गोद लेने वालों की मानसिकता बदलना ज़रूरी

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गोद लेने वालों की मानसिकता बदलना ज़रूरीगाँवकनेक्शन

अपर्णा कालरा

करीब

छह महीने पहले ही मेनका गांधी की अध्यक्षता वाले महिला व बाल विकास मंत्रालय ने गोद लेने के नए नियम अपनाए थे। नए नियमों के अनुसार, सभी दत्तक अभिभावक व उनके बच्चों को मंत्रालय द्वारा एक साथ, एक ऑनलाइन डेटाबेस में लाया गया है, जिसे सेंट्रल अडॉप्शन रिसोर्स अथॉरिटी (कारा) द्वारा प्रबंधित किया जाएगा। इस नए नियम में कुछ अच्छी बातें है तो कुछ बुरी भी तो कुछ बेचैन करने वाले आंकड़े भी हैं। 

सबसे पहले बात गुड न्यूज की, तो इस नए नियम के तहत राहत की बात यह है कि अब ऑनलाइन प्लेटफॉर्म के जरिए गोद लेने कि प्रक्रिया जल्द पूरी हो सकेगी और वो भी पहले से कहीं अधिक पारदर्शिता के साथ। बुरी खबर अडॉप्शन एजेंसियों के लिए हैं। वे परेशान हैं कि अब गोद लेने की प्रक्रिया में उनका हस्तक्षेप कम हो जाएगा और मनमाने पैसे भी नहीं वसूल पाएंगे। ऑनलाइन प्रणाली से गोद देने वाली एजेंसियों का किसी विशेष अभिभावक के पक्ष में निर्णय लेने पर भी रोक लगेगी।

अब बात आंकड़ों की, जैसा हमने ऊपर बताया था कि इस नियम के तहत कुछ बेचैन करने वाले आंकड़े भी मिले हैं। इनके मुताबिक 50,000 अनाथ बच्चों में इस देश में से सिर्फ 1,600 बच्चों को ही उनके लीगल पैरंट्स मिल पाए हैं। जबकि 50,000 से आधे बच्चों के लिए करीब 7,500 अभिवावक अभी कतार में हैं और अन्य आधे बच्चों को किसी मेडिकल प्रॉब्लम की चलते या फिर उनकी उम्र दो साल से ज्यादा होने की वजह से कोई उन्हें गोद लेने को तैयार नहीं। उम्र से बड़े या दिव्यांग बच्चों को इंटर कंट्री अडॉप्टशन यानी दूसरे देश की नागरिकता प्राप्त पैरंट्स अडॉप्ट कर लेते हैं। 

नए नियम से कई सकारात्मक बातें हो सकती हैं जैसे गोद लेने वाले अभिभावक, एजेंसियों के हस्तक्षेप के बिना देश के किसी भी हिस्से से बच्चे को गोद ले सकते हैं। 

इसके गोद लेने की इच्छा वाले अभिभावकों को वेटिंग लाइन में इंतजार करने के बजाए एक वरिष्ठता नंबर प्रदान करके अडॉप्शन प्रोसेस को पारदर्शी बनाया जाएगा। इससे मनमानेपन में भी कटौती होगी क्योंकि अब गोद देने वाली एजेंसियां के पास यह निर्णय लेने का अधिकार नहीं रहेगा कि किस अभिभावक के लिए कौन से बच्चे का मेल सही रहेगा। इससे अनाथ बच्चों की संख्या पर कुछ असर पड़ सकता है। वैसे अडॉप्शन एजेंसियों ने इस नियम पर नाराजगी जताई। कई एजेंसियों का कहना था कि वे यहां काम करने के लिए हैं न कि केवल कम्प्यूटर पर बैठने के लिए है। नए दिशा निर्देशों के खिलाफ महाराष्ट्र में अडॉप्शन एजेंसियों ने अदालत में चुनौती दी है। वहीं सीएआरए अधिकारियों का तर्क है कि गोद देने वाली एजेंसियों के पास अब भी कई मेजर रोल हैं जैसे पैरंट्स की काउंसलिंग करना और उन्हें कागज़ी कार्रवाई में मदद करना। 

महिलाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार व बच्चों की तस्करी से जुड़े मुद्दों पर काम कर चुके मुंबई के वकील फ्लाविया एग्नेस कहते हैं कि कई गोद देने वाली एजेंसियों ने बच्चों को बेचने का जैसे एक धंधा बना लिया है। ये अक्सर ज्यादा पैसे देने वाले पैरंट्स (अक्सर जो अभिभावक विदेश में रहते हैं) को ही बच्चे गोद देते हैं। वैसे हर कोई इस बात से सहमत नहीं रखता। एजेंसी प्रतिनिधियों का कहना है कि तस्वीरों के आधार पर, ऑनलाइन बच्चों का चयन करना “बच्चों की खरीददारी” की तरह ही है। 

नए दिशा-निर्देशों में यह अनिवार्य किया गया है कि एजेंसियों द्वारा गोद लेने की इच्छुक अभिभावकों के घर का अध्ययन किया जाए। यदि अभिभावकों द्वारा ऑनलाइन चुने बच्चे को एजेंसी देने से मना करती है तो उसके लिए मजबूत कारण दिए जाने भी जरूरी है। सरकार के लिए मुश्किल एजेंसियों का नाराज होना नहीं बल्कि लोगों की मानसिकता है जो कि अब भी गोद लेने को अंतिम उपाय मानते हैं। अधिकांश भारतीय की पहली प्राथमिकता अपने बच्चे पैदा करने की होती है। यदि वे गोद लेने की सोचते हैं तो नवजात शिशुओं को गोद लेना पसंद करते हैं। दिव्यांग बच्चों को गोद लेने के लिए अनदेखी की जाती है।

हां, ये अच्छी बात है कि दत्तक माता-पिता रंग-रूप के भेदभाव को त्याग चुके हैं लेकिन एजेंसियां इसमें भी आपत्ति करती हैं जैसे कि सिक्किम में एक पैरंट्स को इसलिए बच्चा देने से मना किया गया क्योंकि उनके चेहरे की फीचर्स बच्चे से मिलते-जुलते नहीं है। इस समय “कारा” के पास दो विशेष चुनौतियां हैं, गोद लेने को बढ़ावा देना और गोद लेने की प्रणाली में और अधिक बच्चों को लाना। गोद लिए गए बच्चों की गिनती 1600 से अधिक करना है, जैसा कि मेनका ने वादा किया है। इसे पूरा करने का एक तरीका है कि यह सुनिश्चित करना कि भारत के 341 जिला बाल सरंक्षण इकाइयाँ, लाइसेंस प्राप्त अडॉप्शन एजेंसियों को अनाथ या त्यागे हुए बच्चों को सौंपते समय संवेदनशील हों व ज्यादा से ज्यादा अडॉप्टेबल बच्चों की पहचान कर सके। सरकार को भी बच्चे गोद लेने के प्रक्रिया में नौकरशाही को कम करने की कोशिश करनी चाहिए।

(लेखि स्वतंत्र पत्रकार हैं। ये उनके अपने विचार हैं।)

 

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