केंद्र के दो साल का जश्न और रोज़ तीन किसानों की आत्महत्या का रिकार्ड

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केंद्र के दो साल का जश्न और रोज़ तीन किसानों की आत्महत्या का रिकार्डगाँव कनेक्शन

लखनऊ। भाजपानीत केंद्र सरकार जिस दिन अपने दो साल पूरे होने का दिल्ली के इंडिया गेट पर विशाल जलसा मना रही थी, उसी दिन देश में एक और रिकॉर्ड बना। महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में किसानों की आत्महत्या की संख्या ने पिछले साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया। वर्ष 2016 के अब तक के बीते 150 दिनों में से क्षेत्र में हर दिन तीन किसानों ने आत्महत्या की है।

महाराष्ट्र के मराठावाड़ा इलाके में किसानों की आत्महत्या की घटनाएं 400 की संख्या को भी पार कर गईं हैं। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार क्षेत्र में अब तक कुल 454 किसानों ने आत्महत्या कर ली है, जो पिछले वर्ष की जनवरी से मई तक हुई 372 आत्महत्याओं से 22 प्रतिशत अधिक हैं। 

ये आत्महत्याएं सीधे तौर पर सरकारों की नीतियों की विफलता को दिखाती हैं। एक कार्यक्रम में बोलते हुए 28 मई को कृषि मंत्री राधा मोहन सिंह ने किसान आत्महत्याओं का सारा ठीकरा पिछली सरकारों के सर मढ़ते हुए कहा था कि “किसानों की आत्महत्याओं का कारण पिछली सरकारों की गलत नीतियां हैं”। लेकिन बीजेपीनीति महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्याएं ये भी दिखाती हैं कि केंद्र सरकार भी इन घटनाओं को रोकने के लिए कोई ठोस त्वरित कदम नहीं उठा पाई।

पूरे देश की बात करें तो पत्रिका ‘इकोनॉमिक एंड पोलिटिकल वीकली’ में प्रकाशिक एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में वर्ष 1994 से 2014 के बीच लगभग 3,00,000 किसानों और खेती से जुड़े लोगों ने आत्महत्या की। यानि हर 30 मिनट में एक आत्महत्या। मराठवाड़ा क्षेत्र पिछले पांच सालों में लगातार चौथा सूखा झेल रहा है, जिसके कारण यहां खेती और पीने के पानी का भयंकर संकट खड़ा हो चुका है।  

साल की शुरुआत से अब तक हुई मौतों में से सबसे ज्यादा 81 आत्महत्याएं राज्य ग्रामीण विकास मंत्री पंकजा मुंडे के पैत्रक चुनावी क्षेत्र बीड में हुईं। नानदेड में 70 और औरंगाबाद में 67 किसानों ने आत्महत्या कर ली। वहीं लातूर जिले में किसानों की आत्महत्या के 61 मामले हुए हैं। वहीं ओसमानाबाद में यह संख्या 59 रही। 

मॉनसून का इंतज़ार कर रहे इस क्षेत्र में सूखे के कारण बांधों में कुल क्षमता का केवल एक प्रतिशत ही पानी बचा है, जो कि पिछले साल इसी समय आठप्रतिशत था।

 

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