जन जुड़ाव के पर्याय थे रामसेवक

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जन जुड़ाव के पर्याय थे रामसेवकgaon connection

बाराबंकी के ताला रुकुनुद्दीनपुर से ताल्लुक रखने वाले रामसेवक यादव के विषय में आज के जनमानस को जितना जानना चाहिए था, वे नहीं जान पाए। देश की आजादी के तत्काल बाद मात्र पच्चीस वर्ष की उम्र में गन्ना आन्दोलन और सिंचाई रेट आन्दोलन का नेतृत्व करते हुए जेल जाना बड़ी बात थी।

यह उनके जनपक्षधरता और संवेदनशीलता का बेजोड़ उदाहरण था। जनता से गहरे जुड़ाव की वजह से ही कम उम्र में बाराबंकी के रामनगर विधानसभा से विधायक निर्वाचित हुए। साथ ही तीस वर्ष की अवस्था में ही 1957 में लोकसभा सदस्य के रूप में तत्कालीन समय में सबसे कम उम्र में सांसद होने का कीर्तिमान स्थापित किया।

राम सेवक यादव के नेतृत्व में जनता की गहरी आस्था व विश्वास था जिसकी झलक 1954 में सोशलिस्टों द्वारा जमींदारी उन्मूलन के लिए उत्तर प्रदेश के विधानसभा घेराव के प्रदर्शन में दिखाई पड़ा। फैजाबाद, गोंडा, बाराबंकी जिलों का नेतृत्व नौजवान रामसेवक यादव कर रहे थे। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार उस दिन लखनऊ से बाराबंकी के बीच बीस किमी की दूरी प्रदर्शनकारियों से भरी हुई थी।

एक आकलन के अनुसार उस भीड़ की तादात 75 हजार से अधिक थी। इसके अतिरिक्त इतनी महत्वपूर्ण खूबी समेटे हुए रामसेवक यादव के राजनैतिक कद का अंदाजा संसद में उनके स्थान से समझा जा सकता है। जब संसद में सोशलिस्ट पार्टी के सदस्य डॉ.राम मनोहर लोहिया, मधु लिमये, जार्ज फर्नांडीज़ और किशन पटनायक जैसे दिग्गज लोग थे, उस समय संसदीय दल के नेता रामसेवक यादव ही थे।

लोकतंत्र के विभिन्न मुद्दों पर उनके विचार मौलिक थे। भाषा के सवाल पर उनका कहना था कि जनतंत्र बिना जनभाषा के निर्जीव तथा समाजवाद निष्प्राण है। समाजवादी विचारधारा की पार्टी के भाषा संबंधी विचारों को लेकर देश में भ्रम फैलाया जा रहा है कि ये लोग हिंदी लादना चाहते है।

उन्होंने इस मुद्दे को स्पष्ट करते हुए कहा था कि हम लोगों का विरोध अंग्रेजी से है, वह भी उसके सार्वजनिक प्रयोग तथा अनिवार्य पढ़ाई से, क्योंकि अंग्रेजी भारत में सामंतों की भाषा तथा शोषण की बोली है। इसके अतिरिक्त उन्होंने अंग्रेजी शासन पर अपना विचार व्यक्त करते हुए कहा था अंग्रेजों के खिलाफ जब हम स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ रहे थे तो हमें कठिनाई का मार्ग अपनाना पड़ा। अगर हम उसको नहीं अपनाते तो आज जिस स्थिति में यह सदन मूर्तिमान है वह नहीं होता। 

जब चीन के मुकाबले में हमारी पराजय हुई, जिससे हमारे आत्मसम्मान को ठेस लगी, उसे हमें दूर करना है तो हमें इसका आसान रास्ता नही खोजना चाहिए। अपने खोये हुए आत्मसम्मान को वापस लाने के लिए कठिनाई का रास्ता अपनाना होगा। राम सेवक यादव की इच्छा थी कि राष्ट्रपति और प्रधानमन्त्री इन दोनों पदों पर दक्षिण भारतीय हो और समाज के वंचित वर्ग का कोई इन पदों पर बैठे तो मुझे सबसे ज्यादा खुशी होगी।

समाजवादी विचारधारा के प्रति आजीवन समर्पित रामसेवक यादव सामाजिक जीवन की शुरुआत से ही दुर्बल लोगों को निःशुल्क कानूनी सहायता उपलब्ध कराते थे। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट और सोशलिस्ट पार्टी में सांगठनिक जिम्मेदारी का कुशल निर्वहन करते हुए उन्होंने लोहिया, चौधरी चरण सिंह के साथ बेहतर समन्वयकारी की भूमिका में विशेष ख्याति अर्जित किया।

