इस्लामिक परिवार में जन्मे लोग इस्लाम को ही मिटा रहे

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इस्लामिक परिवार में जन्मे लोग इस्लाम को ही मिटा रहेगाँव कनेक्शन

सीरिया में बम धमाके हुए जिसमें लगभग 100 लोग मारे गए। इनकी जिम्मेदारी खूंखार आतंकवादी संगठन आइसिस ने ली है। जो मरे हैं वे पहले से ही इस्लाम को मानने वाले थे लेकिन बगदादी का आइसिस कहता है वह इस्लामिक स्टेट बनाएंगे। तो क्या पैगम्बर मुहम्मद साहब द्वारा बताए गए इस्लाम में कोई कमी है जो बगदादी अपना इस्लाम चलाएगा। दुनिया का कोई भी मुस्लिम देश बगदादी को यह बताने की जरूरत नहीं समझता कि इस्लाम का मतलब तो होता है शान्ति, तुम्हारा इस्लाम कैसा होगा?   

अमेरिका ने पहले पाकिस्तान में घुसकर ओसामा बिन लादेन को और अब मंसूर अज़हर को पाकिस्तानी जमीन पर मार गिराया है। पाकिस्तान ने इसे अपनी प्रभुस्त्ता का उल्लंघन बताया है। हजारों आतंकवादी अभी भी फल-फूल रहे हैं और दुनिया तब जान पाती है जब वे कमांडर बन जाते हैं। सवाल है कि ये आतंकवादी मध्य एशिया में ही क्यों पनप रहे हैं और उनका मंसूबा क्या है। उनके मां-बाप ने उन्हें मज़हबी तालीम दी होगी, अपने मजहबी संस्कार दिए होंगे, तब ये आतंकवादी कैसे बन गए। सच यह है कि आतंकवाद की जड़ में हिंसा है जो उन्होंने अपने ही समाज में सीखी है। 

अफगानिस्तान और बलूचिस्तान के इलाके में रहने वाले लोग शताब्दियों से इस्लाम को मानते रहे हैं। अब तालिबानी लोग उन पर इस्लाम लागू करने की बात कहते हैं। अफगानिस्तान में हामिद करजई की मदद कोई इस्लामिक देश नहीं करने आया। यह सच है कि तालिबान को अमेरिका ने बढ़ावा दिया था और मौका मिलने पर रूस ने भी लेकिन इस्लामिक देश एकजुट होकर तालिबान और बगदादी से क्यों नहीं पूछते कि हज़रत मुहम्मद साहब के बताए इस्लाम में क्या कमी है जो अपना इस्लाम लाना चाहते हो। 

लीबिया, अफगानिस्तान, मिस्र, ईराक, सीरिया, टर्की, लेबनान और पाकिस्तान में इस्लाम के मानने वालों में आपस में लड़ाइयां और खूनखराबा हो रहा है। ईराक में शिया मुसलमानों के तमाम पवित्र स्थान हैं जिन पर आइसिस द्वारा हमले हो रहे हैं। तोपखाने के बल पर लड़ रहे ये लोग ईराक और सीरिया को मिलाकर एक इस्लामिक देश बनाना चाहते हैं। तो क्या ईराक और सीरिया पहले से ही इस्लामिक नहीं हैं? बड़ी संख्या में मुसलमानों के हाथों मुसलमानों का कत्ले आम हो रहा है। लगता है शिया मुसलमानों का इस्लाम खतरे में है। कोई भी आवाज नहीं उठाता। 

क्या शिया और सुन्नी मुसलमानों का इस्लाम अलग-अलग है ? दोनों ही अमन और भाईचारा पसन्द मज़हब से ताल्लुक रखते हैं और अल्लाह के कानून को मानने वाले हैं। उनका खुदा एक ही है और दोनों ही कुरान शरीफ़ और पैगम्बर मुहम्मद साहब को मानते हैं। तब तो यही कहा जाएगा कि मजहब शान्ति का है मगर उसके मानने वाले शान्ति से नहीं रहते।  

भारत में दुनिया की सबसे पहली मस्जिद ‘‘चेरामल जुमा मस्जिद” जो सऊदी अरब के बाहर बनी, वह केरल के मलाबार क्षेत्र में गैर मुस्लिमों ने बनवाई थी। कहते है इसके लिए एक बौद्ध मठ दान दिया गया था। आज भी चेरामल मस्जिद में जो दीप जलता है उसके लिए तेल सभी धर्मों के लोग लाते हैं। जिस देश की ऐसी परम्परा हो उसके बंटवारे की बात कैसे आ गई थी मुसलमानों के मन में। जो भी हो भारत में मुस्लिम समाज को शिकायत नहीं होनी चाहिए, यह दारुल इस्लाम न सही लेकिन मौलाना आजाद के शब्दों में दारुल अमन है और यही रहना चाहिए। 

 

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