हरीश रावत ने स्टिंग की सीडी में अपनी मौजूदगी की बात मानी

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हरीश रावत ने स्टिंग की सीडी में अपनी मौजूदगी की बात मानीgaonconnection, हरीश रावत ने स्टिंग की सीडी में अपनी मौजूदगी की बात मानी

देहरादून (भाषा)। बागी विधायकों की कथित खरीद-फरोख्त में खुद की संलिप्तता दिखाने वाली स्टिंग सीडी को अब तक फर्जी और गलत बताने वाले उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत ने आज उसमें अपनी मौजूदगी को स्वीकार करते हुए कहा कि पत्रकार से मिलना कोई अपराध नहीं है।

रावत ने यहां एक कार्यक्रम में भाग लेने के बाद संवाददाताओं से एक बातचीत में कहा, 'क्या किसी पत्रकार से मिलना कोई अपराध है? क्या तब तक तकनीकी रुप से अयोग्य घोषित नहीं हुए विधायकों में से किसी ने भी मुझसे बातचीत की तो इससे क्या फर्क पडता है? राजनीति में क्या किसी चैनल को हम बंद कर सकते हैं?'

इस संबंध में अपने निर्दोष होने का दावा करते हुए पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि सीडी में से ऐसा कुछ भी प्रमाणित हो जाये कि उन्होंने असंतुष्ट विधायकों का समर्थन लेने के बदले में उन्हें नकद या किसी और प्रकार की पेशकश की तो वो जनता के सामने फांसी पर लटकने को तैयार है।

उन्होंने कहा, 'अगर मेरे खिलाफ ऐसा कोई प्रमाण मिलता है कि कि मैंने किसी को धन या किसी और चीज की पेशकश की तो मुझे घंटाघर पर लटका दीजिये। घंटाघर चौक देहरादून के बिल्कुल बीचोंबीच स्थित है।' हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्री रावत के इस बयान से ये स्पष्ट हो गया है कि उनके और स्टिंग सीडी बनाने वाले उस पत्रकार के बीच मुलाकात हुई थी। महत्वपूर्ण बात ये है कि रावत अब तक सीडी की सत्यता को ही चुनौती देते रहे थे और उन्होंने उसे फर्जी और गलत बताया था।

रावत ने कहा, 'मेरे लिये कोई क्यों 15 करोड़ रुपये खर्च करेगा। वो व्यक्ति पत्रकार मेरा समय निकालने के लिये कुछ अर्थहीन बातें कर रहा था और मैंने उसका समय गुजारने के लिये कुछ कहा। इससे क्या फर्क पड़ता है? हम रोजाना इस प्रकार की बातें कहते रहते हैं। क्या इसका मतलब है कि उनका प्रयोग हमारे खिलाफ किया जाये?' एक निजी चैनल के मुख्य संपादक द्वारा बनायी गयी और नौ बागी कांग्रेसी विधायकों द्वारा प्रसारित की गयी स्टिंग सीडी में कथित रूप से रावत को बागी विधायकों का समर्थन हासिल करने के लिये पत्रकार से सौदेबाजी करते दिखाया गया था। 18 मार्च को नौ कांग्रेसी विधायकों के बागी हो जाने और राज्य विधानसभा में भाजपा के साथ खड़े हो जाने के बाद प्रदेश में सियासी संकट पैदा हो गया था जिसके बाद सूबे में 27 मार्च को राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया।

 

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