झारखंड राज्य के लाखों किसान केज कल्चर तकनीक से हर साल कमा रहे मुनाफा
एक केज में 15 हजार बच्चे छोड़े जाते है जिन पर सालाना खर्च चार से पांच लाख रुपए करना पड़ता है और जब ये एक से डेढ़ किलो के हो जाते है तब इनको बेचते है। डेढ़ साल में 8-10 लाख की बिक्री होती है।
Arvind Shukla 5 July 2018 1:18 PM GMT

रामगढ़ (झारखंड)। देश के झारखंड राज्य ने केज कल्चर तकनीक को एक नई पहचान दी है। इस तकनीक से राज्य के लाखों मछली पालकों की आय जुड़ी हुई है। इस तकनीक को भारत सरकार द्वारा चलाई जा रही नीली क्रांति योजना के तहत पूरे भारत में भी जल्दी शुरू किया जाना है।
रामगढ़ जिला मुख्यालय से लगभग 40 किलोमीटर दूर पतरातू डैम में सरकार की तरफ से 100 केज लगे हुए हैं। इनकी मदद के लिए सरकार द्ववारा समिति भी बनाई गई है जिनको मत्स्य मित्र नाम दिया गया है। पतरातू डैम मत्स्य समिति के अध्यक्ष संजय कुमार ने गाँव कनेक्शन को बताया, "हमारी समिति में 40 मछली पालक है। इस तकनीक में सरकार मदद करती है। केज में समिति का 30 प्रतिशत और सरकार का 70 प्रतिशत होता हिस्सा होता है। इसके अलावा 50 प्रतिशत दाना समिति और 50 प्रतिशत दाना सरकार देती है।"
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एक केज से मुनाफे के बारे में संजय बताते हैं, "एक केज में 15 हजार बच्चे छोड़े जाते है जिन पर सालाना खर्च चार से पांच लाख रुपए करना पड़ता है और जब ये एक से डेढ़ किलो के हो जाते है तब इनको बेचते है। डेढ़ साल में 8-10 लाख की बिक्री होती है। पंगास, रोहू , कतला जैसे कई मछलियों को हम पालते है।"
केज कल्चर यानि पिंजरे में मछली पालन। डैम और जलाशयों में निर्धारित जगह पर फ्लोटिंग ब्लॉक बनाए जाते हैं। सभी ब्लॉक इंटरलॉकिंग रहते हैं। ब्लॉकों में 6 गुना 4 के जाल लगते हैं। जालों में 100-100 ग्राम वजन की पंगेशियस मछलियां पालने के लिए छोड़ी जाती हैं। मछलियों को प्रतिदिन आहार दिया जाता है। फ्लोटिंग ब्लॉक का लगभग तीन मीटर हिस्सा पानी में डूबा रहता है और एक मीटर ऊपर तैरते हुए दिखाई देता है।
देश के डेढ़ करोड़ लोग अपनी आजीविका के लिए मछली पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। सभी प्रकार के मछली पालन (कैप्चर एवं कल्चर) के उत्पादन को साथ मिलाकर 2016-17 में देश में कुल मछली उत्पादन 11.41 मिलियन तक पहुंच गया है। इस तकनीक को पूरे देश में लागू करने से वर्ष 2022 तक मछली उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है।
झारखंड में केज कल्चर से मछली उत्पादन को राष्ट्रीय पहचान मिल रही है। मत्स्य विभाग, झारखंड के निदेशक रवि शंकर बताते हैं, "प्रति केज चार से पांच टन मछली उत्पादन किया जा रहा है। इसके लिए कई प्रदेश में कई तरह की योजनाएं भी चल रही है। साथ ही किसानों को प्रशिक्षण भी दिया जाता है। प्रदेश के करीब नौ हजार को किसानों को प्रशिक्षण भी दिया गया है। अभी तिलैया डैम, चांडिल डैम, कोनार, मसानजोर, सुंदर जलाशय अजय बराज सहित कई जलाशयों में कुल 2800 केज कल्चर मौजूद हैं। यहां कतला, रोहू सहित अन्य मछलियों का उत्पादन होता है।
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