ग्रामीण महिलाओं की आवाज़ बनी 'नारी अदालत'

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ग्रामीण महिलाओं की आवाज़ बनी नारी अदालतगाँव कनेक्शन, नारी अदालत

सीतापुर (पिसावां)। एक बड़े से मैदान में दरी पर बैठी पंद्रह ग्रामीण महिलाएं अलीपुर गाँव की विमला के साथ हो रही घरेलू हिंसा से निजात दिलाने की कोशिश में लगी हुई हैं। 

सीतापुर जिला मुख्यालय से लगभग 45 किलोमीटर दूर पिसावां ब्लॉक में हर महीने नारी अदालत लगती हैं, जिसमें दूर-दूराज क्षेत्रों की महिलाएं अपने साथ हो रही घरेलू हिंसा जैसे कई मुद्दों को इस अदालत में लेकर आती हैं। इस अदालत में 12 महिलाओं का समूह है जो हर महीने की 14 तारीख और 27 तारीख की सुबह 11 बजे से शाम 5 बजे तक नारी अदालत चलाती है। नारी अदालत की अध्यक्ष नीबू खली (35 वर्ष) बताती हैं, ''महिलाओं के साथ कोई भी हिंसा या गलत काम होता है तो वो हमारे पास ही आती है सीधे थाने नहीं जाती। हम उनको हक दिलाते हैं।" नीबू खली पिसावां ब्लॉक से चार किलोमीटर दूर अलीपुर गाँव की रहने वाली है। 

सामाजिक संगठन दिशा में कई वर्षों से काम कर रही ये महिलाएं औपचारिक न्याय व्यवस्था के विकल्प के रूप में नारी अदालत चलाती हैं इनमें मामलों को सामुदायिक स्तर पर बातचीत के ज़रिए सुलझाने की कोशिश की जाती है। जहां वादी अपनी बात रखता है और संघ की महिलाएं समस्या पर विचार कर दूसरे पक्ष को नोटिस जारी करती हैं। अगर वह नहीं आता तो उसके घर कुछ महिलाएं पहुंच कर बात करती हैं। मामला सुलझने पर फैसला स्टैम्प पेपर पर लिखा जाता है न सुलझने की स्थिति में कोर्ट की प्रक्रिया में भी यह हर क़दम पर वादी के साथ रहती हैं।

जिला कार्यक्रम समन्वयक नीरू मिश्रा बताती हैं, ''महिला समाख्या महिलाओं को सशक्त बनाने का एक अच्छा मंच है। इसके जरिए महिलाएं निकल रही है और अपने हक के लिए लड़ रही है। नारी अदालत समूह में बहुत सी ऐसी महिलाएं हैं जो घरेलू हिंसा का शिकार हुई हैं। आज वहीं महिलाएं दूसरी महिलाओं के साथ खड़ी है। इस अदालत में अभी जितनी महिलाएं है वो ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं है हम इन महिलाओं को कानूनी शिक्षा के बारे में जानकारी देते है ताकि अदालत में आए सभी केसों को वह अच्छी तरह समझ सके।"

नारी अदालत से जुड़ी मुडाखुर्द गाँव की सुषमा कुमारी (35 वर्ष) केवल पांचवी तक पढ़ी हुई हैं लेकिन अपनी अदालत में आने वाले सभी मुद्दों में कौन-सी धारा लगेगी और कितनी सजा का प्रावधान है यह सभी बातें वो पूर्णतया जानती है। सुषमा बताती हैं, ''अदालत चलाने से पहले हमको पूरी शिक्षा दी गई थी इन्ही लोग ने मुझे पढ़ाया है आज में दूसरी महिलाओं के साथ हो रही हिंसा के लिए खुद लड़ाई लड़ती हूँ।" महिला समाख्या के जरिए महिलाओं को सशक्त तो बनाया है साथ ही अपनी बातों को रखने के लिए आत्मविश्वास भी पैदा किया है। 

यह अदालत महिला समाख्या के अंतर्गत चलाई जाती है। महिला समाख्या मानव संसाधन विकास मंत्रालय से वित्त पोषित राष्ट्र स्तरीय कार्यक्रम है। कार्यक्रम का मूलभूत आधार है, महिला समानता के लिए शिक्षा। इस  कार्यक्रम में शिक्षा को ही सशक्तिकरण का माध्यम बनाया गया है। कार्यक्रम की शुरुआत 'राष्ट्रिय शिक्षा नीति 1986' के तहत वर्ष 1989 में तीन राज्यों उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात से की गयी। आज यह कार्यक्रम दस राज्यों (आंध्र प्रदेश,  असम, बिहार, छत्तीसगढ़, गुजरात, झारखंड, कर्नाटक, केरल, उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड) में संचालित है। यह कार्यक्रम उत्तर प्रदेश के तीन जिलों से प्रारंभ होकर होकर वर्तमान समय में 19 जिलों के 75 शैक्षिणक रुप से पिछड़े विकासखंडों के 5728 गाँवों में चल रहा है। कार्यक्रम के माध्यम से 5258 संघ (समूह) बने है, जिनमें से 115434 महिलाएं कार्यक्रम से सीधे जुड़ी है। उत्तर प्रदेश में कार्यक्रम का संचालन 'महिला समाख्या उत्तर प्रदेश' के माध्यम से किया जा रहा है।

 

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