गांव कनेक्शन सर्वे: फसलों की सही कीमत न मिलना किसानों की सबसे बड़ी समस्या

गांव कनेक्शन सर्वे में जो रिपोर्ट सामने आई है उसके अनुसार फसलों की सही कीमत न मिल पाना आज भी किसानों की सबसे बड़ी समस्या है, किसान अभी भी सही कीमत के लिए जूझ रहे हैं।

Mithilesh Dhar

Mithilesh Dhar   29 Jun 2019 5:13 AM GMT

लखनऊ। किसान सुनील पाटीदार जब 50 किमी की दूरी तय करके मंडी में प्याज बेचते हैं तो बदले में उन्हें जो कीमत मिलती है उससे आमदनी तो दूर, लागत भी नहीं निकल पाई। ये कहानी बस एक किसान की नहीं है। देश में किसानों की सबसे बड़ी समस्या सही कीमतों का न मिलना है।

गांव कनेक्शन ने जब देश के 19 राज्यों के 18,267 लोगों के बीच हुए अपने सर्वे में किसानों से पूछा कि आपकी नजर में आज खेती के लिए सबसे बड़ी समस्या क्या है तो 43.6 फीसदी लोगों ने कहा उनके लिए सबसे बड़ी समस्या सही कीमत का न मिलना है। ये कुल संख्या के 4,649 लोग हैं।

19.8 फीसदी लोगों ने यह भी माना कि मौसम में बदलाव के कारण भी उन्हें खेती में मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है, जबकि 17% लोगों ने कहा कि खेती में बढ़ती लागत भी परेशानी खड़ी कर रही है।

"इंदौर की मंडी में इस साल प्याज कीमत पांच से छह रुपए प्रति किलो (500 से 600 रुपए प्रति कुंतल) मिली। इससे ज्यादा तो इसकी लागत आ जाती है। ऐसे में हम खुद से यह सवाल भी पूछते हैं प्याज की खेती कर ही क्यों रहे हैं।" इंदौर से लगभग 40 किलोमीटर की दूर ब्लॉक महू, गाँव हरसोला के किसान सुनील पाटीदार ने गाँव कनेक्शन को फोन पर बताया। हरसोला आलू पूरे देश में मीठे आलू की खेती के लिए जाना जाता है। मध्य प्रदेश की पिछली सरकार ने प्याज के लिए मूल्य का निर्धारण किया था, लेकिन सरकार बदलने के बाद उस दर पर खरीद नहीं हुई।

गांव कनेक्शन के इस सर्वे के आधार पर जब हमने विशेषज्ञों और जानकारों से इस विषय पर बात कि तो उन्होंने कहा कि फसलों का सही कीमत न मिल पाने के पीछे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का सही ढंग से प्रभावी न होना भी है।

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आर्थिक सहयोग विकास संगठन और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (OECD-ICAIR) की एक रिपोर्ट के अनुसार 2000 से 2017 के बीच किसानों को उत्पाद का सही मूल्य न मिल पाने के कारण 45 लाख करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।

वर्ष 2015 में भारतीय खाद्य निगम (FCI) के पुनर्गठन का सुझाव देने के लिए बनी शांता कुमार समिति ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि एमएसपी का लाभ सिर्फ 6 प्रतिशत किसानों को ही मिल पाता जिसका सीधा मतलब है कि देश के 94 फीसदी किसान एमएसपी के फायदे से दूर रहते हैं।

वहीं वर्ष 2016 में एमएसपी पर नीति आयोग की एक भी एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई थी जिसके अनुसार 81 फीसदी किसानों को यह मालूम था कि सरकार कई फसलों के पर एमएसपी देती है। लेकिन बुवाई सीजन से पहले सही कीमत से 10 फीसदी किसान ही वाकिफ थे। ऐसे में सवाल यह भी है उठता है कि जब उचित मूल्य के लिए बनी सबसे बड़ी व्यवस्था से ही किसान दूर हैं तो उन्हें सही कीमत मिले भी कैसे।


62 फीसदी किसानों को एमएसपी के बारे में तब पता चला जब उनकी उपज तैयार हो गयी। रिपोर्ट में यह भी बताया गया था कि 32 फीसदी किसानों को एमएसपी का पैसा कैश मिलता है जबकि 40 फीसदी किसानों को चेक के माध्यम से भुगतान होता है।

