इन्हें जगह दीजिए स्कूलों की किताबों में, नौजवानों के आदर्श हैं

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इन्हें जगह दीजिए स्कूलों की किताबों में, नौजवानों के आदर्श हैंगाँव कनेक्शन

गाँव का सोलह साल का लड़का जो संस्कृत का छात्र था, आजादी का दीवाना बन गया और क्रान्तिवीरों के पोस्टर चिपकाया करता था। इसकी सजा मे उस नाबालिग को मजिस्ट्रेट के सामने कोड़े लगाए जाने की सजा मिली। हर कोड़े पर उसका उत्तर होता था वन्देमातरम, भारत माता की जय। जब उसका नाम पूछा गया तो बताया आजाद और पिता का नाम स्वतंत्र और पता जेलखाना। इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क में अपनी माउजर पिस्तौल से नाटबाबर नामक अंग्रेज पुलिस ऑफिसर का जबड़ा उड़ाने वाला यह वही बालक था जो बड़ा होकर चन्द्रशेखर आजाद के रूप में प्रत्येक भारतीय की जुबान पर था। अपने इरादों का पक्का यह भारत मां का सपूत जीवनभर, मरते दम तक आजाद रहा। 

बन सकता था भारत के भटके नौजवानों का आदर्श लेकिन आजकल सोलह साल के लड़कों को हमारी सरकार मजबूर होकर फांसी की सजा देने का बिल लाई है क्योंकि वे यौन शोषण और हत्या कर रहे हैं। आजादी के बाद हमारे समाज ने कैसी फसल पैदा की है जिसके सामने जीवन का कोई मकसद नहीं, कोई मंजिल नहीं, बस भटकाव ही भटकाव है। नौजवानों के सामने पेश किया गया उन लोगों को, जो भ्रष्टाचारी, स्वार्थी और परिवार को आगे पढ़ाने वाले वंशवादी राजनेता थे। राजनेताओं के योगदान को नकारा नहीं जा सकता परन्तु जो लोग एमएलए, एमपी, मिनिस्टर, या प्राइम मिनिस्टर बनने को अपनी मंजिल मानते हों उन्हें न तो त्यागी कहा जा सकता है और ना ही नौजवानों का आदर्श। तब नौजवानों का जीवनादर्श कौन हो?

पंजाब के एक खेत में एक लड़का जो आगे चलकर भगत सिंह बना, कुछ पौधे रोपता है, पूछने पर कहता है बन्दूकें उगा रहा हूं। उसका मन व्यथित था सैंडर्स द्वारा जलियांवाला बाग के नरसंहार के बाद। बड़ा होकर वह कानपुर में आजाद से मिलता है, उनकी पार्टी में शामिल होने के लिए, आजाद उसे कड़ी परीक्षा लेकर भर्ती करते हैं। दिन-रात जीवन का एक ही मकसद, भारत मां को आजाद कराना। भगत सिंह के साथी और सहयोगी थे बटुकेश्वर दत्त, सुखदेव और राजगुरु। दिल्ली की पार्लियापेन्ट में बम फेंक कर मानो अंग्रेजों के कान में पटाखा दाग दिया था। अंग्रेज तिलमिला उठा था, भगत सिंह को रात के अंधेरे में अंग्रेजों ने निर्धारित समय से एक दिन पहले फांसी दे दी थी। भारत के नौजवान पंडित नेहरू से तब थोड़ा प्रभावित हुए थे जब उन्होंने कहा था इंग्लैंड के साथ आगे किसी समझौते में भगत सिंह की लाश हमारे बीच होगी। बाद में वह सब भूल गए।

