जल निकास वाली भूमि में करें ज्वार की खेती

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जल निकास वाली भूमि में करें ज्वार की खेतीgaonconnection

लखनऊ। ज्वार देश की प्रमुख फसलों में से है, क्षेत्रफल के हिसाब से देश में इसका तीसरा स्थान है। ज्वार की खेती उत्तरी भारत में खरीफ के मौसम में और दक्षिणी भारत में खरीफ और रबी दोनों मौसमों में की जाती है। ज्वार की खेती अनाज और चारे के लिए की जाती है। हरे चारे के अतिरिक्त ज्वार से साइलेज भी तैयार किया जाता है, जिसे पशु बहुत ही चाव से खाते हैं।

प्रदेश के कानपुर, इटावा, मैनपुरी और बुंदेलखंड के कुछ क्षेत्रों में ज्वार की खेती की जाती है। जून-जुलाई इसकी बुवाई का सही समय होता है। ज्वार की फसल कम वर्षा में भी अच्छी उपज दे सकती है और कुछ समय के लिए पानी भरा रहने पर भी सहन कर लेती है।

भूमि का चयन 

ज्वार की फसल सभी तरह की मिट्टियों में उगाई जा जाती है। लेकिन इसके लिए उचित जल निकास वाली भारी मिट्टी सर्वोत्तम होती है। असिंचित अवस्था में अधिक जल धारण क्षमता वाली मृदाओं में ज्वार की पैदावार अधिक होती है। 

खेत की तैयारी

पिछली फसल के कट जाने के बाद मिट्टी पलटने वाले हल से खेत में 15-20 सेमी गहरी जुताई करनी चाहिए। इसके बाद दो-तीन बार हैरो या चार-पांच बार देशी हल चलाकर मिट्टी को भुरभुरा कर लेना चाहिए। बुवाई से पहले पाटा चलाकर खेत को समतल कर लेना चाहिए। 

किस्मों का चुनाव

ज्वार की उपज के लिए उन्नतशील किस्मों का शुद्ध बीज ही बोना चाहिए। किस्म का चयन बुवाई का समय और क्षेत्र अनुकूलता के आधार पर करना चाहिए। 

फसल की कटाई 

ज्वार की फसल आमतौर से अक्टूबर-नवम्बर में पक कर तैयार हो जाती है। संकर किस्म के तने और पत्तियां भुट्टे पक जाने के बाद भी हरे रह जाते हैं। फसल की कटाई के लिए उसके सूखने की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। ज्वार की देशी किस्में 80-85 दिन व संकर किस्में 120-125 दिन में पक कर तैयार हो जाती है। 

बीज और बुवाई

सही पौध संख्या अच्छी उपज लेने के लिए आवश्यक है। देशी जातियों की पौध संख्या 90,000 प्रति हेक्टेयर रखते हैं। ज्वार की उन्नत और संकर जातियों के लिए 150,000 प्रति हेक्टेयर पौध संख्या की अनुशंसा की जाती है। इसके लिये 45 सेमी, कतारों की दूरी तथा पौधों से पौधों की दूरी 12-15 सेमी. रखना चाहिये। स्वस्थ और अच्छी अंकुरण क्षमता वाला 10-12 किग्रा बीज प्रति हैक्टेयर बोना पर्याप्त होता है।सिंचाई और जल निकास - ज्वार की खेती असिंचित क्षेत्रों में की जाती है, परन्तु इसकी उन्नत किस्मों से अधिक उपज प्राप्त करने के लिए सिंचाई की उपयुक्त सुविधा होना आवश्यक रहता है। बुवाई के समय पर्याप्त नमी होने से बीज अंकुरण अच्छा होता है। 

 

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