किसानों के हितों की रक्षा करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की व्यवस्था लागू की गयी है। अगर फसलों की कीमत गिर जाती है, तब भी सरकार तय न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही किसानों से फसल खरीदती है, इसीलिए ये व्यवस्था लागू की गयी है। इसके जरिये सरकार उनका नुकसान कम करने की कोशिश करती है। सरकार किसानों को नुकसान बचाने के लिए 23 फसलों पर एमएसपी दे रही है लेकिन उसकी वास्तविक स्थिति बेहद नाजुक है।

स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव ने पिछले साल एमएसपी सत्याग्रह चलाया था। इसे बारे में उन्होंने एक पत्रकार वार्ता में कहा था कि एमएसपी एक मजाक है। किसानों को इससे फायदा नहीं हो रहा। देश में कोई ऐसी मंडी नहीं है जहां सरकार की तय की गई कीमत पर फसल की खरीद हो रही हो। उन्होंने यह भी कहा कि एमएसपी बढ़ाने की बात हमेशा होती है लेकिन ये किसानों को मिल जाये वही बड़ी बात है।

महाराष्ट्र नागपुर के संतरा किसान दीपक कुराडे जो संतरे और कपास की खेती करते हैं, वे भी सही कीमत न मिलने से परेशान से हैं। वे बताते हैं "हमने पिछले साल नागपुर की मंडियों में 4 से 5 रुपए प्रति किलो संतरे बेचे। असमय बारिश के कारण फसल खराब हो गई। सही कीमत न मिलने के कारण अब हम संतरे को दूसरे विकल्प की तरह देख रहे हैं। बीटी कपास की खेती भी शुरू की थी लेकिन उसे बचाने में इतना कीटनाशक खप जा रहा है कि बचत हो ही नहीं पा रही। ऐसे में खेती से फायदा तो दूर, लागत निकल जाये तो यही बड़ी बात है।"

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वहीं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कृषि अर्थशास्त्री चंद्र सेन दूसरी समस्याओं की ओर भी ध्यान दिलाते हैं। सेन गाँव कनेक्शन से कहते हैं, "किसानों को उनकी फसल की सही कीमत देनी है तो फूड प्रोसेसिंग की ओर ध्यान देना होगा क्योंकि बेहतर रखरखाव के अभाव के कारण हर साल भारी मात्रा में फल और अनाज बर्बाद हो जाते हैं।"

सेन आगे कहते हैं, "आज के समय कोई ऐसी फसल नहीं है जिसका प्रोसेसिंग फूड नहीं बनता। इससे युवाओं को रोजगार भी मिलेगा। हमारे यहां हर साल करोड़ों रुपये की उपज खराब हो जाती है। ऐसे में अगर उनके सही रख-रखाव और उससे खाने की दूसरी चीजें बनाई जा सकें तो किसानों को उनकी फसल की कीमत अपने आप मिलने लगेगी।

एमएसपी पर नीति आयोग की रिपोर्ट


सीफेट (सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्टिंग इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजीज) की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत फलों और सब्जियों का दूसरे सबसे बड़ा उत्पादक देश है, बावजूद इसके देश में कोल्ड स्टोर और प्रसंस्करण संबंधी आधारभूत संसाधनों के अभाव में हर साल दो लाख करोड़ रुपए से अधिक की फल और सब्जियां नष्ट हो जाती हैं।

इसमें सबसे ज्यादा बर्बादी आलू, टमाटर और प्याज की होती है। भारत हर साल 13,300 करोड़ रुपए के ताजा उत्पाद बर्बाद कर देता है क्योंकि देश में पर्यात कोल्ड स्टोरेज सुविधाओं और रेफ्रिजरेट वाली परिवहन सुविधाओं का अभाव है।

रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि देश भर में हर साल कोल्ड स्टोरेज के अभाव में 10 लाख टन प्याज बाजार में नहीं पहुंच पाता। सिर्फ इतना ही नहीं, 22 लाख टन टमाटर भी अलग-अलग कारणों से बाजार में पहुंचने से पहले ही बर्बाद हो जाता है।

एमएसपी तय करने के तरीके में सुधार की जरूरत

कृषि मामलों के जानकार देविंदर शर्मा भी मानते हैं कि एमएसपी तय करने के तरीके में सुधार की जरूरत है। चूंकि किसान को जो एमएसपी मिलता वह खाद्य पदार्थों के खुदरा मूल्य से सीधे जुड़ा हुआ है। एमएसपी का खाद्य पदार्थों से संबंध खत्म कर देना चाहिए। सरकार को गेहूं एमएसपी पर खरीदना चाहिए जिससे अंतत: बाजार में खुदरा मूल्य निर्धारित होगा।

