गलाघोंटू और लंगड़िया बुखार के टीके सभी पशु चिकित्सालयों पर उपलब्ध

  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
  • Whatsapp
  • Telegram
  • Linkedin
  • koo
गलाघोंटू और लंगड़िया बुखार के टीके सभी पशु चिकित्सालयों पर उपलब्धgaonconnection

लखनऊ। बरसात के मौसम में पशुओं में होने वाले रोग गलाघोंटू और लंगड़िया बुखार से पशुओं को बचाने के लिए पशु चिकित्सालयों में नि:शुल्क टीकाकरण की व्यवस्था की गई।

लखनऊ स्थित पशुपालन विभाग के उपनिदेशक डा.वीके सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि “पशुओं में होने वाले गलाघोंटू और लंगड़िया बुखार से पशुओं की मौत भी हो जाती है, जिससे पशुपालक को काफी नुकसान होता है। लंगड़िया बुखार गो-पशुओं में अधिक होता है। यह रोग पशु के पिछले पैरों को अधिक प्रभावित करता है। गलाघोंटू जीवाणु जनित रोग, छूत वाला भी है। यह एक पशु से दूसरे पशु को जल्दी फैलता है।” वो आगे बताते हैं,“पशुओं में इन बीमारियों के लक्षण दिखते ही अपने पास के पशुचिकित्सालय में संपर्क करना चाहिए।”

गलाघोंटू के लक्षण

  • इस रोग में पशुओं को तेज बुखार। 
  • पशु सुस्त हो जाता है और खाना-पीना भी कम कर देता है। 
  • पशु की आंखें लाल हो जाती हैं। 
  • सांस लेने में कठिनाई होती है जिससे घर्रघर्र की आवाज आती है। 
  • पशु के मुंह से लार गिरने लगती है।

रोकथाम कैसे करें

1. पशुओं को हर वर्ष इस रोग का टीका  अवश्य लगवा लेना चाहिए। 

2. बीमार पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।

3.जिस स्थान पर इस रोग से पीड़ित पशु बांधा हो उसे कीटाणुनाशक दवाइयों, फिनाइल और चूने के घोल से धोना चाहिए।

4.पशु आवास को स्वच्छ रखें और रोग की संभावना होने पर तुरन्त पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर सलाह लें।  

लगड़िया बुखार के लक्षण

  • पशु के पिछली और अगली टांगों के ऊपरी भाग में सूजन आ जाती है, जिससे पशु लंगड़ा कर चलने लगता है।
  • पशु को बुखार तो आता ही है साथ ही वह सुस्त होकर खाना-पीना भी कम कर देते है।  
  • पैरों के अलावा सूजन पीठ, कंधे और अन्य मांसपेशियों वाले हिस्से पर भी हो जाती है। 
  • =सूजन के ऊपर वाली चमड़ी सूखकर कड़ी होती जाती है। 

रोकथाम

  • यह टीका पशु को छह माह की आयु पर ही लगवा लेना चाहिए। 
  • रोगग्रस्त पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए।
  • सूजन को चीरा मारकर खोल देना चाहिए जिससे जीवाणु हवा के सम्पर्क में आने पर अप्रभावित हो जाए।
  • पशु का उपचार शीघ्र करवाना चाहिए क्योंकि इस बीमारी के जीवाणुओं द्वारा जहर शरीर में पूरी तरह फैल जाने से पशु की मृत्यु हो जाती है।   

पशुपालक संपर्क कर सकता है 

अगर पशुपालक को अपने पशुओं में इन रोगों की संभावना दिखे तो वो पहले अपने पास के पशुचिकित्सक को संपर्क कर सकता है। इसके साथ जनपद के मुख्य पशुचिकित्साधिकारी से संपर्क कर सकता है। 

India 

Next Story

More Stories


© 2019 All rights reserved.