केंद्र और सुप्रीम कोर्ट में बढ़ी तना-तनी
गाँव कनेक्शन 9 Jun 2016 5:30 AM GMT

नई दिल्ली (भाषा)। केंद्र और सुप्रीम कोर्ट के बीच तना-तनी फिर ज़ाहिर हो गई। संविधान में स्थापित प्रक्रिया से अलग हटते हुए केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय के जजों की नियुक्ति करने वाले कॉलेजियम की एक सिफारिश को उसे दोबारा वापस भेज दिया है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर की अध्यक्षता वाला कॉलेजियम दोनों बार सरकार की आपत्तियों को नामंजूर करते हुए पटना उच्च न्यायालय में अतिरिक्त न्यायाधीश नियुक्त करने की अपनी सिफारिश पर कायम है। सरकार के उच्च पदस्थ सूत्रों ने आज कहा कि कॉलेजियम ने नवंबर, 2013 में राज्य न्यायिक सेवा के एक सदस्य को पटना उच्च न्यायालय के अतिरिक्त न्यायाधीश के रुप में नियुक्त करने की सिफारिश की थी। लेकिन सरकार ने तब फाइल कॉलेजियम को लौटाकर उससे फैसले पर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया था। सरकार का कदम आईबी की रिपोर्ट पर आधारित था।
इस बीच जब फाइल सरकार के पास लंबित थी, 13 अप्रैल 2015 को राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम अधिसूचित किया गया। लेकिन जब कॉलेजियम प्रणाली को निष्प्रभावी करने वाले नये कानून को उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल 16 अक्टूबर को रद्द कर दिया था तो इसके साथ शीर्ष अदालत तथा 24 उच्च न्यायालयों में जजों की नियुक्ति की पुरानी व्यवस्था वापस आ गयी।
कॉलेजियम प्रणाली की वापसी के बाद कानून मंत्रालय ने कॉलेजियम द्वारा की गयी पुरानी सिफारिशों पर विचार करने का फैसला किया। तब कॉलेजियम की सिफारिश की फाइल मार्च, 2016 में प्रधान न्यायाधीश को वापस भेजने का फैसला किया गया और उससे फैसले पर एक बार फिर पुनर्विचार करने का अनुरोध किया गया। लेकिन कॉलेजियम ने अप्रैल में एक बार फिर सिफारिश को दोहराया।
मौजूदा व्यवस्था के तहत अगर कॉलेजियम अपनी सिफारिश को दोहराता है तो सरकार को नियुक्ति करनी होगी। लेकिन उसी समय सरकार फाइल को जितना समय चाहे रोककर रखने के लिए और नियुक्ति में देरी के लिए स्वतंत्र है क्योंकि कोई निर्धारित समयसीमा नहीं है। जजों की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार और न्यायपालिका के बीच तना-तनी का प्रकरण खुलकर हाल ही में सामने आया था, जब अप्रैल में एक समारोह में प्रधानमंत्री की उपस्थिति में बोलते हुए प्रधान न्यायाधीश टीएस ठाकुर भावुक हो गए।
न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा रूंधे गले से कहा था कि 1987 के बाद से जब विधि आयोग ने जजों की संख्या को प्रति 10 लाख लोगों पर 10 न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी, तब से कुछ नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, “इसके बाद सरकार की अकर्मण्यता आती है क्योंकि संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई।” न्यायमूर्ति ठाकुर ने कहा कि विधि आयोग की सिफारिशों का अनुसरण करते हुए उच्चतम न्यायालय ने 2002 में न्यायपालिका की संख्या में वृद्धि का समर्थन किया था। प्रणब मुखर्जी की अध्यक्षता वाली विधि विभाग संबंधी संसद की एक स्थायी समिति ने जजों की संख्या और आबादी के अनुपात को 10 से बढ़ाकर 50 करने की सिफारिश की थी।
More Stories