कौन बताएगा हिन्दू कौन है, पूजा किसकी होनी है

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कौन हिन्दू है कौन नहीं इसका निर्णय हिन्दू धर्माचार्य नहीं करते जैसे दूसरे धर्मावलम्बी करते हैं। उच्चतम न्यायालय ने बहुत पहले माना था कि हिन्दू धर्म एक जीवन शैली है। हिन्दू धर्म किसी एक पुस्तक अथवा किसी एक धर्मगुरु तक सीमित नहीं है। इसमें एक ईश्वर को मानने वाले अद्वेतवादी और अनेक ईश्वरों को मानने वाले द्वेतवादी, साकार या निराकार ईश्वर को मानने वाले अथवा ईश्वर को न मानने वाले नास्तिक भी हिन्दू हो सकते हैं।

राम और कृष्ण को भगवान नहीं मानने से भी कोई व्यक्ति हिन्दू धर्म से बाहर नहीं होगा। राम को मर्यादा पुरुषोत्तम और दशरथ नन्दन मानने वालों की कमी नहीं है और वे हिन्दू हैं। मूर्तिपूजा भी अनिवार्य नहीं है। आर्य समाज और ब्रह्म समाज के लोग भी मूर्ति बनाकर पूजा नहीं करते लेकिन वे हिन्दू हैं। ऐसी आजादी देने वाला दूसरा धर्म शायद नहीं होगा। हिन्दू धर्म को परिभाषा के दायरे में नहीं बांधा गया है, इसी विराट रूप के कारण यह धर्म बाहरी आक्रमणों का सामना करते हुए भी हजारों साल से सजीव बचा है।

गाँव का अनपढ़ किसान एक चबूतरे पर थोड़े से पत्थर रखता है, शंकर मानकर उनपर जल चढ़ाता है और पूजा आरम्भ कर देता है। यह उसकी आस्था का विषय है। वह अनपढ़ यह कहता है कि घट-घट में राम बसे हैं तो स्वरूपानन्द जी से पूछना चाहिए कि साईं नाथ में राम हैं अथवा नहीं? हिन्दू धर्म का मूल तत्व है सत्य और अहिंसा और बड़े से बड़े धर्मगुरु की बात पर, भगवान के अस्तित्व पर भी सवालिया निशान लगाने की आज़ादी।

पूजा अर्चना में विवाद की आवश्यकता नहीं। हिन्दू धर्म ने मछली (मत्स्यावतार) और शूकर (वाराहावतार) में भी भगवान को देखा है। मेरे गाँव के पास अमानीगंज में आज भी वाराह मन्दिर बना हुआ है और पूजा होती है। यहां माता, पिता और गुरु को ईश्वर का रूप माना गया है इसलिए आस्था के विषय पर तर्क नहीं चलता, यह सब महापुरुषों ने ही बताया है। इस धर्म की विशेषता रही है प्रत्येक नए विचार को स्वीकार करना और स्थान देना। यह सोच शाश्वत है, सनातन है।

हिन्दू धर्म का किसी से बैर नहीं हो सकता, कभी भी हिन्दू धर्म खतरे में नहीं पड़ सकता। मन्दिर और मूर्तियां तोड़ने से भी नहीं मिटा क्योंकि यह सही अर्थों में व्यक्ति-केन्द्रित है। स्वामी विवेकानन्द को 14 सितम्बर 1893 में अमेरिका के शहर शिकागो में होने वाली विश्व धर्म-संसद में अपना प्रतिनिधि बनाकर हिन्दू धर्माचार्यों ने नहीं भेजा फिर भी हिन्दू धर्म की पताका फहराकर आ गए। यह आजादी हिन्दू धर्म देता है।

जानते हैं विश्वधर्म के विषय में उन्होंने क्या कहा था, हमें ऐसा धर्म चाहिए जिसका शरीर इस्लाम का हो, दिल ईसाई धर्म का और दिमाग हिन्दू धर्म का हो। अब आप कहते रहिए कि स्वामी विवेकानन्द हिन्दू नहीं थे। स्वामी विवेकानन्द के ऐसे उद्घोष के बाद भी कोई कहेगा कि साईं बाबा हिन्दू नहीं थे।

अधिकांश लोग मानते हैं कि हिन्दू धर्म एक जीवन शैली है और उस जीवन शैली को कोई भी, कभी भी, कहीं भी अपना सकता है। उसे किसी उपदेश अथवा आदेश की आवश्यकता नहीं होती। रहीम, रसखान, कबीर और साईं बाबा ने सत्य की खोज के लिए हिन्दू विचारों का अवलम्बन किया। यदि आप कबीर पंथी, ब्रह्म समाजी, साईं भक्तों और गायत्री परिवार को हिन्दू समाज से बाहर करेंगे तो क्या बचेगा इसलिए हिन्दू का विराट रूप बना रहना चाहिए। 

हिन्दू समाज को यदि किसी आन्दोलन, महापुरुष या विचारक की आवश्यकता है तो हिन्दू समाज की जड़ता को समाप्त करने वाले की, कुरीतियों, जातीय गैर बराबरी, महिलाओं पर अत्याचार, दहेज, यौन उत्पीड़न, बाल विवाह जैसी कुप्रथाओं का विरोध करने की और विधवा विवाह के पक्ष में आवाज उठाने की। यदि हम संकीर्ण आधारों पर विभिन्न सम्प्रदायों को हिन्दू धर्म से अलग करते रहे और दूसरे धर्मों से उलझते रहे तो झंझावातों को झेलने की शक्ति समाप्त हो जाएगी।

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