गांव कनेक्शन सर्वे: हर चौथे ग्रामीण परिवार में हुआ किसी न किसी का कोविड-टेस्ट, 15 फीसदी मिले कोरोना पॉजिटिव

भारत समेत लगभग पूरी दुनिया पिछले 10 महीनों से कोरोना महामारी की चपेट में है। ग्रामीण भारत में कोरोना संक्रमण का कितना प्रसार हुआ? कितने ग्रामीण परिवारों ने कोविड-19 के लिए टेस्ट कराये? कितने कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आये? क्रोरोना संक्रमण के इलाज के लिए ग्रामीण परिवार कहाँ गए? देश के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफार्म गांव कनेक्शन ने ग्रामीण भारत में सर्वे कर ऐसे तमाम सवालों को जानने की कोशिश की है।

Kushal MishraKushal Mishra   22 Dec 2020 8:42 AM GMT

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गांव कनेक्शन सर्वे: हर चौथे ग्रामीण परिवार में हुआ किसी न किसी का कोविड-टेस्ट, 15 फीसदी मिले कोरोना पॉजिटिवगाँव कनेक्शन सर्वे के अनुसार एक चौथाई ग्रामीण परिवारों ने घर के किसी सदस्य का कराया कोविड-19 टेस्ट। फोटो : गाँव कनेक्शन

जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस जैसे अदृश्य दुश्मन से एक लंबी लड़ाई लड़ रही है, विश्व के दूसरे सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत में शहरों से इतर ग्रामीणों के लिए कोरोना से लड़ाई कहीं ज्यादा चुनौतीपूर्ण रही है।

भारत में 21 दिसम्बर तक एक करोड़ से ज्यादा लोग इस जानलेवा वायरस के चपेट में आ चुके हैं, जबकि 1.45 लाख से ज्यादा ने अपनी जान गवां दी। इस खतरनाक संक्रमण से इलाज के लिए अब सभी की निगाहें एक प्रमाणिक कोरोना वैक्सीन पर टिकी हैं। इस बीच भारत के सबसे बड़े ग्रामीण मीडिया प्लेटफार्म गाँव कनेक्शन ने ग्रामीण भारत में कोविड-19 के प्रसार और कोरोना वैक्सीन पर ग्रामीणों के नजरिये का पता लगाने के लिए फेस टू फेस रैपिड सर्वे कराया। कोरोना वायरस को लेकर इस सर्वे में कई रोचक निष्कर्ष निकल कर सामने आये हैं।

'कोविड-19 वैक्सीन और ग्रामीण भारत' नाम से गाँव कनेक्शन के इस सर्वे में 26 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने कहा कि उनके परिवार में किसी न किसी सदस्य का कोविड-19 टेस्ट किया गया, जबकि सर्वे में शामिल कुल ग्रामीण परिवारों में 15 फीसदी परिवारों का कोई सदस्य कोरोना संक्रमण का शिकार हुआ।

गाँव कनेक्शन ने ग्रामीण भारत में कोरोना के प्रसार का पता लगाने के लिए एक से दस दिसंबर के बीच 16 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश के 60 जिलों में 6040 ग्रामीण परिवारों के बीच फेस टू फेस सर्वे किया। राज्यों का चयन कोरोना संक्रमण के प्रसार पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार किया गया। सर्वे का मार्जिन ऑफ एरर 5 फीसदी है। विस्तृत रिपोर्ट www.ruraldata.in पर पढ़ सकते हैं।

क्या आपके घर के किसी सदस्य का कोविड-19 टेस्ट किया गया? के सवाल पर सर्वे में करीब एक चौथाई ग्रामीण परिवारों ने कोविड टेस्ट किये जाने की पुष्टि की। इसमें भी पूर्वी-उत्तर पूर्वी राज्यों (ओडिशा, असम, पश्चिम बंगाल और अरुणाचल प्रदेश) के 42.6 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने सबसे ज्यादा कोविड-19 टेस्ट कराये जबकि दूसरे स्थान पर दक्षिण के राज्य (केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक) रहे, जहाँ यह आंकड़ा 37 फीसदी रहा।

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इसी तरह तीसरे स्थान पर पश्चिम के राज्य (महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश) में 23 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने कोविड-19 टेस्ट कराये, जबकि सबसे कम 11 फीसदी के साथ उत्तरी राज्य (उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, हिमाचल प्रदेश, पंजाब, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा) के ग्रामीण परिवार रहे।

गाँव कनेक्शन के रैपिड सर्वे में शामिल ग्रामीण परिवारों में कुल 15 फीसदी परिवारों में घर का कोई सदस्य कोरोना पॉजिटिव पाया गया। गौर करने वाली बात यह है कि कोरोना संक्रमण के सबसे ज्यादा शिकार दक्षिण के राज्यों के ग्रामीण परिवार रहे जहाँ कोरोना टेस्ट कराने वाले हर चार में से तीन यानी 76 फीसदी ग्रामीण परिवारों का कोई न कोई सदस्य कोरोना पॉजिटिव पाया गया। दूसरी ओर कोरोना संक्रमण के सबसे कम शिकार उत्तरी राज्यों के ग्रामीण परिवार रहे जहाँ सिर्फ 12 फीसदी ही कोरोना संक्रमण की चपेट में आये।

