क़ुरान के कायदों की समीक्षा ना करें सुप्रीम कोर्ट: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

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क़ुरान के कायदों की समीक्षा ना करें सुप्रीम कोर्ट: मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्डगाँवकनेक्शन

नई दिल्ली। कुछ वक्त पहले देश की सर्वोच्च अदालत ने संज्ञान लेते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ में तीन बार तलाक कहकर रिश्ते खत्म करने के कायदे की कानूनी वैधता जांच करने का निर्देश दिया था। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के क्षेत्राधिकार में ये नहीं है कि वो समुदाय के पर्सनल लॉ जो कि क़ुरान पर आधारित है उसकी समीक्षा करे। पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि ये कोई संसद से पास किया गया कानून नहीं है।

बोर्ड ने एक यूनिफॉर्म सिविल कोड की उपयोगिता को भी चुनौती देते हुए कहा कि ये राष्ट्रीय अखंडता और एकता की कोई गारंटी नहीं है। इनका तर्क है कि एक साझी आस्था ईसाई देशों को दो विश्व युद्धों से अलग रखने में नाकाम रही। बोर्ड ने कहा कि इसी तरह हिन्दू कोड बिल जातीय भेदभाव को नहीं मिटा सका।

ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने अपने वकील एजाज मकबूल के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में बताया है कि विधायिका द्वारा पारित कानून और धर्म से निर्देशित सामाजिक मानदंडों के बीच एक स्पष्ट लकीर होनी चाहिए। एजाज ने कहा, ''मोहम्मडन लॉ की स्थापना पवित्र कुरान और इस्लाम के पैगंबर की हदीस से की गई है और इसे संविधान के आर्टिकल 13 के मुताबिक अभिव्यक्ति के दायरे में लाकर लागू नहीं किया जा सकता। मुसलमानों के पर्सनल लॉ विधायिका द्वारा पास नहीं किए गए हैं।''

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किए गए शपथपत्र में ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा है, ''मुस्लिम पर्सनल लॉ एक सांस्कृतिक मामला है जिसे इस्लाम मजहब से अलग नहीं किया जा सकता। इसलिए इसे आर्टिकल 25 और 26 के तहत अंतःकरण की स्वतंत्रता के मुद्दे को संविधान के आर्टिकल 29 के साथ पढ़ा जाना चाहिए।'' इस शपथपत्र में सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों का भी हवाला दिया गया है जिसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख किया गया है कि पर्सनल लॉ को मौलिक अधिकारों के उल्लंघन को लेकर चुनौती नहीं दी सकती।

सुप्रीम कोर्ट ने खुद से ही मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की जांच करने का फैसला किया था। इसमें पाया गया कि मुस्लिम पुरुषों द्वारा एकतरफा तलाक दिए जाने के बाद ये महिलाएं बिल्कुल असहाय हो जाती हैं। 43 साल पुरानी इस संस्था का कहना है कि समय-समय पर समाज के एक तबके से यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर शोर मचाया जाता है। बोर्ड ने कहा, ''यदि मुस्लिम महिलाओं के लिए सुप्रीम कोर्ट स्पेशल नियम बनाता है तो यह अपने आप में जूडिशियल कानून होगा।''

मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने पूछा है, ''क्या यूनिफॉर्म सिविल कोड राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए जरूरी है? यदि जरूरी है तो ईसाई देशों की आर्मी के बीच दो विश्व युद्ध नहीं होने चाहिए थे।'' यूनिफॉर्म सिविल कोड के आइडिया का काउंटर करते हुए बोर्ड ने तर्क दिया कि 1956 में हिन्दू कोड बिल लाया गया था लेकिन इससे हिन्दुओं में विभिन्न जातियों को बीच दीवार खत्म नहीं हुई। ये आइडिया एक लिहाज से नाकाम हो गया। बोर्ड ने पूछा है, ''क्या हिन्दुओं में जाति खत्म हो गई? क्या यहां छुआछूत नहीं है? क्या दलितों के साथ यहां भेदभाव बंद हो गया?''

 

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