जब क्लास में आईं 40 वर्ष की छात्राएं

Swati ShuklaSwati Shukla   6 Jan 2016 5:30 AM GMT

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जब क्लास में आईं 40 वर्ष की छात्राएंगाँव कनेक्शन

बाराबंकी। हौसले बुलन्द हों रोकने वाला कोई नहीं होता। उम्र भले छोटी हो लेकिन जज्बा कुछ बड़ा करने का था। पूजा ने न केवल अपनी मेहनत से स्वयं को आत्मनिर्भर बनाया बल्कि गाँव की बहुत सी महिलाओं को रोजगार भी दिलाया।

सीतापुर के मीरानगर कस्बे के पास स्थित गाँव रामपुर मयूरा में रहने वाली पूजा वर्मा (25 वर्ष) ने समाज से जुड़ी सारी समस्याओं का मजबूती से सामना किया। पूजा ने बेनीपुर के इंटर कालेज से शिक्षा प्राप्त की। उसके बाद आईटीआई से फैशन टेक्नोलॉजी का कोर्स किया। पढ़ाई पूरी करने बाद पूजा ने स्वयं सहायता समूह खोलकर महिलाओं को प्रशिक्षण देना प्रारंभ कर दिया। इस बीच पूजा के पिता की मृत्यू हो गई। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, ऊपर से पूजा अपने भाई और बहनों में सबसे बड़ी थी इसलिए परिवार की सारी जिम्मेदारी पूजा पर थी।

पूजा की प्रशिक्षण संस्था से 240 महिलाओं ने प्रशिक्षण प्राप्त किया, जिसमें से 35 महिलाओं को उसने अपने यहां रोजगार भी दिया, जिन महिलाओं को रोजगार में रखा गया है, वो सिलाई, कढ़ाई, अचार बनाने के साथ मोमबत्तियां और अगरबत्तियां भी बनाती हैं और शहर में बेचने के लिए भेजती हैं। अपने इस रोजगार से ये महिलाएं महीनेभर में 10 से 12 हजार रुपए कमा लेतीं हैं। 

पूजा की संस्था में काम करने वाली सीतापुर के रामपुर के मयूरा गाँव की रहने वाली सुमन वर्मा (55) वर्ष बताती हैं, ''हम लखनऊ, बनारस और मिर्जापुर में अब महिलाओं को प्रशिक्षण देते हैं। एक जगह के प्रशिक्षण से 5000 रुपए कमा लेते हैं। मैंने अभी योग भी सीखा है, वो भी गाँव की महिलाओं को सिखाते हैं। मेरे दो बच्चे हैं, जो मीरानगर के प्राइवेट स्कूल में पढ़ते हैं, जिनकी पढ़ाई का खर्च इस काम से ही निकल आता है।’’

''महिलाओं को रोजगार की जरूरत है और हमें काम की, इसलिए 20 सरकारी स्कूल से बच्चों की ड्रेस को बनाने का ठेका लेते हैं,  जिससे मतलबभर की आमदनी हो जाती है।’’ पूजा बताती हैं।

इसी तरह सिल्खामऊ की निवासी राजकुमारी (40 वर्ष) भी इस संस्था से जुड़ी हैं। प्रशिक्षण प्राप्त कर सिलाई का काम शुरू किया है। इसी काम से प्राप्त आमदनी से अपनी चारों बेटियों को पढ़ाने की जिम्मेदारी भी उठाई है। लड़कियों के लिए वर ढूंढ़ रही हैं।

वो बताती हैं, ''मेरे पति मजदूर हैं, जिसकी वजह से हमारी आमदनी कम थी। उतने पैसों में बच्चों को खिलाना और पढ़ा पाना मुश्किल हो रहा था, जबसे मैंने काम करना शुरू कर दिया है तबसे घर की दिक्कतें कम हो गयी हैं।’’

पूजा सिलाई, कढ़ाई के साथ अन्य कामों का उपयोगी सामान वह लखनऊ से मंगाती हैं, जो यहां कि तुलना में सस्ता पड़ता है और काम पूरा करने के बाद बेचने पर ठीकठाक मुनाफा मिल जाता है। 

सुमन और राजकुमारी के साथ इलाके की ढेर सारी महिलाओं ने पूजा को आदर्श मानकर खुद का काम शुरू किया, जिसमें वो कामयाब भी रहीं। इस कामयाबी में उनकी मेहनत और विश्वास का अतुलनीय योगदान रहा है।  

पूजा के इस प्रयास ने सैकड़ों महिलाओं को रोजगार दिलाया और उनकी कामयाबी की नींव तैयार की। अपनी जिम्मेदारी में त्याग का परिचय देते हुए पूजा ने अपनी छोटी बहन की शादी अपने से पहले कर दी, साथ में अपने संरक्षण में अपने दोनों भाइयों की पढ़ाई के साथ दैनिक खर्चों की जिम्मेदारी भी वही उठाती हैं।

 

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