हालांकि पूर्वी-उत्तर पूर्वी और पश्चिमी राज्यों में भी कोरोना Covid संक्रमण के ज्यादा मामले देखने को मिले जहाँ कोविड-19 टेस्ट कराने वाले हर दूसरे ग्रामीण परिवार में कोरोना पॉजिटिव मामले सामने आये। पूर्वी-उत्तर पूर्वी राज्यों में जहाँ यह आंकड़ा 60 फीसदी रहा, वहीं पश्चिमी राज्यों में 70 फीसदी ग्रामीण परिवार में कोई न कोई व्यक्ति कोरोना पॉजिटिव निकला। मगर गौर करने वाली बात यह भी है कि दक्षिणी राज्यों यानी केरल, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक के ग्रामीण परिवार कोरोना संक्रमण के सबसे ज्यादा शिकार हुए।


ग्रामीण भारत के इस सर्वे में कोविड-19 टेस्ट के बाद दक्षिणी राज्यों से 76 फीसदी और उत्तरी राज्यों से सिर्फ 12 फीसदी कोरोना पॉजिटिव के मामले सामने आने को लेकर गाँव कनेक्शन ने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. पीके गुप्ता से बातचीत की। डॉ. गुप्ता इस बड़े अंतर के पीछे खान-पान, साफ़-सफाई और मौसम के बदलाव को बड़ा कारण मानते हैं।

डॉ. पीके गुप्ता 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "कोरोना संक्रमण का सीधा प्रभाव शरीर की इम्युनिटी सिस्टम (प्रतिरक्षा प्रणाली) पर निर्भर करता है। अगर इम्युनिटी कमजोर है तो यह संक्रमण अटैक करता है, इम्युनिटी अगर प्रभावी है तो यह संक्रमण आप पर उतना प्रभावी नहीं होगा, इन राज्यों में कोरोना पॉजिटिव मामलों को लेकर यह एक बड़ा कारण हो सकता है।"

"दक्षिणी राज्यों की तुलना में उत्तरी राज्यों में साफ़-सफाई काफी कम है और गरीबी ज्यादा है, फिर खान-पान और मौसम का प्रभाव भी शरीर के इम्युनिटी सिस्टम पर काफी असर डालता है। उत्तरी राज्यों में रहने वाले लोग ठण्ड, बरसात, गर्मी जैसी ऋतुएं झेलते हैं, इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि दक्षिणी राज्यों की तुलना में उत्तरी राज्यों के लोगों का इम्युनिटी सिस्टम कहीं ज्यादा बेहतर होगा, इस वजह से भी और राज्यों की तुलना में उत्तरी राज्यों के ग्रामीण इलाकों में कोरोना पॉजिटिव के कम मामले सामने आये हैं," डॉ. पीके गुप्ता बताते हैं।

सर्वे में शामिल पॉजिटिव पाए गए करीब चार में से तीन यानी 73 फीसदी परिवार के सदस्य कोरोना संक्रमण से पूर्ण रूप से स्वस्थ हो गए, 16 फीसदी लोग काफी हद तक ठीक हुए। जबकि 8 फीसदी लोग अभी कोविड से जूझ रहे हैं। इस दौरान 3.5 फीसदी परिवार ऐसे रहे जहां कोरोना से प्रभावित व्यक्ति की मौत हो गई।


कोरोना संक्रमण से पूर्ण स्वस्थ होने की दिशा में गाँव कनेक्शन सर्वे के निष्कर्षों में सामने आया कि जिन राज्यों में कोरोना संक्रमण की प्रसार दर मध्यम रही, वहां पूर्ण स्वस्थ होने वालों का आंकड़ा सबसे ज्यादा था। कोरोना संक्रमण के मध्यम प्रसार दर वाले राज्यों में 80 फीसदी वापस स्वस्थ हो गए, जबकि कोरोना के उच्च प्रसार दर वाले राज्यों में यह आंकड़ा 72 फीसदी था, और कम प्रसार दर वाले राज्यों में 61 फीसदी लोग वापस पूर्ण स्वस्थ हो सके।

सर्वे में यह भी जानने की कोशिश की कि ग्रामीण भारत में क्वारंटाइन सुविधा की क्या स्थिति रही, क्या ग्रामीण कोरोना संक्रमित परिवार के सदस्य को अस्पतालों में क्वारंटाइन के लिए ले गए या फिर संक्रमित मरीज को घर पर आईसोलेट किया गया।

सर्वे के निष्कर्षों में सामने आया कि 73 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने कोरोना संक्रमित घर के सदस्य को क्वारंटाइन सुविधा मुहैया कराई, जबकि 27 फीसदी ऐसे रहे जिन्होंने घर में ही कोरोना संक्रमित मरीज को अलग-थलग (आईसोलेट) कर दिया। निष्कर्षों में यह भी सामने आया कि कोरोना संक्रमण के कम प्रसार दर वाले राज्यों में करीब आधे ग्रामीण परिवारों (49.3 %) ने संक्रमित मरीज को घर पर ही अलग-थलग करने की व्यवस्था की।