देविंदर शर्मा कहते हैं, "यह सुनिश्चित करने के लिए कि किसानों को सी2 लागत पर 50 प्रतिशत मुनाफा मिले, एमएसपी पर इस मुनाफे को सीधे उनके जनधन बैंक अकाउंट में भेज देना चाहिए। उदाहरण के लिए, धान के मामले में सरकार को किसानों से इसे 1750 रुपए प्रति क्विंटल पर खरीदना चाहिए और शेष 590 रुपए प्रति क्विंटल को सीधे उनके अकाउंट में भेज देना चाहिए। इस तरह बिना खुदरा मूल्य प्रभावित हुए किसान को उनका वाजिब हक मिल जाएगा। कई दशकों पहले की गई गलती को सुधारने का यह एक मौका है।"

कृषि अर्थशास्त्री चंद्र सेन भी इस ओर ध्यान देने की बात करते हैं। वे कहते हैं "उपज खरीद की प्रणाली को फ्री छोड़ देना चाहिए। यह नियंत्रण बिल्कुल सही नहीं है। इससे किसानों को आजादी मिलेगी, वे अपने हिसाब से उपज बेच पाएंगे।"


फसलों के एमएसपी का आंकलन करने वाले कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) खेती की लागत के तीन वर्ग बनाए हैं - ए2, ए2+एफएल और सी2। ए2 में फसल उत्पादन के लिए किसानों द्वारा किए गए सभी तरह के नकद खर्च जैसे- बीज, खाद, ईंधन और सिंचाई आदि की लागत शामिल होती है।

ए2+एफएल में नकद खर्च के साथ उत्पादन में किसान परिवार का मेहनताना भी जोड़ा जाता है। फैमिली लेबर यानी फसल उत्पादन लागत में किसान परिवार का अनुमानित मेहनताना भी जोड़ा जाता है, जबकि सी2 में खेती के व्यवसायिक मॉडल को अपनाया गया है। इसमें कुल नकदी लागत और किसान के पारिवारिक पारिश्रामिक के अलावा खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है।

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भू-विज्ञानी और गाँव कनेक्शन के प्रधान संपादक डॉ. एसबी मिश्रा कहते हैं, "किसान की पैदावार की मांग जब बढ़ जाती है और उस हिसाब से सप्लाई घट जाती है, तो सरकार शहरी आबादी को राहत देने के लिए आयात का सहारा लेती है। जब पैदावार ज्यादा होती तो उसको निर्यात करने का फैसला सही समय पर नहीं लिया जाता, अगर यह व्यवस्था सही हो जाए तो बदलाव आ सकता है।"

"ऐसा न हो किसानों को अपनी उपज मजबूरी में बेचनी पड़े। सरकार को रख-रखाव के लिए विशेष इंतजाम भी करने चाहिए, बिचौलिए से छुटकारा मिले, ये सब हो जाए तो किसानों को राहत मिल सकती है, सही कीमत मिलने से ही किसानों को भला होगा वरना किसी सरकार के पास इतना पैसा नहीं है कि वे लागत का डेढ़ गुना दे पाएं।" डॉ. एसबी मिश्रा आगे कहते हैं।

कैसे तय होता है एमएसपी?

फसलों के एमएसपी का आंकलन के लिए कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) खेती की लागत के तीन वर्ग बनाए गए हैं - ए2, ए2+एफएल और सी2।

ए2 :

फसल उत्पादन के लिए किसानों द्वारा किए गए सभी तरह के नकद खर्च जैसे- बीज, खाद, ईंधन और सिंचाई आदि की लागत शामिल होती है।

ए2+एफएल:

नकद खर्च के साथ उत्पादन में किसान परिवार का मेहनताना भी जोड़ा जाता है। फैमिली लेबर यानी फसल उत्पादन लागत में किसान परिवार का अनुमानित मेहनताना भी जोड़ा जाता है।

सी2:

खेती के व्यवसायिक मॉडल को अपनाया गया है। इसमें कुल नकदी लागत और किसान के पारिवारिक पारिश्रामिक के अलावा खेत की जमीन का किराया और कुल कृषि पूंजी पर लगने वाला ब्याज भी शामिल किया जाता है।

स्वामीनाथन कमीशन ने किसानों को C2 एमएसपी देने की सिफारिश की है।

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