यतीन्द्र की डायरी’ गांव कनेक्शन का साप्ताहिक शो है, जिसमें हिंदी के कवि, संपादक और संगीत के जानकार यतीन्द्र मिश्र संगीत से जुड़े क़िस्से बताते हैं। इस बार के एपिसो़ड में यतीन्द्र ने संगीत की दुनिया के दो सितारों से जु़ड़ा एक प्यारा क़िस्सा बयां किया है।
ये क़िस्सा संगीत की दुनिया की उन दो हस्तियों से जुड़ा है, जिन्होंने संगीत की दुनिया को अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। एक तरफ थीं नूरजहां जो न सिर्फ गायिकी, बल्कि अभिनय से भी तकरीबन चार दशक तक लोगों के दिलों पर अमिट छाप छोड़ती रहीं। दूसरी तरफ, उन्हें अपना आदर्श मानने वाली भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर।
नूरजहां, जिन्होंने चालीस के दशक में हिंदी फिल्म संगीत में राज किया, विभाजन के बाद वे पाकिस्तान चली गई। वहां भी अपनी गायकी के लिए मशहूर हुई। ये बात 1944 की है। एक बड़ी फिल्म बन रही थी ‘बड़ी मां’, जो मास्टर विनायक की कंपनी प्रफुल्ल पिक्चर्स बना रही थी। इस फिल्म के दो गाने कोल्हापुर में नूरजहां की आवाज़ में फिल्माए जाने थे। लता मंगेशकर उन दिनों प्रफुल्ल पिक्चर्स के लिए काम करती थीं। मास्टर विनायक ने उन्हें नूरजहां से मिलवाया। लता जी ने उन्हें पहले शास्त्रीय संगीत और फिर फिल्मी गाने गाकर सुनाएं। नूरजहां बहुत खुश हुई, उन्होंने उन्हें खूब आशीर्वाद दिया और कहा कि एक दिन तुम बहुत बड़ी पार्श्व गायिका बनोगी। इसके बाद वे नमाज़ पढ़ने चली गईं।
लता जी उन्हें दूर से नमाज़ पढ़ता हुआ देखने लगी। वो ये देखकर हैरान हो गईं कि नमाज़ के दौरान नूरजहां रो रही थीं। जब वे नमाज़ पढ़कर लौटीं तो लता जी ने उनसे पूछा कि क्या उन्हें कोई परेशानी है जो वह रो रही थीं? इस सवाल के जवाब में नूरजहां ने उन्हें जो वजह बताई, वह लता मंगेशकर जी के लिए एक ऐसी सीख बन गई, जिसका पालन वह तब से अब तक करती आई हैं। आख़िर क्या थी वह बात? जानने के लिए देखिए इस ऐपिसोड का वीडियो।