कानपुर में कई वर्षों से चल रहा बायो गैस संयंत्र

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कानपुर में कई वर्षों से चल रहा बायो गैस संयंत्रबायो गैस संयंत्र,कानपुर में कई वर्ष

चौबेपुर (कानपुर देहात)। अस्सी के दशक में प्रदेश भर में बायोगैस संयंत्र बनाए गए थे, लेकिन ज्यादातर संयंत्र बंद हो गए, लेकिन कानपुर देहात के मथुरा प्रसाद कमल के बनाए बायोगैस संयंत्र 30 वर्ष से अधिक समय से चल रहे हैं।

कानपुर देहात ज़िला मुख्यालय से लगभग 66 किमी. दूर दक्षिण पश्चिम दिशा में चौबेपुर ब्लॉक के मकानपुर गाँव के रहने वाले 65 वर्षीय मथुरा प्रसाद कमल अपने क्षेत्र में मिश्रित बायोगैस नाम के बायोगैस सयंत्र बनाने के लिए जाने जाते हैं। शुरू में मथुरा प्रसाद कानपुर शहर में जाकर राजमिस्त्री का काम करते थे, लेकिन उतनी कमाई में घर न चल पाने की वजह से वापस गाँव लौट आए।

मथुरा प्रसाद बताते हैं, “कई महीने कानपुर रहने के बाद वापस गाँव आ गया, ब्लॉक से पता चला की बायो गैस बनाना सीखने के लिए वहां से मिस्त्रियों को इटावा के अजीतमल बकेवर भेजा जा रहा है। मैं भी अपने पड़ोसी 50 रुपए ब्याज पर लेकर सीखने चला गया।”

मथुरा प्रसाद और उनके साथियों को बायो गैस संयंत्र बनाने का पंद्रह दिन का प्रशिक्षण दिया गया। वहां से लौटकर उन्होंने सैकड़ों बायो गैस प्लांट बनाए लेकिन ज्यादातर असफल रहे। उसके उन्हें बिल्हौर भेजा गया। “जितने भी बायो गैस बनाए ज्यादातर सही से काम नहीं कर रहे थे, जिनके यहां बने थे लोग कहते कि पैसा फंस गया इसमें तो कुछ होता ही नहीं है।” मथुरा प्रसाद ने बताया। बायो गैस में खराबी यह थी कि इनमें गैस का रिसाव होता था और गोबर भी जाम हो जाता था इसलिए लोगों ने इन्हें बनवाना बन्द कर दिया।

मथुरा प्रसाद कहते हैं, “कुछ दिनों बाद मैंने अपने घर पर ही बायो गैस बनाया उसमें कुछ अलग किया। उसमें जनता और दीनबंधु दोनों बायोगैस संयंत्र में से कुछ कुछ हिस्सा बनाया। जैसे कि जनता बायोगैस का डायजेस्टर उसके बाद उसमें दीनबंधु बायोगैस के इनलेट और आउटलेट बनाए और जो गैस का हिस्सा था उसके लिए आरसीसी की ढ़लाई कर दी।” मिश्रित बायोगैस की खास बात ये है कि इसमें गैस का रिसाव नहीं होता है और इनलेट-आउटलेट जाम नहीं होते हैं। उनके घर पर बना मिश्रित बायोगैस संयंत्र साल 1982 से लगातार चल रहा है

ऐसी बनाते हैं मिश्रित बायोगैस संयंत्र

मिश्रित बायोगैस को बनाने के लिए ईंट, मौरंग और गिट्टी और एक पौना इंच चैड़ाई का पाइप लगता है। सबसे पहले इसमें एक 10 बाई 10 लम्बा चौड़ा और 10 फुट गहरा गड्ढ़ा खोदते हैं फिर उसमें गिट्टी डालकर कुटाई करके आरसीसी की ढलाई कर देते हैं। किनारों पर दो बाई एक ईंट को जोड़ते हैं। फिर उसमें तीन बाई तीन का प्लास्टर करते हैं। इसके बाद एक तरफ इनलेट (गोबर डायजेस्टर में डालने के लिए) और दूसरे छोर पर आउटलेट (गोबर बाहर निकलने के लिये) बनाते हैं तब इसको छत डालकर पाट देते हैं। उसके बीच में पांच फिट लंबा पौना इंच चौड़ा पाइप लगा देते हैं। गड्ढे की छत पर काला पेन्ट करते हैं, जिससे गोबर में प्रेशर पड़ने पर ऊपर छत में न चिपके। 

स्वयं वालेंटियर: अंकिता यादव

स्कूल: रामजानकी महाविद्यालय, बैरी असई, 

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

 

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