घाघरा नदी में डूबा बच्चों का भविष्य

Swati ShuklaSwati Shukla   2 Nov 2015 5:30 AM GMT

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घाघरा नदी में डूबा बच्चों का भविष्य

बाराबंकी। घाघरा नदी के किनारे बसे गाँव के बच्चे स्कूल होने के बावजूद चबूतरे पर पढऩे को मजबूर हैं क्योंकि तीन महीने पहले नदी में बाढ़ आने के कारण आधा स्कूल नदी में बह गया था। अब स्कूल को बनवाने की कोई सुध नहीं ले रहा। जिसकी वजह से बच्चों को पढऩे में परेशानी हो रही है।

घाघरा नदी के किनारे विद्यालय में 175 बच्चे के नाम लिखें है लेकिन बाढ़ के बाद 40 बच्चे स्कूल आते है। यहां पर बाढ़ का पानी खत्म होने के बाद ग्रामीणों को मूलभूत सुविधाओं से जूझना पड़ रहा है।  ऐसे परिवारों की संख्या लगभग तीन सौ है। जिनको तटबंध से नाव से अपने घर रेता में पहुंचना पड़ता है। खेती उस पार होने के कारण तमाम परिवार नदी के रेता में ही जिन्दगी गुजार रहे हैं। इनके बच्चों के पढऩे के लिए एक मात्र सहारा प्राथमिक विद्यालय था। वह अब नदी में विलीन हो चुका है। जिससे बच्चों के पढऩे की समस्या बनी हुई है लेकिन इस बाढ़ पीडि़त गांव की दशा सुनने वाला कोई नहीं है।

जिला मुख्यालय से 60 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में ब्लॉक सूरतगंज के अति पिछड़े क्षेत्र बाढ़ की तबाही देख चुके कचनापुर गाँव के 141 परिवार और 600 वोटर है। गाँव के  इद्रीश (34 वर्ष) बताते हैं, ''तीन माह बीत गये बाढ़ आये पर बहुत लोग देखने आए पर कोई अधिकारी ने आर्थिक सहायता के नाम पर हम लोगों को कुछ नहीं मिला।

गाँव में एक स्कूल था जिसमें हम लोगों के बच्चे पढ़ते थे, उसे भी बाढ़ ने अपनी चपेट में ले लिया। जान जोखिम में डालकर इस टूटे हुए स्कूल में अपने बच्चों को पढऩा पड़ रहा है। स्कूल भेजते समय डर सा लगा रहता है कि बच्चों के साथ कहीं कोई हादसा न हो गया।" सना कक्षा चार की छात्रा बताती है, ''हमारे हियाँ जब स्कूल नदी मा कटा रहा, तब बड़े-बड़े साहेब आये रहैं, पर तीन-चार महिना बीतिगे, कोई स्कूल के पुस्तेहाल नइभा। दुसरे दुआरे बैठि के मास्टर साहेब पढ़ावत रहैं। अब हुऔं नइ पढ़ावै दिहा गया तौ, मास्टर साहेब इ टुटहे स्कूल मा पढ़ावत हैं"

पूरेडलई ब्लॉक के घाघरा नदी उस पार स्थित मांझा रायपुर गांव में करीब तीन हजार की आबादी है। यहां पर 1805 मतदाता हैं। यहां की जनसंख्या करीब 460 है जो तटबंध के निकट मकान बनाकर रह रही है और बाकी की जनसंख्या घाघरा नदी की रेता में अपना जीवन-यापन कर रही है। 

जहां पर इन परिवारों को पहुंचने में आज भी नाव भी एक मात्र सहारा है। इनकी भूमि खेती लायक न होने से इनको मजबूरी में दिहाड़ी मजदूरी करना पड़ रहा है। परिवार का एकमात्र सहारा दिहाड़ी मजदूरी ही बचा है। बाढ़ का पानी खत्म हुए दो माह बीत गए हैं लेकिन अभी तक जो फसलें नष्ट हुईं थी। उसका मुआवजा नहीं मिल सका है। गांव के ही निवासी नदी के बीचों अपना मकान बनाकर रह रहे हैं।

गांव के एक छप्परनुमा मकान में विद्यालय चलता है लेकिन वहां पर भी शिक्षकों की नियमित उपस्थिति न होने से बच्चे शिक्षा ग्रहण नहीं कर पा रहे हैं। ऐसे में पंद्रह कि लोमीटर दूर तक शिक्षा का कोई साधन नहीं है। गांव के ही निवासी रामचंदर कहते हैं कि रेता में मकान होने से लोगों को रोजमर्रा की वस्तुओं से जूझना पड़ता है लेकिन यहां पर कोई सुनने वाला नहीं है।

कचनापुर विद्यालय के प्रधानाचार्य अनामी शरण (48 वर्ष) बताते है, ''विद्यालय में 175 विद्यार्थी पंजीकृत है। लेकिन जब से बाढ़ की चपेट में विद्यालय आया तब से सिर्फ 40 बच्चे ही स्कूल आ रहे है। विद्यालय के आधे से ज्यादा गिर जाने के बाद गाँव के मो.ताहिर के घर के सामने लगे पेंड़ के नीचे बैठकर पढ़ाया, लेकिन उन्हे असुविधा होने के कारण फिर विद्यालय में आकर पढ़ाना पड़ रहा है।"

गाँव के इरफान (60 वर्ष) का कहना है कि गाँव को कहना है ''गाँव को लगभग 50 फिट अन्दर तक बाढ़ ने अपनी चपेट में ले लिया है जिसमें एक दर्जन से ज्यादा लोगों के घर पूरे या आशिंक रुप से बह गये हैं।" 

नदी आबादी से बिल्कुल सटी हुई है जबकि बाढ़ अन्स सालों की अपेक्षा कम आयी थी तब से आलम है अगर बाढ़ के पानी को रोकने के पुख्ता इन्तजाम न किये गये तो इस बार हमारा गाँव पूरी तरह बाढ़ के गाल समा जाएंगा। कहते है कि बाढ़ में कचनापूर के मौलाना मुजिबद्दीन का दस वर्षीय पुत्र मोहम्मद फेज नदी में दूब गया। राहत के नाम पर कुछ लोगों को चार-चार हजार रुपए की चेकें  मिली हैं।"

गाँव के प्रधान रामकिशोर अवस्थी (55 वर्ष) कहते हैं ''घर कटने वाले लोग जिनके घर नदी में बह गये थे, उन्हे जमीन देने को प्रशासन के द्वारा कहा गया था पर कुछ हुआ नहीं। जिलाधिकारी, मुख्य विकास अधिकारी और अन्य उच्चअधिकारीयों को हमने अवगत कराया। लगभग सभी अधिकारीयों ने इस क्षेत्र का निरीक्षण किया लेकिन ना तो विघालय की व्यवस्था हुई और ना ही कटे हुए घरों की भी कोई सकारात्मक पहल नहीं हुुई है।"

बेसिक शिक्षा अधिकारी पी.एन.सिहं बताते है, ''विभाग से पत्र लिखकर मरम्मत के लिए धनराशि मांगी गई है जैसे ही धनराशी मिल जाएंगी वैसे ही विद्यालय की मरम्मत कर दी जाएंगी। अभी वहां स्कूल संचालित किया जा रहा है।"

रिपोर्टर - स्वाती शुक्ला/वीरेन्द्रसिंह 

 

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