हर जिले में सैनेटरी नैपकिन यूनिट हो

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हर जिले में सैनेटरी नैपकिन यूनिट हो

ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं आज भी माहवारी जैसे संवेदनशील मुद्दों पर न खुलकर बात करती हैं और न ही उस समय होने वाली समस्याओं के प्रति जागरूक हैं। ज्यादातर महिलाएं माहवारी में कपड़े का इस्तेमाल करती हैं क्योंकि सैनेटरी नैपकिन्स उन तक आसानी से उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। बाराबंकी जिला मुख्यालय से लगभग 20 किमी दूर कबीरपुर गाँव की शीला देवी (31) बताती हैं, ''हम शुरू से घर के पुराने कपड़े ही इस्तेमाल करते आए है। इसके अलावा यहां कहां जाए खरीदने। दुकानें तो हैं नहीं, ज्यादा और हम महिला होकर कैसे ये सब मांगें, दुकानवाला क्या सोचेगा।"

हर महिला बेझिझक खरीद सकेगी

ज्यादातर महिलाओं में ये हिचक आज भी है कि अगर दुकान पर तीन आदमी खड़े हैं या फिर दुकानदार आदमी है तो वो संकोच और शर्म से पैड नहीं खरीद सकती। गाँव कनेक्शन इस विषय पर सुझाव देता है कि अगर हर जिले में एक सैनेटरी नैपकिन बनाने की यूनिट लगाई जाए और उसकी मार्केटिंग का जिम्मा गाँव की आशा बहुओं को सौंपा जाए तो हर महिला आसानी से उससे नैपकीन्स खरीद सकती है। ये प्रयास अभी महोबा और बाराबंकी में जिले में चल रहा है इसे बढ़ावा देने की जरूरत है। 

बेहतर उपाय, बीमारियां खत्म होगी

जब आशा बहू के पास सैनेटरी नैपकीन उपलब्ध होगा तो कोई भी महिला इसे खरीदने में संकोच नहीं करेगी। उदाहरण के लिए शहरों में भी महिलाएं मेडिकल स्टोर की अपेक्षा ब्यूटी पार्लर से नैपकिन खरीदने में ज्यादा सहज होती हैं। स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ प्रज्ञा अग्रवाल बताती हैं, ''ये बेहतर उपाय होगा, मासिक धर्म के दौरान स्वच्छता की कमी कई बीमारियों को न्यौता देती है, जिससे आधी बीमारियां तो ऐसे ही कम हो जाएगी।

महिलाओं को मिलेगा रोजगार

'सुबह' संस्था के प्रबंधक मनीष मिश्रा बताते हैं, ''एक यूनिट स्थापित करने में कच्चा माल, एक निश्चित जगह और मशीन जोड़कर तीन लाख का खर्चा आएगा। इस तरह से अगर प्रदेश के हर जिले में इसकी स्थापना की जाए तो सिर्फ 2 करोड़ 75 हजार का खर्च आएगा। इसमें ग्रामीण महिलाओं को सस्ते दामों पर नैपकिन तो मिलेगा ही साथ ही उन्हें रोजगार के भी साधन भी मिलेंगे।"

दुनियाभर में सामाजिक मुद्दों पर सर्वे कराने वाली संस्था नीलसन के साल 2011 में भारत में किए गए एक अध्ययन के अनुसार 81 फीसदी ग्रामीण महिलाएं मासिक धर्म के दौरान कपड़े का प्रयोग करती हैं। इस अध्ययन से यह तथ्य भी निकलकर सामने आया कि देश में लगभग 68 फीसदी महिलाएं बाजार से सेनेटरी नैपकिन खरीदने के पैसा नहीं दे सकतीं हैं।

 

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