भारत में डेयरी उद्योग लाखों किसानों की आजीविका का मुख्य आधार है। लेकिन इस उद्योग की सबसे बड़ी समस्या है – मास्टाइटिस, यानी भैंस या गाय के थन में होने वाला थनैला रोग। यह रोग दूध उत्पादन को कम करता है, पशु को दर्द देता है और किसान की आमदनी पर सीधा असर डालता है।
हाल ही में आईसीएआर-सीआईआरबी (ICAR-Central Institute for Research on Buffaloes), हिसार के वैज्ञानिकों ने एक महत्वपूर्ण शोध किया है, जिसमें उन्होंने मुर्रा भैंस के दूध में मौजूद सूक्ष्मजीवों का गहराई से अध्ययन किया।
इस शोध से पता चला कि Acinetobacter johnsonii नाम का एक खास बैक्टीरिया मास्टाइटिस रोग से गहराई से जुड़ा हुआ है। वैज्ञानिकों का कहना है कि यह खोज आगे चलकर दूध उत्पादन में सुधार और संक्रमण नियंत्रण के नए रास्ते खोल सकती है।
20वीं पशुगणना के अनुसार, देश में भैंसों की आबादी 109.9 मिलियन है, जबकि अगर प्रदेश के हिसाब से बात करें तो सबसे अधिक भैंसों की संख्या उत्तर प्रदेश में है, उसके बाद राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और बिहार जैसे प्रदेश आते हैं। भारत में 12 तरह की भैंसों की नस्लें पायीं जाती हैं, हर भैंस की अपनी खासियत होती है, आइए जानते हैं कौन सी भैंस की क्या खूबियां हैं।
इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने हरियाणा के हिसार क्षेत्र की मुर्रा नस्ल की भैंसों से दूध के 16 नमूने लिए। इन नमूनों को तीन समूहों में बाँटा गया — स्वस्थ भैंसें, सब-क्लीनिकल मास्टाइटिस वाली भैंसें (जिनमें शुरुआती संक्रमण था), और क्लीनिकल मास्टाइटिस वाली भैंसें (जिनमें संक्रमण गंभीर था)। इसके बाद इन नमूनों पर Whole Metagenome Sequencing नाम की आधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया, जिससे दूध में मौजूद सभी प्रकार के सूक्ष्मजीवों की पहचान की जा सकती है, चाहे वे सामान्य प्रयोगशाला कल्चर में उगाए न जा सकें।
अध्ययन के परिणाम थे बेहद दिलचस्प
स्वस्थ भैंसों के दूध में ज्यादातर लाभदायक बैक्टीरिया पाए गए जैसे Lactobacillus, Bacillus, Streptococcus और Enterococcus, जो दूध को प्राकृतिक रूप से सुरक्षित रखते हैं। वहीं दूसरी ओर, मास्टाइटिस से ग्रस्त भैंसों के दूध में रोगजनक बैक्टीरिया की संख्या बहुत अधिक थी। इनमें सबसे प्रमुख था Acinetobacter johnsonii, जो संक्रमित दूध के लगभग 50 प्रतिशत हिस्से में पाया गया।
शोधकर्ताओं ने पाया कि Proteobacteria समूह के बैक्टीरिया क्लिनिकल मास्टाइटिस वाले दूध में सबसे अधिक पाए गए, जबकि स्वस्थ भैंसों में Firmicutes समूह का दबदबा था। यह अंतर साफ बताता है कि जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता गया, दूध में अच्छे बैक्टीरिया घटते गए और हानिकारक बैक्टीरिया तेजी से बढ़ते गए।

यह अध्ययन केवल वैज्ञानिक दृष्टि से नहीं, बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण है। भारत में मास्टाइटिस के कारण हर साल किसानों को करोड़ों रुपये का नुकसान होता है। एक भैंस में यह रोग हो जाने पर दूध उत्पादन में औसतन 2.5 लीटर प्रतिदिन की कमी आती है और इलाज में अतिरिक्त खर्च भी बढ़ जाता है। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि एक संक्रमित भैंस से किसान को महीने में करीब ₹1,900 से ₹2,000 तक का आर्थिक नुकसान हो सकता है।
इसलिए, यदि इस रोग के पीछे मौजूद प्रमुख बैक्टीरिया की पहचान कर ली जाए, तो उसकी रोकथाम और उपचार के बेहतर तरीके विकसित किए जा सकते हैं। यही इस शोध का सबसे बड़ा योगदान है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह अध्ययन भविष्य में तीन तरह से मदद करेगा —
पहला, मास्टाइटिस की शुरुआती पहचान के लिए नए बायोमार्कर तैयार किए जा सकेंगे।
दूसरा, एंटीबायोटिक-प्रतिरोधी संक्रमणों के लिए वैकल्पिक उपचार विधियाँ खोजी जा सकेंगी।
और तीसरा, भैंसों के लिए प्रोबायोटिक-आधारित रोकथाम तकनीकें तैयार की जा सकती हैं, ताकि संक्रमण को स्वाभाविक रूप से नियंत्रित किया जा सके।
इस शोध का एक और सकारात्मक पहलू यह है कि अब डेयरी उद्योग “एंटीबायोटिक-फ्री दूध उत्पादन” की दिशा में आगे बढ़ सकता है। क्योंकि अक्सर मास्टाइटिस का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं से किया जाता है, जिनके अवशेष कभी-कभी दूध में रह जाते हैं। अगर संक्रमण को सूक्ष्मजीव स्तर पर ही नियंत्रित किया जाए, तो दवा के उपयोग को घटाया जा सकता है।
इस अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया कि Acinetobacter johnsonii मास्टाइटिस संक्रमण में एक प्रमुख भूमिका निभा सकता है। वहीं, स्वस्थ भैंसों में पाए गए Lactobacillus जैसे लाभकारी बैक्टीरिया दूध की गुणवत्ता बनाए रखने में मदद करते हैं।
अध्ययन में यह भी देखा गया कि जैसे-जैसे संक्रमण बढ़ता गया, दूध में सूक्ष्मजीवों की विविधता कम होती गई — यानी कुछ खतरनाक प्रजातियाँ बहुत अधिक बढ़ गईं और बाकी लगभग गायब हो गईं। यह संकेत देता है कि माइक्रोबायोम का संतुलन टूटना ही संक्रमण का प्रमुख कारण है।
आईसीएआर-सीआईआरबी, हिसार के वैज्ञानिकों — दमिनी शर्मा, हेमलता वाल्मीकि, पंकज चायल, संजय कुमार और सुप्रिया छोटराय — ने यह शोध किया, जो हाल ही में BMC Microbiology नामक अंतरराष्ट्रीय जर्नल में प्रकाशित हुआ है।
यह भारत में मुर्रा भैंस के दूध पर किया गया पहला विस्तृत माइक्रोबायोम अध्ययन है। इस खोज ने डेयरी विज्ञान को एक नई दिशा दी है, जहाँ अब बीमारी को सिर्फ दवाओं से नहीं, बल्कि दूध में मौजूद सूक्ष्मजीवों की समझ से भी नियंत्रित किया जा सकता है।
भविष्य में इस तरह के शोध किसानों को स्वस्थ पशुधन बनाए रखने में मदद करेंगे और भारत को विश्व स्तर पर स्वच्छ और सुरक्षित दूध उत्पादन में अग्रणी बना सकते हैं।

