पुणे का एक नौजवान बैरिस्टर बनने के लिए पढ़ाई करने इंग्लैंड जाता है, वह लंदन के इंडिया हाउस में रहते हुए भारत की आजादी के लिए लिखता और प्रचार करता है। अंग्रेजों के घर में ही अंग्रेजों की नाक में दम कर देता है। उसे गिरफ्तार करके पानी के जहाज से भारत रवाना किया जाता है, वह अटलांटिक महासागर के अथाह पानी में कूद कर फ्रांस के तट पर पहुंचता हैं। सारे देश के नौजवानों का आदर्श बनता है, चाफेकर बन्धुओं जैसे लोगों की प्रेरणा का श्रोत बनता है। यह नौजवान था विनायक दामोदर सावरकर जिसे याद नहीं रखा गया। उन्हीं के साथ में आजादी की लड़ाई को अंग्रेजों के घर में ही जारी रखा मदन लाल धींगड़ा ने जिन्होंने विलियम कर्जन को भरी सभा में मारकर देशाभिमान का परिचय दिया, और श्याम जी कृष्ण वर्मा जिन्होंने इंग्लैंड में रहते हुए लड़ाई जारी रखी। इनके सामने एक लक्ष्य था, एक मंजिल थी। आज का नौजवान भटक क्यों गया।

हिन्दू-मुस्लिम एकता की बात जब आती है तो पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और अशफ़ाक़ुल्लाह खान का ध्यान आता है। दोनों ही आजादी के दीवाने थे और आपस में घनिष्ट मित्र भी। अंग्रेजों ने अशफ़ाक़ुल्लाह से जब कहा कि बिस्मिल तो हिन्दुओं की हुकूमत कायम करेंगे तो अशफ़ाक़ुल्लाह  का सपाट उत्तर था वह तुम्हारी हुकूमत से बेहतर होगी। ऐसे लोग जीवित होते तो भारत का बंटवारा ही नहीं होता। सरफरोशी की तमन्ना लेकर भारत की आजादी के लिए मर मिटने वाले इन नौजवानों के विषय में देश को क्यों नहीं बताया जाता। इनके दूसरे साथी सुखदेव, राजगुरु, राजेन्द्र लाहिड़ी, शचीन्द्र बक्शी और यतीन्द्र नाथ बोस जैसे लोगों के प्रेरणास्रोत थे मंगल पांडे, प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के महानायक और आज के नौजवान के सामने कोई आदर्श या जिन्दगी का कोई मकसद है? 

जब छोटी-छोटी सरकारी नौकरियों के लिए लोग लालायित रहते थे तब उड़ीसा के कटक में जन्मे सुभाष चन्द्र बोस ने उस जमाने की सबसे बड़ी आईसीएस की परीक्षा पास करके उसे ठुकरा दिया था। कांग्रेस में नौजवानों को संगठित करके उसे ऊर्जावान बनाया था। जब अंग्रेजों को चकमा देकर काबुल पहुंचे और बाद में रेडियो पर भारतवासियों को सम्बोधित किया तो भारतीयों की रगों में खून दौड़ गया था। हमारी आजादी ऐसे ही नौजवानों की देन है मगर इन्हें भारत रत्न देने में अंग्रेजों से डरे थे राजनेता। मैं यह तो नहीं जानता कि नेताजी का नाम युद्ध अपराधियों की सूची में है या नहीं परन्तु यह बहुत ही शर्म की बात है नेहरू की बुज़दिल सरकार ने नेताजी के परिवार की खुफियागीरी कराई। 

आज तक उन्हें भारत रत्न का सम्मान नहीं दिया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की यह परीक्षा होगी कि वह पिछली बुज़दिल सरकारों की तरह अंग्रेजों से डरकर नेताजी को नजरअन्दाज करेंगे या फिर सच्चे देशाभिमानी का परिचय देंगे और नेताजी को सम्मानित करेंगे। सच्चे अर्थों में युवाओं के आदर्श हो सकते है स्वामी विवेकानन्द जिनके काम और विचारों को यदि युवाओं के बीच प्रचारित और प्रसारित किया गया होता तो व्यक्ति निर्माण के माध्यम से राष्ट्र निर्माण का काम हो सकता था और हमारे नौजवान भटकने से बच जाते। दूसरा तरीका है नौजवानों को खेल और अनिवार्य सैनिक प्रशिक्षण देकर देशहित में लगाना। नौजवानों के पास काम नहीं है और खाली दिमाग शैतान का घर होता है। युवाओं को शैतान से बचाना होगा। आज नौजवानों को जीवन का मकसद और जीवन अादर्श देकर भटकने से बचाने की आवश्यकता है।  

 

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