लाखों महिलाओं के लिए उदाहरण है डॉ. दीदी की कहानी, झारखंड दिवस पर मिला सम्मान

Neetu SinghNeetu Singh   15 Nov 2018 9:03 AM GMT

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बलमदीना तिर्की जिन्हें झारखंड के ग्रामीण इलाकों में डॉक्टर दीदी कहा जाता है। जानिए क्या है उनकी कहानी।बलमदीना तिर्की जिन्हें झारखंड के ग्रामीण इलाकों में डॉक्टर दीदी कहा जाता है। जानिए क्या है उनकी कहानी।

रांची (झारखंड)। झारखंड के 18वें स्थापना दिवस पर पांचवीं पास डॉ. दीदी बलमदीना तिर्की को 'झारखंड सम्मान 2018' से सम्मानित किया गया। इनकी सफलता की कहानी लाखों महिलाओं के लिए उदाहरण है।

'झारखंड सम्मान 2018' से राज्य के उन दस रत्नों को सम्मानित किया गया जो जिन्होंने देशदुनिया में प्रदेश का नाम रौशन किया हो। बलमदीना उनमे से एक हैं। झारखंड के 18वें स्थापना दिवस 15 नवम्बर को मोराबादी मैदान में आयोजित समारोह बलमदीना तिर्की को एक लाख रुपए, आदिवासियों के भगवान कहे जाने वाले बिरसा मुंडा की प्रतिमूर्ति और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया। बलमदीना के कामयाबी की कहानी इतनी आसान नहीं थी। इनका संघर्ष लाखों महिलाओं को कुछ करने का हौसला देता है।


बलमदीना तिर्की (30 वर्ष) आत्मविश्वास के साथ बताती हैं, "अब जहाँ से भी निकलते हैं सब डॉ दीदी बुलाते हैं। महीने में जितना कमाते हैं आज उन्ही पैसों से अपने दोनों बच्चों को कॉन्वेंट स्कूल में पढ़ा रहे हैं। पैसा और पहचान स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद मिली।" गरीबी में पली बढ़ी बलमदीना ने पांचवीं तक पढ़ाई की है। बताती हैं, "हम पांचवी पढ़कर नौकरी कर सकते हैं इस बार में कभी ख्याल ही नहीं आया। लेकिन ट्रेनिंग के बाद जब पशु सखी बन गये तो सब डॉ दीदी कहने लगे।"

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जहाँ एक तरफ बलमदीना जब अपनी सफलता की कहानी बताती हैं तो इनका आत्मविश्वास और हौसला दूसरी महिलाओं को कुछ करने की हिम्मत देता है वहीं दूसरी तरफ अपने बीते दिनों को याद कर वो आज भी भावुक हो जाती हैं। बलमदीना तीन बहन एक भाई मिलाकर परिवार में कुल छह सदस्य थे। जिनका खर्चा इनके पिता मजदूरी और किसानी करके पूरा करते थे। बलमदीना बताती हैं, "कभी-कभी ऐसा होता था कि शाम को खाना बनेगा या नहीं ये किसी को पता नहीं होता था। कई बार दिन में एक बार ही खाना बनता था।"


गरीबी की वजह से बलमदीना पढ़ाई नहीं कर पायीं। इनकी शादी जिस परिवार में हुई उनकी भी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। बलमदीना के पति ड्राइवर हैं उन्हें महीने 5,000 रुपए मिलते हैं। इतने पैसों से परिवार का खर्चा चलना बहुत मुश्किल हो रहा था। स्वयं सहायता समूह में जुड़ने के बाद इन्होंने न केवल बचत की बल्कि आजीविका पशु सखी का हुनर सीखकर अपनी आजीविका का साधन भी खोज निकाला। बलमदीना हर महीने 5000-7000 रुपए कमा लेती हैं।

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रांची से लगभग 45 किलोमीटर दूर अनगड़ा ब्लॉक के गेतलसूद गाँव की रहने वाली बलमदीना वर्ष 2012 में जूही स्वयं सहायता समूह से जुड़ी। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के सहयोग से वर्ष 2013 में इन्हें पशु सखी का प्रशिक्षण दिया गया। ये अपनी पंचायत के सभी गाँव में जाकर सस्ती दरों में बकरियों का टीकाकरण और डीवार्मिंग करवाती हैं। बलमदीना हर बकरी पालक के पास हरा चारा स्टेंड, पानी स्टेंड, दाना स्टेंड और इनके रहने का बाड़ा भी बनवाती हैं।

बलमदीना की तरह झारखंड में स्वयं सहायता समूह से जुड़ी 4,000 से ज्यादा महिलाओं को प्रशिक्षित कर पशु सखी बनाया गया है। ये पशु सखियाँ बिहार की महिलाओं को पशु सखी का हुनर सिखा रहीं हैं। झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के सहयोग से झारखंड में 58,000 से ज्यादा किसानों ने बकरी पालन शुरू किया है। बकरियों की देखरेख के लिए पशु सखी पशु पालकों के घर–घर जाकर उनकी देखरेख करती हैं। बलमदीना बकरियों का इलाज करते-करते अब मुर्गी, सूकर, बैल और भैंस का भी प्राथमिक उपचार करने लगी हैं। आज बलमदीना के पास स्कूटी भी है जिससे इन्हें आसपास के गाँव में आने-जाने में असुविधा नहीं होती है।

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आजीविका मिशन की कोशिश है कि झारखंड की महिलाएं आर्थिक रूप से सशक्त हों और गाँव में रहकर ही उन्हें आमदनी का जरिया मिले। इस दिशा में महिलाओं को आजीविका मिशन के सहयोग से समय-समय पर कई तरह के प्रशिक्षण दिए जाते हैं जिसमें पशु सखी एक है।

बलमदीना केवल पशु सखी ही नहीं हैं बल्कि ये अपने जैसी सैकड़ों महिलाओं को अब तक समूह में जुड़ने और बचत करने का हुनर सिखा चुकी हैं। ये कई प्रखंड और जिला स्तरीय सीआरपी ड्राइव में जाती हैं जहाँ इन्हें दिन के हिसाब से 450 रुपए मिलता है। बलमदीना सीआरपी ड्राइव का अनुभव साझा करते हुए बताती हैं, "एक समय ऐसा था जब हमें पेटभर खाना के लिए सोचना पड़ता था। गरीबी को देखा है जिया है इसलिए दूसरे गाँव की दीदियों को अपनी कहानी बताते हैं और उन्हें अपने पैरों पर खड़े होने की सलाह देते हैं।"

    

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