तक कई जानकारियां देते हैं, साथ ही डीएचओ से जो सुविधाएं मिलती हैं, वह लाभ दिलाते हैं।"

किसानों को ट्रेनिंग, रहना-भोजन भी फ्री

केंद्र प्रभारी का कहना है कि "किसानों को एक से तीन दिवसीय प्रशिक्षण भी देते हैं, जो निशुल्क होते हैं। प्रशिक्षण केंद्र के जरिए किसानों को रहने व खाना फ्री मिलता है। कृषि, उद्योग, नाबार्ड या एनजीओ आदि से भी प्रशिक्षण मिलता है। जानकारी देने के लिए बाहर के विश्वविद्यालय से भी वैज्ञानिक आते हैं। हम लोग किसानों को बाजार में बिक्री तक सपोर्ट करें। किसान को नुकसान न हो, अधिक से अधिक लाभ मिले। पैकेट, ग्रेडिंग व मार्केटिंग तक में सहयोग करते हैं। इन दिनों मिर्च, टमाटर, बैंगन, करेला फूलगोभी, पत्तागोभी, लौकी, तोरई, शिमला मिर्च आदि की पौध अधिक है। केंद्र से फिलहाल पांच हजार किसानों का सीधा जुड़ाव है।"

8.628 हेक्टेयर क्षेत्रफल में बने सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर वेजिटेबल को 7 करोड़ 80 लाख की लागत में बनाया गया है।

अब तक 10 हजार किसानों को फायदा

पिछले साल तीन हजार किसानों ने केंद्र का भ्रमण किया था। यूपी के 15 जिले सक्रिय हैं और दो जिले मध्य प्रदेश के भी यहां से जुड़े हैं। सेंटर खुलने के बाद करीब 10 हजार किसानों को सीधा फायदा है। कई लाख पौध की सप्लाई कर चुके हैं। यूपी के तीन जिलों सीतापुर, हरदोई व लखीमपुर में शिमला मिर्च की खेती बड़े स्तर पर हो रही है। पहले जो किसान दूसरे प्रदेशों में जाते थे, वह यहां से जुड़ गए हैं।

लाल व पीला रंग की शिमला मिर्च भी

कन्नौज के इस केंद्र पर हरा, लाल व पीला रंग की शिमला मिर्च की पौध भी तैयार हो रही है। केंद्र प्रभारी का प्रयास है कि 15-20 अगस्त तक किसानों को पौध उपलब्ध करा देंगे। समय-समय पर फोटो व वीडियो के जरिए किसानों को पौध दिखा दी जाती है।

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