मां की वो सीख जिसने बालासरस्वती को बनाया महान नृत्यांगना

#यतीन्द्र की डायरी

यतीन्द्र की डायरी’ गांव कनेक्शन का साप्ताहिक शो है, जिसमें हिंदी के कवि, संपादक और संगीत के जानकार यतीन्द्र मिश्र संगीत से जुड़े क़िस्से बताते हैं। इस बार के एपिसो़ड में यतीन्द्र ने शास्त्रीय नृत्य की दुनिया के जाने पहचाने नाम बालासरस्वती से जुड़ा एक क़िस्सा बयां किया है।

महान भरतनाट्यम नृत्यांगना बालासरस्वती, जिन्हें अपने जीवनकाल में अपनी कला के लिए पद्म भूषण व पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था, भले ही कई साल पहले ये दुनिया छोड़ चुकी हैं। लेकिन, उनसे जुड़ा एक क़िस्सा ऐसा है कि आज भी हर नया कलाकार उससे सीख लेकर ज़िंदगी में बहुत आगे बढ़ सकता है। आइए यतीन्द्र के ही शब्दों में पढ़ें (और वीडियो में देखें) ये प्यारा क़िस्सा।

बालाजी ने अपनी मां से अरंगेत्रम के समय एक बात पूछी। जब किसी भी नर्तकी का मंच पर पहली बार प्रवेश होता है, वह सार्वजनिक रूप से परफॉर्म करती है। उन्होंने अपनी मां से पूछा कि बताओ जब मैं अपनी कला में आगे जा रही हूं तो बताएं कि मुझे क्या करना है और क्या नहीं करना?

बालाजी की मां ने उसके कहा कि बेटा तुम्हारा नृत्य तुम्हारा ज्ञान बहुत सुंदर है। अब वह समाज के सम्मुख जा सकता है। लेकिन जीवन में हमेशा एक बात याद रखना, जब तुम मंच पर होगी, एक कोई व्यक्ति ऐसा ज़रूर होगा जो तुमको और तुम्हारी कला को तुमसे ज्यादा जानता होगा। वो तुम्हारा अतिरेकी प्रशंसक होगा। उसी के लिए तुम्हें नृत्य करना है। उसे सोचकर जब नृत्य करोगी तो तुम्हें कला में शिखर अर्जित होगा।

यतीन्द्र कहते हैं कि बाला सरस्वती ने अपनी मां की यह सीख गांठ बांध ली और वह इस देश की महानतम नृत्यांगनाओं में से एक बन गईं। नए कलाकारों के लिए वाकई ये किस्सा बहुत प्रेरक है। 

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