गर्मियों में मज़े से खाएं इन मौसमी फलों को

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गर्मियों में मज़े से खाएं इन मौसमी फलों कोgaoconnection

भुमका और भगत कहलाने वाले आदिवासी जड़ी-बूटी जानकार पौधों के समस्त अंगों का उपयोग कर रोग निवारण करने का दावा करते हैं और इनके इस हुनर को एक हद तक विज्ञान भी सराहता है। जंगलों और ग्रामीण इलाकों में ऐसे कितने सारे पेड़ पौधें होते हैं जिनके खट्टे मीठे फलों को वनवासी अनेक हर्बल नुस्खों में इस्तेमाल करते हैं। चिम्मी लाल पातालकोट के एक पारंपरिक हर्बल जानकार हैं। इनके अनुसार हर मौसम के फलों का अपना अपना खास असर होता है और प्रकृति ने मौसमी फलों को मौसम से जुड़े सेहत विकारों के नाश के लिए धरती पर उगाया है। अब गर्मियों की बात करें तो हमें समझ पड़ती है कि किस तरह गर्मियों की चिलचिलाती धूप अक्सर तबीयत बिगाड़ देती है। प्रकृति ने हमारे लिए वन संपदा के नाम पर अनेक ऐसे उपाय दिये हैं जिनकी मदद से हम अपनी सेहत की देखभाल स्वयं कर सकते हैं। इस सप्ताह ऐसे ही कुछ खास फलों का जिक्र किया जा रहा है जिन्हें गर्मियों में खाकर हम अपनी स्वाद इंद्रियों को खुश करने के अलावा सेहत भी बेहतर बना सकते हैं।

कमरख

कमरख (एवेरोहा करम्बोला) का पेड़ उत्तर और मध्य भारत के वनों में अक्सर देखा जा सकता है। अंग्रेजी भाषा में इसे स्टार फ्रूट के नाम से जाना जाता है। स्वाद में इसके फल काफी खट्टे होते है हालांकि ज्यादा पक जाने पर इनमें थोड़ी मिठास भी आ जाती है। आदिवासियों के अनुसार इसका पका हुआ फल शक्तिवर्धक और ताजगी देने वाला होता है। गर्मियों में इस फल के सेवन से लू की मार नहीं पड़ती तथा यह ज्यादा गर्मी की वजह से होने वाले बुखार में भी लाभकारी होता है। अक्सर ग्रामीणजन इसके पके फलों का रस (पन्हा) तैयार कर दोपहर में पीते हैं, माना जाता है कि शरीर की आंतरिक तासीर को यह ठंडा बनाए रखता है और प्यास को बुझाता भी है। भोजन के दौरान कमरख के अधपके फलों की चटनी या अचार को भी खाया जाए तो गर्मियों में काफी फायदा करता है।

 जामुन

जंगलों, गाँव में सड़कों पर, खेतों के किनारे और उद्यानों में जामुन के पेड़ देखे जा सकते हैं। जामुन का वानस्पतिक नाम सायजायजियम क्युमिनी है। जामुन में लौह और फास्फोरस जैसे तत्व प्रचुरता से पाए जाते हैं, जामुन में कोलीन तथा फोलिक एसिड भी भरपूर होते हैं। भोजन के बाद १०० ग्राम जामुन फल का सेवन गर्मियों से जुड़े कई विकारों में बहुत फायदेमंद साबित होता है। जामुन के बीजों को छांव में सुखाकर तैयार किया गया चूर्ण प्रतिदिन सेवन करने से मधुमेह में काफी फायदा होता है। पातालकोट के आदिवासी मानते हैं कि यही चूर्ण 2-2 ग्राम मात्रा बच्चों को देने से बच्चे बिस्तर पर पेशाब करना बंद कर देते हैं। डाँग- गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार मानते हैं कि जामुन और आंवले के फलों का रस समान मात्रा में मिलाकर पीने से शरीर में हीमोग्लोबिन का स्तर बढ़ता है और जिन्हे रक्त-अल्पता होती है उन्हें काफी फायदा होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में ये मान्यता है कि जामुन का फल गर्भवती महिलाओं को देने से होने वाले बच्चे के होंठ सुन्दर होते हैं और चेहरा ओजवान होता है।

पपीता

पपीता न सिर्फ एक फल है बल्कि औषधीय गुणों का खजाना भी है। इस फल में पपैन, प्रोटीन, बीटा- केरोटीन, थायमिन, रीबोफ्लेविन और कई तरह के विटामिन्स पाए जाते हैं। गर्मियों के पके पपीते को खाना हितकर माना जाता है, इसके जूस को पीने से शरीर में ताजगी और स्फूर्ति बनी रहती है और चिलचिलाती गर्मी में भी यह शरीर के तापमान को नियंत्रित किए रहता है। फलों से निकलने वाले दूध को बच्चों को देने से पेट के कीड़े मर जाते है और बाहर निकल आते है। पपीते के फल को तोड़ने पर इसकी डंठल से निकले रस में दूध और मिश्री मिलाकर रात को पीने से अनिद्रारोग में फायदा होता है। पपीता पित्त नाशक, वीर्यवर्धक और एक उत्तम पाचक फल है। पातालकोट के आदिवासी भुमकाओं के अनुसार पपीते के बीजों को चबाने से आँखों की रोशनी बढ़ जाती है। कच्चे फलों से निकलने वाले दूध को बताशे के साथ लेने से दिल के रोगियों को फायदा होता है। डाँग- गुजरात के आदिवासी हर्बल जानकार जिन्हे भगत कहा जाता है, कच्चे पपीते को चीरा लगाकर उसका दूध एकत्र कर लेते है और इसे धूप में सुखाकर चूर्ण बनाते है। इनके अनुसार इस चूर्ण का प्रतिदिन सेवन उच्च रक्तचाप में लाभकारी होता है और माना जाता है कि इसी चूर्ण के सेवन से अस्थिरोग में भी आराम मिलता है। विरेचक होने की वजह से पपीते का सेवन गर्भवती महिलाओं के लिये वर्जित माना जाता है।

फालसा

फासला एक मध्यम आकार का पेड़ है जिस पर छोटी बेर के आकार के फल लगते हैं। फालसा मध्यभारत के वनों में प्रचुरता से पाया जाता है। फालसा का वानस्पतिक नाम ग्रेविया एशियाटिका है। इसके फल स्वाद में खट्टे-मीठे होते है। गर्मियों में इसके फलों का शर्बत ठंडक प्रदान करता है और लू और गर्मी के थपेड़ों से भी आराम दिलाता है। हृदय की कमजोरी की दशा में लगभग २० ग्राम फालसा के पके फल, ५ कालीमिर्च, चुटकी भर सेंधा नमक, थोड़ा सा नींबू रस लेकर अच्छी तरह से घोट लिया जाए और इसे एक कप पानी में मिलाकर कुछ दिनों तक नियमित रूप से पिया जाए तो हृदय की दुर्बलता, अत्यधिक धड़कन आदि विकार शान्त हो जाते हैं। डाँग- गुजरात के आदिवासी इसी मिश्रण को शरीर में वीर्य, बल वृद्धि के लिए उपयोग में लाते हैं। इन्ही आदिवासियों के अनुसार खून की कमी होने पर फालसा के पके फल खाना चाहिए, इससे खून बढ़ता है। अगर शरीर में त्वचा में जलन हो तो फालसे के फल या शर्बत को सुबह-शाम लेने से अतिशीघ्र आराम मिलता है। फालसा के पके फलों के सेवन से शरीर के दूषित मल को बाहर निकाल आता है।

 

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