सरकारी अस्पतालों में क्वारंटाइन सुविधाओं को लेकर देश के सबसे राज्य उत्तर प्रदेश के कन्नौज जिले में चिकित्साधिकारी और कोरोना संक्रमित मरीजों के साथ ग्रामीण स्तर पर काम करते आ रहे वरुण कटियार 'गाँव कनेक्शन' से बताते हैं, "लॉकडाउन की शुरुआत में जब प्रवासी मजदूरों के अपने गाँव आने का क्रम जारी था तो कोरोना संक्रमण के मामले सामने आने पर ग्रामीण स्तर पर अस्पतालों और स्कूलों में क्वारंटाइन सेंटर्स बनाये गए ताकि ग्रामीण स्तर पर कोरोना संक्रमण के फैलाव को रोका जाए, इस पर व्यापक रूप से काम किया गया। कोरोना संक्रमण की अलग-अलग स्टेज के लिए अस्पतालों में मरीजों के लिए अलग-अलग सेंटर्स बनाए गए। इससे काफी हद तक रोकथाम में मदद मिल सकी।"

"इसके बाद सरकार की ओर से होम आइसोलेशन में रहने की भी सुविधा मिली, इस पर भी कोरोना संक्रमित मरीजों की पूरी देखभाल सुनिश्चित की गयी, बाकायदा कोविड-19 सेंटर्स से इन मरीजों के इलाज का पूरा ख्याल रखा जा रहा है, और अब ग्रामीण स्तर पर कम मामले निकल कर सामने आ रहे हैं," डॉ. वरुण कटियार बताते हैं।


सर्वे के दौरान ये सामने आया कि ज्यादातर ग्रामीण परिवारों ने कोरोना इलाज के लिए सरकारी अस्पताल और सरकारी डॉक्टर पर भरोसा किया। 66.5 फीसदी ग्रामीण परिवार कोरोना संक्रमित घर के अपने सदस्य को इलाज के लिए सरकारी अस्पताल लेकर गए। दूसरे शब्दों में करीब दो तिहाई ग्रामीण परिवारों ने कोरोना से इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों पर भरोसा जताया, जबकि 11 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने निजी अस्पतालों की ओर रुख किया।

इसी तरह 10.2 फीसदी ग्रामीण परिवारों ने अपने घर के कोरोना संक्रमित सदस्य का स्वयं से इलाज किया, 7.2 फीसदी परिवार आयुर्वेद डॉक्टर के पास गए और 4.9 फीसदी ग्रामीण परिवार ऐसे भी रहे जो कोरोना के इलाज के लिए झोलाछाप डॉक्टर पर निर्भर रहे।

ऐसे में ग्रामीण भारत में कोरोना संक्रमण का व्यापक असर देखने को मिला। परिवार में किसी सदस्य के कोविड के लक्षण सामने आने पर जहाँ एक चौथाई ग्रामीण परिवारों ने कोविड-19 टेस्ट कराया, दूसरी ओर कोरोना के इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों पर सबसे ज्यादा भरोसा जताया।

कोरोना के जूझती दुनिया में वैक्सीन से बडी आस है। ग्रामीण भारत में आधे से थोडे कम लोग पैसे खर्च कर वैक्सीन लगवाने को तैयार हैं। सर्वे में पैसे देकर टीका लगवाने के सवाल के जवाब में 44% (2,658) लोगों ने हां कहा जबकि 36% लोगों ने कहा कि वे वैक्सीन फ्री में चाहते हैं। वहीं 20% लोगों ने तो कुछ कहा ही नहीं। जो लोग पैसे खर्च करने के लिए तैयार हैं उनमें से 66% से ज्यादा लोग चाहते हैं कि कोविड वैक्सीन की कीमत 500 रुपए से कम होनी चाहिए। एक आबादी ऐसी भी है जो कोविड के वैक्सीन के लिए कोई भी कीमत चुकाने को तैयार है।

गाँव कनेक्शन ने जिन ग्रामीण परिवारों में रैपिड सर्वे किया, उनमें 30 फीसदी सामान्य जाति के थे, जबकि करीब 37 फीसदी अन्य पिछड़ी जातियों (ओबीसी) के थे। इसके अलावा 18 प्रतिशत अनुसूचित जाति के और 11 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति के रहे। राशन कार्ड के आधार पर देखें तो 48 प्रतिशत उत्तरदाता गरीबी रेखा से नीचे यानी बीपीएल कार्ड धारक थे, जबकि 45 प्रतिशत गरीबी रेखा से ऊपर यानी एपीएल कार्ड धारक रहे और पांच प्रतिशत अंत्योदय योजना (एएवाई) के थे। सर्वे में इन ग्रामीण परिवारों के मुखिया या फिर किसी व्यस्क और जानकार व्यक्ति से आमने-सामने बातचीत की गयी।

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