घाघरा की कटान ने हजारों की खुशियां छीनीं

Arvind ShukklaArvind Shukkla   15 July 2016 5:30 AM GMT

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घाघरा की कटान ने हजारों की खुशियां छीनींघाघरा ने सब छीन लिया,

अंगरौरा (सीतापुर)। बाबूराम यादव के पास कभी दो हजार बीघा जमीन और 17 कमरों का पक्का मकान था, लेकिन आज वो सड़क के किनारे छप्पर में रहने को मजबूर हैं। पास में बहते पानी को दिखाते हुए बाबूराम बताते हैं, “घाघरा ने सब छीन लिया। अब तो पता नहीं ये (छप्पर) किस दिन लील जाए।”अंगरौरा गाँव के बाबूराम यादव (75 वर्ष) जैसे हजारों किसान तराई और गांजर बेल्ट कही जाने वाली लखीमपुर, सीतापुर, बाराबंकी, गोंडा समेत घाघरा के चलते दर-दर की ठोकरे खाने को मजबूर हैं।

लखनऊ से 80 किलोमीटर उत्तर दिशा में सीतापुर जिले में रामपुरमथुरा ब्लॉक में दो साल पहले एक बड़ा गाँव हुआ करता था अंगरौरा, लेकिन अब वो घाघरा के बीचों-बीच है। 1600 लोगों की आबादी वाली ग्राम पंचायत में सात मजरे थे, जिसमें से अंगरौरा समेत तीन पानी मे समा चुके हैं। कुछ गाँवों के लोग आसपास के गाँवों में बस गए हैं तो कुछ घर और जमीन छिनने पर शहर में दो वक्त की रोटी तलाश रहे हैं। 

नदी की कगार पर बैठे पूर्व बीडीसी शत्रोहन (75 वर्ष) बताते हैं, “अकेले अंगरौरा में ही 300 घर थे, सब बर्बाद हो गया। जो कल तक सैकड़ों बीघे खेत के मालिक थे, दूसरे लोग उनके घरों में काम करते थे, आज वो खुद मनरेगा में काम तलाश रहे हैं।” शत्रोहन की बात को लखनऊ और अंगरौरा के बीच चक्कर लगाने वाले दीपक तिवारी (38 वर्ष) आगे बढ़ाते हैं।

पूर्व प्रधान दीपक तिवारी का परिवार कभी आर्थिक रूप से मजबूत लोगों में गिना जाता था। सैकड़ों बीघे जमीन भी थी, लेकिन वो फिलहाल बेरोजगार हैं। रोजगार तलाशने के साथ वो बाढ़ प्रभावित लोगों के लिए आवाज भी उठाते रहे हैं। “घाघरा गांजर के लिए अभिशाप की तरह है, हजारों लोगों की रोजी-रोटी इसमें चली गई है। जब लोगों की जमीनें कट गई हैं तो उनके घर और रोजगार का इंतजाम होना चाहिए।” दीपक तिवारी बताते हैं।

घाघरा प्रभावित लोगों के लिए आवाज़ रामपुरमथुरा में 2009 में गांजर स्वाभिमान मंच बनाया गया। इसी दौरान मंच के संयोजक और स्थानीय पत्रकार राम मनोरथ अवस्थी ने साथियों के साथ लखनऊ तक पथयात्रा कर प्रदर्शन कर बांध बनवाने और विस्थापितों को मौलिक सुविधाएं देने की मांग की। राम मनोरथ अवस्थी बताते हैं, “पिछले दस वर्षों में 50 गाँव कम से कम नदी में डूबे होंगे और 30 हजार लोग प्रभावित हुए होंगे।’’ 

वो आगे बताते हैं, “इतनी उपजाऊ जमीन होंने के बाद इलाके का आदमी नदी के प्रकोप के चलते ही गरीबी के दलदल से नहीं निकल पाया। लखनऊ से सिर्फ 80 किलोमीटर दूर होने के बावजूद ये इलाके विकास में बहुत पीछे रह गया।”

