गन्ने के गढ़ में गाजर की खेती

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गन्ने के गढ़ में गाजर की खेतीगाँव कनेक्शन, गाजर की खेती, गाजर

मेरठ। गन्ने का गढ़ कहे जाने वाले मेरठ समेत पश्चिमी यूपी के कई जिलों में किसान अब बड़े पैमाने पर गाजर बोने लगे हैं। गन्ने की खेती में बढ़ते घाटे और गाजर से नगद पैसे मिलने से किसान इस तरफ रुख कर रहे हैं।

मेरठ में दूर तक गन्ने के खेत ही नजर आते हैं, लेकिन अब इन गन्नों के बीच गाजर के खेत भी नजर आने लगे हैं। जिला मुख्यालय से लगभग 35 किमी पूर्व दिशा में इदरीशपुर ब्लॉक के कई गांवों में आपको खेतों में गाजर धुलते किसान नजर आ जाएंगे। यहां के किसान एक साथ कई फसल लेते हैं।

इदरीशपुर ब्लॉक में पेपला गाँव के किसान हरीशचंद शर्मा (50 वर्ष) के पास करीब 70 बीघा जमीन है। इस बार उन्होंने 25 बीघे में गाजर बोई है जबकि बाकी में गन्ना और दूसरी फसले हैं। गाजर खेत की मेढ़ पर टलहते हुए हरीशचंद शर्मा बताते हैं, ''हमारे यहां के गन्ना किसानों की हालत खराब है, चीनी मिल समय से पैसा नहीं देती, इसलिए मैंने पांच सालों से गन्ना कम कर दिया अब गाजर बोना शुरू कर दिया। वो आगे कहते हैं, किसान पूरी तरह से गन्ने की फसल नहीं छोड़ सकता, लेकिन कम जरूर कर रहे हैं।"

हरीशचंद शर्मा खुदराई करवा कर गाजर की धुलाई के बाद मेरठ की मंडियों, दिल्ली की आजादपुर मंडी या फिर हरिद्धार भिजवाते हैं। कई किसान सहारनपुर और देहरादून तक भी माल ले जाते हैं।

हरीशचंद शर्मा ने गाजर की धुलाई के लिए मशीन लगा रखी है। अब समय और पैसे दोनों की बचत होती है। उनके बेटे बबलू शर्मा (30वर्ष) बताते हैं, ''पहले गाजर की धुलाई में बहुत मजदूरी लग जाती थी और समय भी बहुत लगता था। हरियाणा गया था वहीं पर इस मशीन को देखा था। इसे बनवाने में डेढ़ लाख खर्च हुए। ट्रैक्टर से फिट कर रखा है और एक बार में आसानी से 18 से 20 बोरी गाजर धुल जाती हैं।"

किसान कुछ खेतों में गाजर खोदने के बाद गेहूं की बुआई कर देते हैं, जिससे किसानों को दोगुना फायदा होता है। साथ ही व्यापारी खेत से ही सीधे गाजर खरीद ले जाते हैं।

गाजर की फसल को न ही नीलगाय नुकसान पहुंचाती हैं और न ही जंगली सुअर। हरिश्चन्द्र कहते हैं, ''पहले यहां भी अरहर बोते थे लेकिन नीलगाय की वजह से अब नहीं बोते हैं, जंगली सुअर गन्ने को नुकसान पहुंचाती हैं, लेकिन गाजर को जंगली सुअर और नीलगाय दोनों नुकसान नहीं पहुंचाती हैं।

गुणवत्ता के हिसाब से गाजर मंडी पहुंचायी जाती है। सब्जी, अचार और हलवा तीन श्रेणियों में बोरियों में गाजर भरी जाती है। गाजर की छंटायी कर रहे आरिफ बताते हैं, गाजर खोदने के बाद धुलायी मशीन में डाली जाती है उसके बाद साफ करने के बाद अलग-अलग बोरियों में भरते हैं, जिससे मंडी में बेचने में आसानी होती है।

पेपला गाँव के किसान मंजीत चौधरी (35 वर्ष) बताते हैं, "हमारे यहां के कई किसानों ने गाजर की फसल की शुरूआत की है। इससे किसानों काफी फायदा हो रहा है।"

मेरठ के साथ ही शामली, मुजफ्फरनगर और बागपत में भी किसान गाजर की खेती कर रहे हैं। 

 

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