चौका-बर्तन करके ही सही, स्कूल तो ज़रूर जाएंगे

"हम सुबह खेत जाते हैं काम करने। फिर अम्मा घर का सारा काम करवाती है और बोलती है कि स्कूल गई तो टांगें तोड़ दूंगी"

Jigyasa MishraJigyasa Mishra   30 Jun 2018 11:37 AM GMT

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चौका-बर्तन करके ही सही, स्कूल तो ज़रूर जाएंगे

सुबह के 9 बज चुके हैं और सीमा दौड़ती, हांफती हुई स्कूल पहुँचती है। दो दिन बाद आज वह स्कूल आई, पर सीमा को आज फ़िर देर हो गई। बच्चे प्रार्थना खत्म कर अपनी-अपनी कक्षा में पहुंच चुके हैं। सीमा सहमते हुए, धीरे से, कक्षा की ओर बढ़ ही रही थी की पीछे से संगम मैडम की आवाज़ आती है, "कहाँ थी अब तक?"

सीमा, अपर प्राथमिक विद्यालय, जगसर के नकहा ब्लॉक की कक्षा छठवीं में पढ़ने वाली छात्रा है। नकहा, उत्तर प्रदेश की राजधानी, लखनऊ से करीब 150 किलोमीटर दूर, लखीमपुर शहर से 30 मिनट की दूरी पर स्थित है।

सीमा को अक्सर देरी से आते देख आज जब संगम मैडम ने उस से देरी की वजह पूछी तो सीमा रोने लगी। बहुत समझाने और पूछने पर आखिरकार जवाब आया, "हम सुबह खेत जाते हैं काम करने। फिर अम्मा घर का सारा काम करवाती है और बोलती है कि स्कूल गई तो टांगें तोड़ दूंगी।"

सीमा को खुल कर सामने आते देख मनीषा, प्रियंका और अनुराधा ने भी साहस जुटाया और अपनी दिनचर्या मैडम जी को बताई तो विद्यालय की बालिकाओं की इस दिक्कत का पता चला। संगम वर्मा, जो की विद्यालय की सहायक अध्यापिका हैं, बताती हैं, "जब हमें पता चला कि चाहते हुए भी हमारी लड़कियां लगातार स्कूल नहीं आ पा रहीं हैं तो हमने उनके घरों में बात की। लड़कियों के माता-पिता को उनसे काम न करा कर विद्यालय भेजने के लिए मनाना काफ़ी मुश्किल होता है। फ़िर कुछ कोशिशों के बाद हमने बीच का रास्ता निकाला।"

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जब महिला शिक्षकों ने अभिभावकों से बात की तो उनके पक्ष की बात भी पूरी तरह नकारने लायक नहीं थी। अभिभावकों ने बताया वह सुबह ही काम पर निकल जाते हैं। कोई खेती करने तो कोई मौजदूरी पर। उन्होंने कहा, "ऐसे में अगर हमारी बेटियां खाना नहीं बनाएंगी तो सब खाएंगे कैसे? बिना पढ़ाये ज़िंदा रहा जा सकता है पर बिना खाये नहीं।"


पर लड़कियों की स्कूल आने की ललक को देखते हुए शिक्षकों ने लड़कियों को देर से ही सही, पर प्रतिदिन स्कूल आने की हिदायत दी। "हमने लड़कियों से कहा कि वह चाहे तो सुबह थोड़ी देर से भी पहुचें, पर हर रोज़ स्कूल ज़रूर आएं," संगम ने बताया।

इसी स्कूल में पढ़ने वाले शिवम्, राहुल और रोहित के संघर्ष का रूप दूसरा है। सातवीं कक्षा में पढ़ने वाले ये विद्यार्थी 6 किलोमीटर दूर अपने घरों से पैदल चलकर अपने विद्यालय जगसर तक आते हैं। शिवम् अपनी कक्षा में हमेशा उत्तीर्ण आने वाला छात्र है और यह 6 किलोमीटर की दूरी उसके लिए महज़ एक मौका है। "मुझे तो मज़ा आता है दूर से चल कर आने में। हम तीनों मिलकर जामुन और आम तोड़ लेते हैं और फिर स्कूल आकर अपने दोस्तों को भी बांटते हैं," रोहित ने बताया।

शिक्षा में तमाम चुनौतियों के बाद भी उत्तर प्रदेश के इस गाँव में बदलाव की किरणों ने भी फूटना शुरू कर दिया है।

अब सीमा भी सुबह जल्दी उठकर पहले घर का सारा काम निपटाती है और फिर अम्मा का चूल्हा-चौका निपटा कर, प्रार्थना के बाद ही सही, पर स्कूल ज़रूर पहुँच जाती है।

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