राहत की बात है कि इस वर्ष घाघरा से प्रभावित सीतापुर, बाराबंकी समेत तीन जिलों को बांघ के रूप में कवच मिला है। सीतापुर में चलहारी घाट से बाराबंकी के एग्गिन ब्रिज तक बांध बना दिया गया है। प्रोजेक्ट से जुड़े अधिशाशी अभियंता बाढ़ खंड बाराबंकी जीतेंद्र कुमार लाल बताते हैं, “5300 करोड़ की लागत से 54 किलोमीटर लंबा बांध बनाया गया है। इससे तीन जिलों के सैकड़ों गाँवों को फायदा हुआ है। घाघरा पहाड़ों से सीधे मैदानी इलाकों में आती है इसलिए बाकी नदियों की अपेक्षा कटान ज्यादा करती है। बांध बनाने से बहुत बड़े इलाके को बचा लिया गया है। लेकिन नदी का प्रवृत्ति ही कटान की होती है इसलिए नदी के पास के क्षेत्र में असर अभी रहेगा।”

घाघरा मेें कट गया था कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह का ददिहाल

गंगा की प्रमुख सहायक नदी घाघरा लखीमपुर के रास्ते उत्तर प्रदेश में प्रवेश करती है। सीतापुर में ये नदी रेउसा ब्लॉक में काशीपुर-मल्लापुर गाँवों के पास प्रवेश करती है। लेकिन इन दोनों का गाँवों का अब पुराना वजूद नहीं है। यहीं पर शारदा नदी और घाघरा का संगम होता है, जिसके बाद ये नदी और विकराल हो जाती है। बाराबंकी के बाद ये नदी सरयू में मिल जाती है।

                           

  

मल्लापुर कांग्रेस महासचिव और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का ददिहाल भी था। वक्त-वक्त पर नेता और अधिकारी लखीमपुर, सीतापुर, बाराबंकी, बहराइच, गोंडा और बस्ती में चक्कर लगाते रहे लेकिन गांव के गाँव नदी में समाते रहे। अंगरौरा के पूर्व प्रधान दीपक तिवारी बताते हैं, “यहां के लोग मूल रूप से किसान हैं, घर कट जाता है तो दोबारा बन सकता है, लेकिन खेती कटती है तो कई बार उसे पाना मुश्किल हो जाता है। सरकार मदद भी करती है लेकिन वो नाकाफी होती है। कच्चा घर कटने पर सरकार 5200 रुपए जबकि पक्का घर कटने पर 70 हजार की मदद मिलती है। क्या इतने पैसों में घर बनना संभव है ?”

कागजों पर सीतापुर में है ही नहीं घाघरा नदी

“हमारी मदद इसलिए भी ज्यादा नहीं हो पाती क्योंकि सीतापुर जिले के कागजों पर घाघरा का वजूद ही नहीं है। जिले में नदी गोबरहिया के नाम से दर्ज है, क्योंकि पहले से बहराइच जिले में बहती थी, लेकिन अब 10 किलोमीटर सीतापुर के अंदर आ गई है।” नदी से कुछ 70-80 मीटर दूर अपनी झोपड़ी में गुजर कर रही भगाना देवी (50 वर्ष) के बच्चे बाहर कमाने चले गए हैं। वो और उनके पति मजदूरी करते हैं। गुजारा कैसे होते है पूछने पर भगाना बताती हैं छप्पर के नीचे रखी सिलवट पर पड़े नमक को दिखाते हुए कहती हैं, नमक-रोटी का सहारा है। जब रोज काम मिलता है तो साग और दाल भी बना लेते हैं।” बुधाना के पास राशन का किसी भी प्रकार का कार्ड नहीं है। वो कहती है, “हर महीने कुछ अनाज मिल जाता तो जीना आसान हो जाता।”

अधिकारी बोले-कर रहे पूरी मदद

हालांकि अधिकारियों का मानना है बाढ़ प्रभावित लोगों की पूरी मदद की जा रही है। उपजिलाधिकारी, महमूदाबाद एके सिंह कहते हैं, “बांध ने इलाके की कई समस्याएं हल कर दी हैं। इस बार हमारे क्षेत्र में किसी गाँव को नुकसान नहीं पहुंचा है। हां कुछ गांवों की जमीन जरूर कटी है, उन्हें उचित मुआवजा दिया जाएगा। पिछले वर्ष अंगरौरा कटा था तो वहां के ग्रामीणों को गोंडा-देवरिया के पास रायसेनपुर ग्राम पंचायत में बसाया गया है। उन्हें वहीं सारी सुविधाएं दी जा रही है। कुछ ग्रामीण खेती से लगाव के चलते जरूर अंगरौरा में सड़क किनारे रह रहे हैं, उनकी जरूरत के मुताबिक मदद की जा रही है।”

रिपोर्टर - वीरेंद्र शुक्ला

अतिरिक्त सहयोग: अमर बहादुर सिंह

 

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