गन्ना किसानों के 92 फीसदी बकाए का भुगतान

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गन्ना किसानों के 92 फीसदी बकाए का भुगतानgaon connection

नई दिल्ली। सरकार ने बुधवार को कहा कि चीनी मिलों ने गन्ना किसानों के 48,675 करोड़ रुपए के बकाए का भुगतान कर दिया है और उस पर सितंबर को समाप्त होने वाले चालू विपणन वर्ष में करीब 4,225 करोड़ रुपए का बकाया रह गया है।

गन्ना के कुल बकाए में उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 1,975 करोड़ रुपए का बकाया था। भुगतानयोग्य गन्ना क़ीमत और बकाए को उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी), जो अधिकतम क़ीमत है और केंद्र द्वारा निर्धारित किया जाता है, के आधार पर गणना की गई है और यह किसानों को दिया जाएगा। 

विपणन वर्ष 2015 और 16 के लिए गन्ने का एफआरपी 230 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। खाद्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा, चालू चीनी सत्र 2015-16 के दौरान देश भर में चीनी मिलों द्वारा किसानों से करीब 23 करोड़ टन गन्ने की खरीद की गई थी। मंत्रालय ने कहा, उचित एवं लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के आधार पर गन्ना के कुल 52,900 करोड़ रुपए के कुल बकाए में से चालू चीनी सत्र में गन्ना कीमत के बकाए के रुप में केवल 4,225 करोड़ रुपए अब बच गए हैं। इसमें कहा गया है कि चीनी मिलों ने अभी तक गन्ना बकाया राशि का करीब 92 प्रतिशत का भुगतान कर दिया है।

बयान में कहा गया है, चालू चीनी सत्र के लिए कुल लंबित गन्ना कीमत के बकाए में से करीब 1,975 करोड़ रुपए का बकाया उत्तर प्रदेश में है, यह बकाये भुगतान का करीब 14 प्रतिशत है। गन्ना बकाए का अधिकांश 1,600 करोड़ रुपए का हिस्सा पांच चीनी समूह कंपनियों बजाज, मवाना, मोदी, सिम्भौली और राना के हैं। देश में प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य महाराष्ट्र ने लगभग 96 प्रतिशत गन्ना कीमत बकाए का भुगतान कर दिया है। कर्नाटक जैसे अन्य प्रमुख चीनी उत्पादक राज्य ने किसानों के अपने बकाए के 94 प्रतिशत राशि का भुगतान कर दिया है। चीनी सत्र 2014-15 के दौरान पिछले वर्ष अप्रैल में गन्ने का बकाया 21,800 करोड़ रुपए की ऊंचाई को छू गया था और अब यह घटकर मात्र 684 करोड़ रुपए रह गया है।

मंत्रालय ने कहा, केंद्र सरकार निरंतर गन्ना मूल्य बकाये की स्थिति की निगरानी करती आ रही है और राज्यों को परामर्श दे रही है कि वे अपने बकाये का तेजी से निपटान करें। ब्राजील के बाद भारत दुनिया में चीनी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। चीनी उत्पादन विपणन वर्ष 2015-16 में घटकर 2.5 करोड़ टन रह जाने का अनुमान है जो उससे पिछले वर्ष में 2.83 करोड़ टन का हुआ था। 

 

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