ज़मीन के अंदर तैयार सेहत का खज़ाना

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ज़मीन के अंदर तैयार सेहत का खज़ानाgaoconnection

चाहे अदरक हो या प्याज, लहसुन हो या सूरनकंद इन सभी पौधों के जमीन के भीतर उगने वाला अंग सर्वाधिक औषधीय गुणों वाला होता है। आदिवासी हर्बल जानकारों की मानी जाए तो जमीन के भीतर पनपने वाले पादप अंग खाद्य पदार्थों को संचित रखते हैं और इन अंगों में मानव शरीर को ताकत देने की जबरदस्त क्षमता तो होती ही है इसके अलावा इनमें कई महत्वपूर्ण औषधीय गुण भी पाए जाते हैं। चलिए इस बार पाठकों को ऐसे ही कुछ चिर परिचित औषधियों से परिचित करवाता हूं, जो आदिवासियों के प्रचलित हर्बल ज्ञान का अभिन्न हिस्सा हैं। 

अदरक

सभी प्रकार के जोड़ों की समस्याओं में रात्रि में सोते समय लगभग ४ ग्राम सूखा अदरक,जिसे सोंठ कहा जाता है, नियमित लेना चाहिए। स्लिपडिस्क या लम्बेगो में इसकी इतनी ही मात्रा चूर्ण रूप में शहद के साथ ली जानी चाहिए। दो चम्मच कच्ची सौंफ और ५ ग्राम अदरक एक ग्लास पानी में डालकर उसे इतना उबालें कि एक चौथाई पानी बच जाए। एक दिन में ४ बार लेने से पतला दस्त ठीक हो जाता है। गैस और कब्जियत में भी अदरक काफी लाभदायक होताहै। 

अरबी

अरबी का कंद, शक्ति और वीर्यवर्धक होता है, यह शरीर को मजबूत बनाती हैं। आदिवासी हर्बल जानकारों की मानी जाए तो अरबी के कंदों की सब्जी का सेवन प्रतिदिन करने से हृदय मजबूत होता है। अरबी के कंदों को उबालकर बारीक बारीक चिप्स की तरह काटकर रोस्ट करके या तेल में तलकर खाने से पेट के कीड़े शौच के साथ बाहर निकल आते हैं। 

गाजर

गाजर में प्रोटीन, कार्बोहाईड्रेट, चर्बी, फास्फोरस, स्टार्च तथा कैल्शियम के अलावा केरोटीन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। गाजर के सेवन से शरीर मुलायम और सुन्दर बना रहता है तथा शरीर में शक्ति का संचार होता है और वजन भी बढ़ता है। बच्चों को गाजर का रस पिलाने से उनके दांत आसानी से निकलते हैं और दूध भी ठीक से पच जाता है। 

हल्दी

हल्दी में उड़नशील तेल, प्रोटीन, खनिज पदार्थ, कारबोहाईड्रेट और कुर्कुमिन नामक एक महत्वपूर्ण रसायन के अलावा विटामिन A भी पाए जाता है। हल्दी मोटापा घटाने में सहायक होती है। हल्दी में मौजूद कुर्कुमिन शरीर में जल्दी घुल जाता है। यह शरीर में वसा वाले ऊतकों के निर्माण को रोकता है। पारंपरिक हर्बल जानकारों की मानी जाए तो यह शरीर के किसी भी अंग में होने वाले दर्द को आसानी से कम कर देती है। यदि दर्द जोड़ों का हो तो हल्दी चूर्ण का पेस्ट बनाकर लेप करना चाहिए। आधुनिक शोधों से पता चलता है कि हल्दी एल डी एल कोलेस्ट्रॉल को कम करती है जिससे हृदय संबंधी रोग होने का खतरा कम हो सकता है। 

जंगली प्याज

जंगली प्याज के कंद साधारण प्याज की तरह ही दिखाई देते हैं। जिन्हें पेशाब के साथ वीर्य जाने की शिकायत हो, उन्हें कम से कम एक कंद प्रतिदिन कुल १५ दिनों तक चबाने से फायदा होता है। जंगली प्याज के कंदों को कुचलकर रस प्राप्त कर लिया जाए और तालुओं पर लगाएं तो जलन की समस्या का निवारण हो जाता है। 

