क्यों होती है देवी सरस्वती के हाथ में वीणा और किताब?

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यतीन्द्र की डायरी' गांव कनेक्शन का साप्ताहिक शो है, जिसमें हिंदी के कवि, संपादक और संगीत के जानकार यतीन्द्र मिश्र संगीत से जुड़े क़िस्से बताते हैं। इस बार के एपिसो़ड में यतीन्द्र ने संगीत और ज्ञान की देवी माँ सरस्वती से जुड़ी एक अवधारणा की बात की है।

यह कहानी किसी उस्ताद की नहीं, बल्कि संगीत के ज्ञान की कहानी है। यतीन्द्र मिश्र ने संगीत विद्वान आचार्य कैलाश चंद्र देव बृहस्पति की एक अवधारणा के बारे में बताया, जो कि देवी सरस्वती से जुड़ी हुई है। हम सभी ने देवी सरस्वती की तस्वीरें और मूर्तियां देखी हैं। इनमें हमेशा सरस्वती के एक हाथ में वीणा और दूसरे हाथ में पुस्तक दिखाई देती है। लेकिन कम ही लोग होते हैं, जो देवी सरस्वती को पूजते हुए इन दोनों का ख़याल रखते हैं।

दरअसल, सरस्वती के हाथ की वीणा का अर्थ होता है जीवन में रस होना। वहीं, पुस्तक का अर्थ है ज्ञान और जिज्ञासा होना। यानी सरस्वती जीवन में रस और कला के साथ-साथ ज्ञान का भी प्रतीक होती हैं। लेकिन कला और रसिक जगत के ज़्यादातर लोग अपनी-अपनी सरस्वती बना लेते हैं। इसका मतलब, वो सरस्वती को अपने ही ढंग से मानते हैं। ऐसा देखा जाता है कि इस समाज के लोग कला और रस पर ध्यान तो देते हैं, लेकिन ज्ञान पर नहीं। यानी वो सरस्वती के हाथ की पुस्तक को भुला देते हैं।

वहीं ज्ञान वाले लोगों का जीवन शुष्क हो जाता है क्योंकि वे लोग रस को बिल्कुल भूल जाते हैं। वो सिर्फ किताब पर ध्यान देते हैं, वीणा पर नहीं।

इस ऐपिसोड में यतीन्द्र मिश्र जीवन की उस अवधारणा के बारे में बता रहे हैं जिसमें देवी सरस्वती की दोनों सीख वीणा और किताब को लेकर चलने की बात कही गई है।


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