तीन बार लोकसभा सदस्य, दो बार विधायक, विधान मंडल में दल के उपनेता, लोक लेखा समिति के अध्यक्ष सहित चौधरी चरण सिंह के क्रांति दल, डॉ. फरीदी के मुस्लिम मजलिस से मिलकर त्रिदलीय मोर्चा बनाकर राष्ट्रीय राजनीति में मजबूत स्तंभ होकर उभरे। 

राजनीतिक जीवन में लोहिया के विचार और व्यक्तित्व से उनका गहरा अपनापन रहा। राजनीति, समाज, संस्कृति से जुड़े विषयों पर उनका गंभीर संवाद हुआ करता था। लोहिया के निधन से वे बेहद दुखी और आहत हुए। लोकसभा में लोहिया के मृत्यु उपरान्त आहूत बैठक में अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए उन्होंने कहा था कि अध्यक्ष महोदय ग्यारह और बारह अक्टूबर की रात भारत के इतिहास में सबसे काली रात होगी क्योंकि इसी रात को डॉक्टर साहब हम लोगों से छीन लिए गए। डॉ. राममनोहर लोहिया की जब इस वक़त हिन्दुस्तान को सबसे ज्यादा जरूरत थी तब वह हमसे छीने गए।

 ऐसा लगता है भारत अभागा है। स्वतंत्रता के बाद गांधीजी की जितनी जरूरत थी पिछले बीस वर्षों में इस देश की जनता ने इसका अनुभव किया। बीस साल के कठिन परिश्रम के बाद और निरंतर जूझने के बाद एक जो नया वातावरण बना और जगह-जगह गैर कांग्रेसी सरकारों की स्थापना हुई जिनको संभालने के लिए डॉ. लोहिया जैसे व्यक्ति के चाबुक की आवश्यकता थी अब वह चाबुक हमसे छिन गया।

वैचारिक राजनीति के साथ जमीनी पकड़ के महारथी रामसेवक यादव ने देश दुनिया की अनेक समस्याओं के निदान में सदैव संजीदा व्यवहार किया। बतौर सांसद उन्होंने यूरोप के कई देशों, अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, चीन, लेबनान, जापान, थाईलैंड आदि देशों की यात्रा की। देश की शीर्ष राजनीति में जब वह स्थापित होकर आम आदमी के नेतृत्वकर्ता के रूप में लोकप्रिय हो रहे थे, असमय काल के गाल में समा गए।

अड़तालीस वर्ष की उम्र में ही राजनीति के अग्रिम पंक्ति के नेता बनकर उभरने वाले रामसेवक यादव 22 नवम्बर 1974 को काल कवलित हो गए। उनके निधन से उपजी रिक्तता की भरपाई समाजवादी धारा में पूरी तो नही हो पाई, लेकिन उस विचार परम्परा पर चलते हुए समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव और नौजवान मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जनहितैषी नीतियों के माध्यम से काम करने में काफी हद तक सफल रहे हैं। 

राम सेवक यादव के निधन पर तत्कालीन प्रधानमन्त्री इंदिरा गांधी ने उन्हें शोषितों के संरक्षक और शालीन व्यक्तित्व के रूप में याद किया था जबकि चौधरी चरण सिंह ने उनकी लोकप्रियता सभी दलों में होने का स्मरण करते हुए राम सेवक यादव को लोहिया का सबसे अधिक विश्वासपात्र और प्रतिबद्ध संघर्षशील समाजवादी बताया था। 

आज के दौर में जब राजनीति सुविधाभोगी हो गई है, पद और सम्मान के लिए जनता से जुड़ाव की जगह शीर्ष नेतृत्व के गणेश परिक्रमा को विशेष तरजीह दिया जा रहा है, ऐसे में राम सेवक यादव के जीवन दर्शन की विशेष आवश्यता दिखाई पड़ रही है। समकालीन राजनीति में अड़तालीस वर्ष की उम्र को शायद ही कोई ऐसा जन नेता होगा जो अपने दम पर राम सेवक यादव जैसा सफल रहा हो।

उन्होंने राजनीति को आमजन के बेहतरी में सहायक के तौर पर अपनाया।जनता की जरूरतों के लिए संघर्ष किया और उसे सफलता तक पहुंचाया लेकिन अफ़सोस रामसेवक यादव को जिस शिद्दत के साथ याद किया जाना चाहिए उसका खुलकर अभाव दिख रहा है। 

 

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