जिस्मफ़रोशी और तस्करी से निकाल कर दिया ‘मां’ का प्यार

Shefali SrivastavaShefali Srivastava   28 July 2016 5:30 AM GMT

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लखनऊ। हर बच्चे के लिए अपनी मां खास होती हैं। लखनऊ की विनीता ग्रेवाल कुछ ऐसी बच्चियों की मां हैं जिन्हें उन्होंने अपनी कोख से जन्म तो नहीं दिया लेकिन वे उनके लिए ‘नई ज़िंदगी’ देने वाली जन्मदाता की तरह ही हैं। पांच साल पहले पत्रकारिता छोड़कर विनीता ने ‘नई आशा’ नाम से शेल्टर होम की स्थापना की।

यह उन बच्चियों के लिए एक घर है जिन्हें समाज ने हाशिये में रखा है। इनमें कुछ बलात्कार पीड़िता हैं, तो कुछ बाल तस्करीकरण से छुड़ाई गई‍। जिन्हें जिस्मफरोशी के काले धंधे में धकेल दिया गया था। अब ये बच्चियां अपने पुराने जीवन को अलविदा कह चुकी हैं और कढ़ाई-बुनाई, सिलाई और क्राफ्ट सीखकर आने वाले कल को संवार रही हैं।                              

दिव्या सिंह (बदला हुआ नाम) कुछ माह पहले मड़ियाव में चल रहे एक सेक्स रैकेट से छुड़ाई गई थी। तब दिव्या (15 वर्ष) बहुत छोटी थी जब उसके इलाके में एक अधेड़ व्यक्ति उसका पीछा करने लगा था। उसने कई बार दिव्या के साथ बदतमीजी भी की।

इसकी शिकायत जब दिव्या ने घर पर की तो किसी तरह मामले को रफा-दफा किया गया। दिव्या की एक बड़ी बहन भी थी जिसके पति ने दिव्या को इस घटना के बाद जिस्मफरोशी के धंधे में शामिल करा दिया। 

विनीता बताती हैं, “जब दिव्या को हमने रेस्क्यू किया था तो रोजाना करीब आठ से दस अलग-अलग मर्द उसकी मासूमियत का कत्ल करते थे। उस फूल जैसी बच्ची को अपनी घिनौनी मंशाओं तले कुचलते थे। उन्होंने दिव्या की ज़िंदगी नर्क बना दी थी।

उसकी मासूमियत के साथ उसके सपनों का भी दम घुट गया था।” दिव्या को छुड़ाकर जब वापस उसके घर भेजा गया तो घरवालों ने अपनाने से इंकार कर दिया। ऐसे  में टूटी हारी दिव्या तब से शेल्टर होम को ही अपना घर मानती है और विनीता को अपनी मां। दिव्या को धंधे में धकेलने वाले जीजा और दिव्या की बहन को जेल की सजा हुई थी।  

तेजी से बढ़ रही है मानव तस्करी

शेल्टर होम के डायरेक्टर आशीष श्रीवास्तव भी विनीता के इस मुहिम में उनके साथ हैं। आशीष ने बताया कि लखनऊ के कई इलाकों में मानव तस्करीकरण के बहुत से ठेके हैं। कई पार्लरों में इन गतिविधियों का पता चला है। मासूमों को पढ़ने-लिखने की उम्र में जिस्मफरोशी में ढकेला जा रहा है।

आशीष कहते हैं अपनी टीम के साथ वह पुलिस की मदद से लगभग एक दर्जन ऐसे ठिकानों में छापा मार चुके हैं जहां सेक्स रैकेट चल रहे थे। बकौल आशीष, रेड मारते समय काफी सावधानी रखनी पड़ती है। कई बार हाथापाई की नौबत तक आ जाती है।  

पुनर्वास करने में तीन माह का लगता है वक्त

विनीता बताती हैं जब मैं अपने पेशे में थी तो आए दिन ऐसे केस सुनने को मिलते थे। कभी अपराधी को सजा मिल जाती थी तो कभी नहीं। ऐसे में इन लड़कियों का क्या होता था। उनके परिवार वाले भी उन्हें वापस ले जाने से मना कर देते थे। इन बच्चियों का सामाजिक तौर पर पतन हो चुका होता है। तब जाकर मैंने सोचा कि इनको मैं आत्मनिर्भर बनाऊंगी ताकि उनका जीवन सकारात्मक बने और वह आगे का जीवन साधारण होकर जी सकें।

शुरुआत में इनकी काउंसलिंग करने में काफी दिक्कत आई क्योंकि इनके चेहरे पर एक सवाल होता था कि यहां सब इतने अच्छे क्यों है? क्यों इतनी अच्छे से बात कर रहे हैं। इनके जीवन में इतना कुछ हो चुका होता है कि किसी पर यकीन नहीं करना मुश्किल होता है। इनका विश्वास जीतने और पुनर्वास करने में कम से कम तीन महीने का वक्त लगता है।

तब जाकर ये अपनी बीती जिंदगी से वापस आ पाती हैं। नई आशा में कई ऐसे पीड़ितों के जीवन का सवेरा हो चुका है। दिव्या और शाइस्ता की तरह दूसरी लड़कियां अब अपने नए जीवन में संतुष्ट हैं। दिव्या कहती हैं कि यहां सभी लोग बेहद अच्छे हैं। हम सब साथ में हंसते हैं खेलते हैं अपने दुख दर्द शेयर करते हैं। जब कोई यहां से जाता है तो हम लोग साथ में रोते भी हैं लेकिन उसे आगे के जीवन के लिए शुभकामनाएं देते हैं।

नई आशा में रहने वाली 17 वर्षीय आफरीन (बदला हुआ नाम) भी अपने नए घर में काफी खुश हैं। वह अब बीए की तैयारी कर रही हैं और उसके लिए कॉलेज ढूंढ रही हैं।

आफरीन को लिखने का बहुत शौक है। शेल्टर होम के कई हिस्सों में उसकी लिखी हुई कविताएं फ्रेम कराकर लगाई गई हैं। विनीता ने बताया कि कुछ लड़कियों को शादी के प्रपोजल भी मिले थे लेकिन लड़कियों ने खुद ही इंकार कर दिया।

हर लड़की की है भावुक कर देने वाली कहानी

दिव्या के साथ ही शाइस्ता (बदला हुआ नाम) को भी मड़ियाव रेड में रेस्क्यू किया गया था। शाइस्ता की उम्र 17 वर्ष है और वह एक पेशेवर वेश्या के रूप में इलाके में कुख्यात थी। शाइस्ता को भी उसके अपनों ने ही बर्बाद किया था। शाइस्ता की उसकी सौतेली मां ने तस्करी कराई थी और चंद पैसों के लिए उसे बेच दिया था।

विनीता जब शाइस्ता को अपने साथ ले जा रही थीं तो ऑटोवाले ने उसे अपने ऑटो तक में बैठाने से इंकार कर दिया। अब शाइस्ता और दिव्या दोनों ही क्राफ्ट सीख रही हैं और तरह-तरह के डिजाइनर शोकेस तैयार करती हैं।जब बीती ज़िंदगी की काली रातों की याद आती है तो अपनी मम्मी (विनीता) से साझा भी करती हैं। 

 

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