दारू हल्दी

दारू हल्दी के गुण भी हल्दी के समान ही होते हैं और विशेषत: इस उपयोग घावों, प्रमेह, खुजली, और रक्तविकार आदि में होता है। यह एक जबरदस्त एंटीसेप्टिक पौधा है यही कारण है कि इसका प्रयोग आंतरिक एवं बाहरी दोनों तरह के संक्रमण के ठीक करने के लिए किया जाता है। 

प्याज

प्याज में ग्लुटामिन, अर्जीनाइन, सिस्टन, सेपोनिन और शर्करा पाई जाती है। प्याज के बीजों को सिरका में पीसकर लगाने से दाद-खाज और खुजली में अतिशीघ्र आराम मिलता है। प्याज के रस को सरसों के तेल में मिलाकर जोड़ों पर मालिश करने से आमवात, जोड़ दर्द में आराम मिलता है। प्याज के रस और नमक का मिश्रण मसूड़ो की सूजन और दांत दर्द को कम करता है। 

लहसुन

आदिवासी अंचलों में इसे वात और हृदयरोग के लिए अत्यंत उपयोगी माना जाता है। जिन्हें जोड़ो का दर्द, आमवात जैसी शिकायतें हो, लहसुन की कच्ची कलियां चबाना उनके लिए बेहद फायदेमंद होता है। बच्चों को यदि पेट में कृमि (कीड़े) की शिकायत हो तो लहसुन की कच्ची कलियों का २0  बूंद रस एक गिलास दूध में मिलाकर देने से कृमि मर कर शौच के साथ बाहर निकल आते हैं। सरसों के तेल में लहसुन की कलियों को पीसकर उबाला जाए और घावों पर लेप किया जाए, घाव तुरंत ठीक होना शुरू हो जाते हैं। 

विदारीकंद

विदारीकंद के फल सुराल के नाम से प्रचलित हैं और इस पौधे को पातालकुम्हड़ा के नाम से भी जाना जाता है। इसके कन्द में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। विदारीकंद के कंद की २० ग्राम मात्रा लेकर चूर्ण बना लिया जाए और प्रतिदिन ५ ग्राम की फांकी सुबह-शाम पानी के साथ ली जाए तो यकृत (लीवर) की अनियंत्रित वृद्धि पर रोक लगाई जा सकती है। लगभग एक पाव दूध में विदारीकंद के कंद का रस १० ग्राम मिलाकर तथा उबाल लिया जाए और सेवन किया जाए तो भूख मिटने लगती है। पातालकोट के आदिवासियों का मानना है कि इसके लगातार सेवन करने से मोटापा दूर होता है। 

शतावरी

इसकी जड़ों मे सेपोनिन्स और डायोसजेनिन जैसे महत्वपूर्ण रसायन पाए जाते है। पेशाब के साथ खून आने की शिकायत हो तो, शतावरी की जड़ों का एक चम्मच चूर्ण, एक कप दूध में डालकर उबाला जाए और शक्कर मिलाकर दिन में तीन बार सेवन किया जाए तो तुरंत आराम मिलना शुरू हो जाता है। प्रसूता माता को यदि दूध नहीं आ रहा हो या कम आता हो तो शतावरी की जड़ों के चूर्ण का सेवन दिन में कम से कम ४ बार अवश्य करना चाहिए। 

सूरनकंद

इसे प्रचलित भाषा में सूरन या जिमीकंद कहते हैं। सूरनकंद में मुख्य रूप से प्रोटीन, वसा, कार्बोहाईड्रेड्स, क्षार, कैल्शियम, फॉस्फोरस, लौह तत्व और विटामिन A व B पाए जाते हैं। इसका अधिकतर उपयोग बवासीर, स्वास रोग, खांसी आदि में किया जाता है। आदिवासी इस कंद को काटकर नमक के पानी में धोते हैं और बवासीर के रोगी को इसे कच्चा चबाने की सलाह देते है |

 

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