खातों में पड़ा पैसा प्रधान नहीं कर पा रहे खर्च, बाराबंकी में दिया धरना

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सूरतगंज (बाराबंकी)। ग्राम पंचायतों का चुनाव हुए सात महीने से ज्यादा हो चुका है। प्रधानों के खाते में करीब आठ-आठ लाख रुपए भी आ चुके हैं लेकिन हजारों ग्राम पंचायतों में प्रधान एक भी रुपए का काम नहीं करा पा रहे हैं। ये समस्या 14वें वित्त आयोग की तकनीकी दिक्कतों के चलते आई है। इसके साथ राज्य वित्त की तरफ से भेजे गए स्टीमेट पर मुहर नहीं लग पाई है, जिसके चलते प्रधान काफी परेशान हैं।

बाराबंकी जिले में सूरतगंज ब्लॉक के 50 से ज्यादा किसानों ने बुधवार को ब्लॉक कार्यालय पर धरना दिया। प्रधानों ने विकास खंड अधिकारी उमाशंकर सिंह को ज्ञापन भी सौंपा। सूरतगंज ब्लॉक प्रधान संघ के उपाध्यक्ष अमित सिंह ने बताया, “पैसा प्रधानों के खातों में पड़ा है लेकिन वो उसका इस्तेमाल नहीं कर पा रहे हैं। बाढ़ का मौसम है कई जगह मिट्टी डलवानी है, कहीं तो सिर्फ 500 रुपये का काम है लेकिन उसके लिए 1500 रुपये का स्टीमेट बनवाने में लगाने होंगे। लेकिन कोई काम नहीं हो पा रहा है।”

वो आगे बताते हैं, “कार्य योजना बनाकर जिले पर भेज दी गई है लेकिन ब्लॉक और ज़िले से उस पर मोहर नहीं लग पाई है।काम आगे नहीं बढ़ पाया। सात महीने से काम हुआ नहीं है, विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, आचार संहिता लागू हो गई तो फिर कुछ काम नहीं हो पाएगा। ऐसे में गाँवों में विकास कार्य पिछड़ जाएंगे। सरकार को राज्यवित्त के लिए तुरंत पुराना ढर्रा वापस लाना होगा।”

विकास खंड अधिकारी को ज्ञापन सौंपते हुए ब्लॉक के प्रधानों ने कहा कि इस वक्त गाँवों में मनरेगा के अलावा सभी काम ठप पड़े हैं। अगर जल्द ही हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया गया तो हम लोग एकजुट होकर अनिश्चितकालीन धरना देंगे।

इस बारे में बात करने पर प्रधानसंघ के प्रदेश प्रवक्ता अखिलेश सिंह ने कहा, “अगर किसी ग्राम पंचायत ने कार्य योजना बनाकर ब्लॉक पर भेजी है और दो महीने में जवाब नहीं मिलता है तो वो डीएम से मिले। वहां भी निराशा हाथ लगे तो कमिश्नर, प्रमुख सचिव ग्राम पंचायत, निदेशक पंतायती राज और एपीसी से मिलने के विकल्प खुले हुए हैं।”

त्रिस्तरीय पंचायती चुनाव के बाद केंद्र से जिला और क्षेत्र पंचायत का फंड भी ग्राम पंचायतों के पास भेजना शुरू कर दिया है। प्रधानसंघ की अध्यक्ष श्वेता सिंह बताती हैं, “भारत सरकार से पिछले वित्तीय वर्ष में करीब 1900 करोड़ रुपये यूपी को मिले हैं। लेकिन ये पैसा कई महीनों तक बैंक में पड़ा रहा, फिर हम लोगों ने मुख्य सचिव समेत कई अधिकारियों को चिट्टी लिखी तब जाकर पैसा प्रधानों को खाते में पहुंचा। इसी तरह राज्य वित्त आयोग का पैसा भी डेढ़ महीने बाद मिला था। मैंने अपनी ग्राम पंचायत लतीफपुर, लखनऊ में 15 दिन में सारा पैसा खर्च कर दिया था।”

वीरेंद्र शुक्ला

स्वयं प्रोजेक्ट डेस्क

 

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