घाघरा का कहर: न घर बचे न खेत, तिरपाल में कट रही जिंदगी

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घाघरा का कहर: न घर बचे न खेत, तिरपाल में कट रही जिंदगीgaonconnection

कचनापुर (बाराबंकी)। घाघरा नदी की तराई में बसे सैकड़ों गाँव पानी में डूबे हुए हैं। तहसील रामनगर के दर्जनों गांवों में सैकड़ों घर नदी में समा गए हैं। सबसे ज्यादा हालात हेतमापुर के आसपास खराब हैं। यहां लोग पिछले एक पख़वाड़े से बंधे के ऊपर तिरपाल में जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

बाराबंकी जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में कंचनापुर गाँव के चार और लोगों के घर नदी में समा गए। जुम्मन अली, शेरा, मौलाना फारुख और मोहम्मद कलाम का परिवार अब खुले आसामन के नीचे आ गया है। अकेले इसी गाँव में अब तक तीन दर्जन से ज़्यादा घर घाघरा नदी में कट गए हैं।

बाढ़ की चपेट में यहां के पचास से ज्यादा छोटे बड़े गांव है। सीतापुर में चलहारी घाट से लेकर एल्गिन ब्रिज बाराबंकी तक बनाए गए बंधे के उसपार बसे सभी गांवों में पानी भरा है।

बाढ़ प्रभावित असनेरा के निवासी और ग्राम प्रधान राजेश वर्मा बताते हैं, “बंधे के उस पार पूरे इलाके में पानी ही पानी है। तमाम लोगों के घर पानी में समा गए हैं, जिनके बचे भी हैं वो भी जान बचाने के लिए बंधे पर रह रहे हैं। सरकार ने हमें तिरपाल दिया है। कुछ दिन पूड़ियां भी बांटी गईं वो इंतजाम पूरे नहीं है।”

इलाके के ज्यादातर लोग खेती और पशुपालन करते हैं, लेकिन दोनों को झटका लगा है। खेतों में 4-5 फीट पानी भरा होने से फसलें बर्बाद हो गई हैं तो जानवरों के लिए भी चारे का संकट खड़ा हो गया है। राजेश आगे बताते हैं, “लोग अपने जानवर लेकर बंधे के उस पार चले गए हैं। जो लोग बंधे पर रह रहे हैं वो तीन-चार किलोमीटर दूर से चारा लाते हैं। बड़ी समस्या है।”

लालापुरवा, कोडरी का पुरवा, सेलहरी, सलईपुर, बाबापुरवा, हेतमापुर, कचनापुर गांवों में सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है। कोडरी में जगदीश, जगजीवन और जगदंबा के पास रहने को ठिकाना नहीं बचा है। सुंदरनगर में भी छेदी, राम विजय, सुरेश, आनंद, रेतहू और गुरुदीन के घर घाघरा में समा गए हैं।

हालांकि अधिकारियों का कहना है कि पानी उतरना शुरू हो गया है। लेकिन घाघरा का कम होता पानी भी मुसीबत बन जाता है।

बाढ़ खंड बाराबंकी के अधिशाशी अभियंता जीतेंद्र कुमार लाल बताते हैं, “नदी का उतरता पानी कटान ज्यादा करता है इसलिए तराई के आसपास के गांवों में कटान हो सकता है। हालांकि पिछले वर्षों के मुकाबले नुकसान कम हुआ है। बांध के चलते जो पानी सूरतंगज के करीब आ जाता था, वो एक-दो किलोमीटर में सिमटा है लेकिन डूब क्षेत्र के गांव थे वहां पानी है। बंधा पूरी तरह सुरक्षित है।”

रिपोर्टर - वीरेंद्र शुक्ला

 

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